मंदिरों से पटा है उमगा पहाड़
।। सुजीत कुमार सिंह ।। आस्था व विश्वास का प्रतीक है मां उमंगेश्वरी स्थान औरंगाबाद : औरंगाबाद जिले के मदनपुर थाना क्षेत्र में उमगा पहाड़ पर अवस्थित मां उमंगेश्वरी का स्थान आस्था व विश्वास का प्रतीक है. पर्यटन के दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण उमगा तीर्थ स्थान आज देश में विख्यात है. मनोरम प्रकृति के बीच […]
।। सुजीत कुमार सिंह ।।
आस्था व विश्वास का प्रतीक है मां उमंगेश्वरी स्थान
औरंगाबाद : औरंगाबाद जिले के मदनपुर थाना क्षेत्र में उमगा पहाड़ पर अवस्थित मां उमंगेश्वरी का स्थान आस्था व विश्वास का प्रतीक है. पर्यटन के दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण उमगा तीर्थ स्थान आज देश में विख्यात है.
मनोरम प्रकृति के बीच हजारों वर्ष पूर्व निर्मित मंदिरों व स्थापित देवी-देवताओं के दर्शन कर श्रद्धालु अपने आप को धन्य मानते है. उमगा सूर्य मंदिर में अवस्थित शिलालेख में वर्णित है ‘याते तर्क नवाम् बुद्धिन गुणिते सम्वत् सरे विक्रमे वैशाखे गुरू वासरे शिवशरे पक्षे तृतीये तिथौ रोहिण्यां पुरुषोत्तमम् भद्रा सुभद्रा प्रतिष्ठान पथदैक देव विधिन: श्री भैरवेंद्रण:’ इन तथ्यों को अवलोकन करने मात्र से ही यह स्पष्ट हो जाता है
कि विक्रम संवत 1946 वैशाख तृतीया गुरुवार के दिन उमगा राज्यवंश के 13 वें खानदान के राजा भैरवेंद्र ने भगवान जनार्दन, बलिराम व सुभद्रा की प्राण प्रतिष्ठा देव विधान से विद्वान पंडितों द्वारा करायी थी.
शेर को मारा था अइल ने
उमगा का इतिहास काफी पुराना है. यूं तो जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है कि उमगा, उमंगा का ही विकृत रूप है. उमगा राज्य अपने चरमोत्कर्ष था उस समय वीर वांकुड़े, राजे रजवाड़े सावन मास में आखेट खेलने के लिए पूरे भारत वर्ष से इस पर्वत पर आया करते थे. आखेट कौशल का आनंद ऐसा कहीं नहीं मिलता था, तभी तो इसका नाम उमंगा रखा गया था.
प्राचीन ग्रंथों व शोधों से जो बातें सामने आयी, उसके अनुसार यह क्षेत्र कोल-भीठम आदिवासी राजा दुर्दम का क्षेत्र था. शुरू में अइल व इल नामक दो भाई आखेट खेलने आये थे. आखेट के दौरान अपनी बहादुरी से दोनों भाइयों ने शेर को पटक कर मार दिया था. इससे प्रभावित राजा ने प्रसन्न होकर अपनी एकमात्र पुत्री की शादी अइल से कर दी. साथ ही घर जमायी बना कर रखना कबूल करवा लिया. दूसरा भाई अपना देश चले गये.