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काराकाट : परिसीमन के 15 वर्ष बाद भी क्षेत्र का विकास नहीं

परिसीमन से लोकसभा क्षेत्र बदला, प्रखंड बदला यहां तक कि अनुमंडल भी उसी परिसीमन की भेंट चढ़ गया. उम्मीद थी कि काराकाट क्षेत्र बनने से औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र पर विकास का लोड कम होगा.

By Prabhat Khabar News Desk | April 25, 2024 11:03 PM

ब्रजेश द्विवेदी, ओबरा. परिसीमन से लोकसभा क्षेत्र बदला, प्रखंड बदला यहां तक कि अनुमंडल भी उसी परिसीमन की भेंट चढ़ गया. उम्मीद थी कि काराकाट क्षेत्र बनने से औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र पर विकास का लोड कम होगा. अलग-अलग परिसीमन से अलग-अलग क्षेत्र बने, लेकिन विकास की उम्मीदें धुमिल रही. बिक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र वर्ष 2008 में काराकाट के रूप में बदला, तो छह विधानसभा क्षेत्रों के लोगों में विकास व तरक्की के प्रति एक नयी धारणा बनी, लेकिन नया कुछ नहीं हुआ. वर्ष 2009 में काराकाट लोकसभा क्षेत्र में पहली बार चुनाव हुआ और महाबली सिंह सांसद बने. 2014 में उपेंद्र कुशवाहा सांसद बने, तो 2019 में एक बार फिर महाबली सिंह को सांसद बनने का मौका मिला. अब एक बार फिर 2024 का रणक्षेत्र सज गया है. महाबली सिंह को तो इस बार मौका नहीं मिला, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा पुन: चुनावी मैदान में है. 15 सालों के राजनीतिक सफर की बात की जाये तो काराकाट की जनता को कुछ खास हाथ नहीं लगा. चुनावी वादे और घोषणाओं के बीच प्रतिनिधित्व की रणनीति बदलती गयी. दाउदनगर अनुमंडल का ओबरा, दाउदनगर, गोह, हसपुरा और नवीनगर के इलाके में विकास की बात बेमानी साबित हुई है. 10 साल पहले जो चुनावी मुद्दे थे वो आज भी है. मामूली तौर पर कुछ बदलाव हुआ है. शैक्षणिक संस्थानों को लेकर घोषणाओं की अंबार लगी, लेकिन धरातल पर नहीं उतरा. अगर डिग्री कॉलेज की बात की जाये तो एकमात्र डिग्री कॉलेज दाउदनगर में है. एक केंद्रीय विद्यालय के लिए भी यह क्षेत्र जूझ रहा है.ओबरा प्रखंड के पिसाय गांव से रामनगर गांव जाने वाली बुढी नाले पर एक अदद पुल को लेकर लोग तरस रहे हैं. लोकसभा व विधानसभा चुनाव में ग्रामीण इस समस्या को उठाते रहे है. चुनाव लड़ने वालों ने कई बार पुल निर्माण का आश्वासन भी दिया. ऐसा लगा कि बस कार्य की शुरूआत होने वाली है. ग्रामीणों में कुछ दिन तक खुशी की लहर भी रही, लेकिन ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होती रही. यूं कहे कि संबंधित क्षेत्र के ग्रामीण आश्वासन के आस में बैठे रहे. प्रतिनिधित्व भी बदला, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ. आज भी बुढ़ी नाले पर आवागमन का एकमात्र साधन चचरी पुल ही है. बरसात में स्थिति भयावह हो जाती है. सच कहा जाये, तो चुनाव समाप्ति के बाद उम्मीदें भी दम तोड़ जाती है. अगर बुढ़ी नाले पर पुल का निर्माण करा दिया जाता, तो मुख्तियारपुर, रामनगर, चंदा, गैनी, कुशा, बड़ पिसाय, मालवां, बिहारी बिगहा सहित कई गांवों के लोग लाभान्वित होते. ग्रामीण बताते हैं कि यदि सांसद निधि या विधायक निधि से महज पांच से 10 लाख रुपये की अनुशंसित की जाती तो निश्चित रूप से चचरी पुल की समस्या समाप्त हो जाती.

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