मदनपुर : मदनपुर प्रखंड क्षेत्र के महुआवा चट्टी गांव के राजा पांडेय के पुत्र सुमित रंजन ने बेबी नाम की अद्भुत डिवाइस तैयार की है. यह डिवाइस बधिर लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती है. इस डिवाइस की मदद से बधिर लोग कान का उपयोग किये बिना बाहर की आवाज सुन सकते हैं, गाने सुन सकते हैं और मुस्करा सकते हैं.
इस डिवाइस की खासियत यह है कि यह केवल तरंग छोड़ती है, पर ध्वनि नहीं इस डिवाइस को इस्तेमाल करनेवाले व्यक्ति के अलावा कोई और नहीं सुन सकता है. इसके इस फीचर के मद्देनजर इसमें एक माइक्रोफोन भी लगाया गया है, जिसकी मदद से लोग बात भी कर सकते हैं. सीक्रेट ऑपरेशन व सीक्रेट मिशन के लिए भी यह डिवाइस बड़े काम की है. सुमित की इस खोज के लिए नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के अलावा कैलोफोर्निया की कंपनी जीएसएफ ने भी प्रशंसा की है.
इस डिवाइस को इस्तेमाल करने के लिए बधिर व्यक्ति को गर्दन के ऊपरवाले भाग के किसी भी हिस्से में इसे चिपकाना होता है. इसमें सेक्सन रबर लगा होता है. इसकी मदद से संपर्क में आते ही ये डिवाइस उस अंग से चिपक जाती है, फिर यह डिवाइस काम करना शुरू कर देती है. इस डिवाइस में क्रिस्टल ऑसिलेटर इलेक्ट्राॅनिक इंडस्ट्री में टाइमर काम करती है और साथ ही उसका उपयोग अपने हिसाब से तरंग उत्पन्न करने के लिए करती है.
इस ऑसिलेटर को माइक्रो कंट्रोलर की मदद से इस तरह का प्रोग्राम भेजा जाता है कि ये ठीक इसी फ्रीक्वेंसी की तरंग उत्पन्न करती है जिस फ्रीक्वेंसी से व्यक्ति के दिमाग की ऑडिटरी कोर्टेक्स ध्वनि तरंगों को प्रोसेस करती है. जब बेबी से निकली तरंग दिमाग तक पहुंचती है, तब व्यक्ति का दिमाग ये पता नहीं कर पाता है कि ये तरंग कानों से आ रही है या किसी अन्य बाहरी उपकरण से. इसके फलस्वरूप दिमाग इन तरंगों को आवाज की तरह समझ लेता है और व्यक्ति को आवाज सुनाई देती है. इस बात को समझने के लिए इसके पीछे छिपे विज्ञान को इस तरह से समझा जा सकता है.
युवा इनोवेटर सुमित ने बताया कि हमारा दिमाग कई हिस्से में बंटा है. हमारे मस्तिष्क के नीचे दायीं और निचले बाएं भाग का नाम ऑडिटरी कोरटेक्स है. ये भाग हमें सुनने में मदद करता है. जब कान में कोई ध्वनि जाती है, तो हमारा ईयर ड्राम उस मुताबिक कंपन करता है और फिर ये कंपन शरीर की सबसे छोटी हड्डी से होकर न्यूरो इम्पल्स नामक रसायन विद्युत सिंगल में बदल जाता है. इस सिंगल की एक सीमित फ्रिक्वेंसी होती है. जब ये सिगनल हमारे दिमाग के ऑडिटरी कोरटेक्स में पहुंचता है, तब इस सिगनल की फ्रिक्वेंसी के मुताबिक हमारा दिमाग इसे हमारी पुरानी यादों से मिलाता है और नई यादें बनाता है.
इस तरह ये ध्वनि की पहचान करता है. बेबी इन्हीं रसायन विद्युत सिगनल को उत्पन्न कर सीधा ब्रेन के ऑडिटरी कोरटेक्स में पहुंच कर हमें बिना कानों के उपयोग किये सुनने देता है. सुमित रंजन का यह 36वां इनोवेशन है. इससे पहले ड्रोन और टच स्क्रीन सिक्योरिटी वॉल जैसे गैजेट का मॉडल तैयार कर सुमित सुर्खियां बटोर चुके हैं. सुमित ने विवेकानंद सेंट्रल स्कूल, हजारीबाग से 12वीं पास की है. सुमित का दावा है कि बेबी डिवाइस अब तक की नई खोज है, जो बधिर लोगों के लिए उपयोगी है.