दाऊद खां के किले का सौंदर्यीकरण कार्य अधूरा
Historic Site
दाउदनगर. शहर का ऐतिहासिक स्थल दाऊद खां का किला सौंदर्यीकरण की बाट जोह रहा है. कुछ वर्ष पहले सौंदर्यीकरण के दौरान जो कार्य कराये गये थे, उसका भी अस्तित्व भी मिटता जा रहा है. अब तो असामाजिक तत्वों द्वारा सबमर्सिबल तक को नहीं छोड़ा गया. सबमर्सिबल तक चुरा लिया गया. हालांकि, सबमर्सिबल कब चुराया गया है, यह पता नहीं चल पाया. ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार 17वीं शताब्दी में दाऊद खां किला का निर्माण कराया गया था. 1663 में किला का निर्माण शुरू कराया गया, जो 10 साल बाद 1673 में बनकर तैयार हुआ. दाऊद खां औरंगजेब के सिपहलसार थे. वह 1659 से 1664 तक बिहार के सूबेदार थे. इस ऐतिहासिक किले को स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना माना जाता है. कुछ वर्ष पहले किला परिसर के सौंदर्यीकरण का कार्य सरकार द्वारा कराया गया था, लेकिन अतिक्रमण के कारण कार्य को बंद करा दिया गया. चहारदीवारी का निर्माण अधूरा ही हो सका. अब तो स्थिति यह है कि पहले हुए सौंदर्यीकरण को भी नुकसान पहुंचा है. पौधों के लिए बनाये गये गेवियन ध्वस्त हो चुके हैं. लाइटों के लिए लगाये गये पोलों में से महज तीन-चार पोल ही बच रहे हैं. लाइट तो कभी जली ही नहीं. कई जगहों पर लोगों के बैठने व आराम करने के लिए चबूतरा बनवाया गया था, वह भी टूटने लगा है. शौचालय, कमरा व शेड का निर्माण कराया गया था, लेकिन देखरेख के अभाव में इसकी स्थिति खराब होती गयी और जर्जर अवस्था में पहुंच गया. ग्रिल तक को नुकसान पहुंचाया गया है. अगर सही हालत में कुछ है, तो वह पीसीसी रोड है, जो किला परिसर में बनवाया गया था. प्रतिदिन सुबह व शाम स्थानीय लोग घूमने के लिए पहुंच जाते हैं, लेकिन रात होते ही यह परिसर नशेड़ियों का अड्डा बन जाता है, जिस पर अंकुश लगता नहीं दिख रहा. नहीं कराया जा सका अतिक्रमणमुक्त पर्यटन विभाग द्वारा औरंगाबाद जिले के जिन 19 ऐतिहासिक धरहरों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए जिला प्रशासन से जो प्रतिवेदन मांगा गया था, उसमें दाऊद खां का किला भी शामिल है. आश्चर्यजनक बात तो यह है कि कवायद के लगभग चार वर्षों बाद भी किला परिसर को अतिक्रमण मुक्त नहीं कराया जा सका है. जिसके कारण लंबी अवधि से सौंदर्यीकरण का कार्य प्रभावित है. लगभग चार वर्ष पहले डीएम के आदेशानुसार किला परिसर को सुरक्षित रखने एवं अतिक्रमण से मुक्त करने की कार्रवाई करने का आदेश सीओ व थानाध्यक्ष को दिया गया था. वैसे यह आदेश सिर्फ संचिकाओं तक ही सीमित रह गया. एक दो बार सिर्फ स्थल निरीक्षण की औपचारिकता पूरी की गई और उसके बाद कुछ नहीं हो सका. यहां तक कि अतिक्रमण को चिन्हित तक नहीं किया जा सका है.