जटिल कानून व जजों की कमी से लंबित हैं मामले

लोगों के मन में अक्सर ऐसी अवधारणा बनती है कि न्यायालय में कदम रखना है कि अपनी जेब ढीली करवाना है. अगर कोई मुकदमा हो जाये, तो उसके निष्पादन तक मुवक्किलों के चप्पल घिस जाते हैं, पर मामले की तुरंत सुनवाई नहीं हो पाती. ऐसे में इसकी सारी तोहमत वकीलों पर ही लगती है. लोग […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 7, 2016 9:03 AM
लोगों के मन में अक्सर ऐसी अवधारणा बनती है कि न्यायालय में कदम रखना है कि अपनी जेब ढीली करवाना है. अगर कोई मुकदमा हो जाये, तो उसके निष्पादन तक मुवक्किलों के चप्पल घिस जाते हैं, पर मामले की तुरंत सुनवाई नहीं हो पाती. ऐसे में इसकी सारी तोहमत वकीलों पर ही लगती है. लोग यही सोचते है कि वकील अपने फायदे के लिए मामले को लंबा खींचते चले जाते हैं, जबकि ऐसा नहीं है.
औरंगाबाद (सदर) : वकील एक पेशेवर समुदाय है. एक समय था जब इस पेशे को बड़े सम्मान के साथ देखा जाता था, लेकिन आज कानून के जानकारों व अधिवक्ताओं का मानना है कि पिछले दो दशक में इसमें काफी गिरावट आयी है. इसका कारण ये लोग न्यायिक व्यवस्था को मानते हैं.
यानी वकालत की शिक्षा-दीक्षा से लेकर न्यायालय के कामकाज तक में साधन व सुविधाओं की कमी ने आज वकालत के पेशे के मूल्य को गिरा दिया है. तभी तो अक्सर आमलोगों की शिकायतों में ये बातें सामने आती हैं कि वकीलों द्वारा मुवक्किलों को अनावश्यक रूप से परेशान किया जाता है.
उनके किसी मामले को जानबूझ कर लंबा खींचा जाता है, ताकि वकीलों का फायदा होता रहे. एक छोटे से मामले की लंबी-लंबी तारीखें पड़ती हैं, तो आखिर उसकी वजह क्या है. शुक्रवार को लोगों के इसी अवधारणा व प्रश्नों का हल ढूंढ़ने के लिए व्यवहार न्यायालय के कुछ अधिवक्ताओं से बात की गयी, तो उनकी परेशानियां सामने उभर कर आयी.

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