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Aurangabad News : मिट्टी के दीये व ढक्कन बनाकर किया जा रहा स्टॉक

Aurangabad News: इस बार दीपावाली व छठ में अच्छी कमाई की लगी है उम्मीद

देव. दीपावली और महापर्व छठ की तैयारी शुरू हो गयी है. कुम्हारों के घरों में इस बार की दीपावली से रोशनी फैलने की उम्मीद है. यही कारण है कि मिट्टी के दीये, कलश, ढक्कन आदि का निर्माण कार्य तेज हो गया है. पौराणिक सूर्य नगरी देव में दशहरे के बाद दीपावली व छठ पर्व को लेकर तैयारी हो रही है. एक तरफ शहर से गांव तक घरों व दुकानों की साफ-सफाई हो रही है. वहीं, कुम्हार समाज के लोग मिट्टी के दीये व ढक्कन बनाने में लगे है. माता लक्ष्मी की मूर्तियां भी बनायी जा रही है. अच्छी कमाई की आस लिये कुम्हार समाज के लोग अधिक से अधिक दीये व ढक्कन बनाकर स्टॉक करने का प्रयास कर रहे हैं. हालांकि, महंगी मिट्टी मिलने से लागत नहीं निकलने का भय भी उन्हें सता रहा है. कारीगर सुभाष पंडित ने बताया कि एक हजार रुपये प्रति टेलर चिकनी मिट्टी खरीद कर मिट्टी के बर्तन, दीये व घड़े आदि बनाते हैं. इसके अलावा महीनों की मेहनत व मिट्टी के बर्तन पकाने के लिए जलावन की जरूरत होती है. मिट्टी की लागत मूल्य के अनुरूप बनाये गये मिट्टी के पात्रों का पैसा नहीं मिल पाता है. मिट्टी के दीये 80 से 100 रुपये प्रति सैकड़ा बिकते थे. इसमें लागत खर्च भी नहीं आ पाता. सरकार ने भी शहर व ग्रामीण क्षेत्र में कुम्हार समाज के लोगों के लिए कहीं पर भी ऐसी भूमि आवंटित नहीं की है कि जहां की मिट्टी का उपयोग कर इस कला को जीवित रखा जा सके. कुम्हार समाज के लोगों को कहना है कि वर्तमान समय में तरह-तरह के बर्तन आ गये हैं. प्लास्टिक के कप व गिलास आ जाने से मिट्टी के बर्तनों की मांग कम हो गयी है. पहले शादी-विवाद में लोग आर्डर पर कुल्हड़ और भरूका ले जाते थे, लेकिन अब इनकी डिमांड कम हो गयी है. यही वजह है कि युवा पीढ़ी भी इस व्यवसाय में नहीं आना चाहते हैं.

तकनीक के युग में डिजाइनर दीये बढ़ा रहे रौनक

मिट्टी के दीयों से अपने घर-आंगन को सजाने की तैयारी लोगों ने शुरू कर दी है. बदलते ट्रेंड के साथ लोग डिजाइनर दीये भी खूब पसंद करने लगे हैं. इसी कारण कुम्हार दीये की अलग-अलग वैरायटी बनाने लगे है. कुछ समय में आधुनिकता के इस दौर में दीयों का स्थान बिजली के झालरों ने ले लिया हैं. ऐसे में कुम्हारों के सामने आजीविका का संकट गहरा गया है. चीन निर्मित झालरों ने कुम्हारों को और चोट पहुंचायी है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से स्वदेशी निर्मित उत्पादों के प्रयोग को लेकर मीडिया के साथ-साथ कई स्वयंसेवी संगठन खड़े हुए हैं. इसके परिणाम स्वरूप स्वदेशी निर्मित उत्पादों की बिक्री में खासी बढ़ोत्तरी हुई है. कुम्हार दीपावली में भी ऐसे ही स्वदेशी दीयों को ग्राहक मिलने की उम्मीद कर रहे हैं. इस बार मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ने लगी है. कारीगरों को अच्छी बिक्री की उम्मीद हैं. इसी उम्मीद में कुम्हारों के चाक फिर से चल पड़े हैं. नगर पंचायत में दीये बना रहे वार्ड तीन निवासी सुभाष प्रजापति ने बताया कि उम्मीद हैं कि इस बार मिट्टी के दीये ज्यादा बिकेंगे. इससे उनकी दीपावली भी पहले से बेहतर रहेगी. हम सभी लोग दीपावली के दो महीने पहले से मिट्टी के दिये बनाना शुरू कर देते है. वार्ड दो निवासी कुम्हार राघवेंद्र प्रजापति ने बताया कि शुरुआत में दीयों की कीमत कम होती है. मगर जैसे-जैसे त्योहार नजदीक आता है और डिमांड बढ़ती जाती है. दीयों के रेट भी बढ़ते जाते हैं. दीपावली तक 100 रुपये सैकड़ा से लेकर 150 रुपये तक दीये बिक जाते हैं. डिजायनर दीये थोड़े महंगे होते हैं.

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