Bihar News: औरंगाबाद के पाताल गंगा कुंड में स्नान से भर जाती है माताओं की गोद, अब पौराणिक इतिहास का मिट रहा अस्तित्व
Bihar News: औरंगाबाद के पौराणिक पाताल गंगा कुंड में स्नान से महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होती है. यहां दो कुंड बने हुए है, जिसे ब्रह्रमा कुंड और बांझन कुंड के तौर पर जाना जाता है.
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रविकांत पाठक
औरंगाबाद के देव मुख्यालय से चंद दूरी पर स्थित पौराणिक पाताल गंगा मठ व भूमि सुर्खियों में है. पाताल गंगा की जमीन पर मेडिकल कॉलेज के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गयी है. ऐसे में अचानक पाताल गंगा का इलाका चर्चा में आ गया. वैसे भी यह वह क्षेत्र है, जहां कभी पहले देवताओं का एक क्षेत्र कहा जाता था. आज भी पाताल गंगा का अस्तित्व बरकरार है, लेकिन धीरे-धीरे मिटता जा रहा है. भवन जर्जर व खंडहर में बदल गये है. कुछ लोग देख- भाल करते हुए अस्तित्व को बचाने की कोशिश में है, लेकिन कोशिश रंग लाती हुई नहीं दिख रही है. पाताल गंगा का तालाब आज भी उसी रूप में है, लेकिन वह भी जर्जर होते जा रहा है. यह वही तालाब है, जिससे एक-दो नहीं बल्कि लाखों माताओं की गोद भरी है. ज्ञात हो कि कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर आज भी पाताल गंगा में स्नान-दान के लिए श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता है. इस धार्मिक स्थल के प्रति लोगों में गहरी आस्था है.
कुंड में स्नान से महिलाओं को होती है संतान सुख की प्राप्ति
मान्यता है कि पाताल गंगा के कुंड में स्नान से महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होती है. यहां दो कुंड बने हुए है, जिसे ब्रह्रमा कुंड और बांझन कुंड के तौर पर जाना जाता है. पाताल गंगा न्यास समिति के कोषाध्यक्ष राजेंद्र यादव ने बताया कि इसका निर्माण 17वीं शताब्दी में हुआ था. कार्तिक पूर्णिमा पर यहां स्नान के बाद दान व उपासना का विशेष महत्व है. आम मान्यता है कि पाताल गंगा स्थित एक खास तालाब, जिसे बांझन कुंड कहा जाता है, उसमें कार्तिक पूर्णिमा के दिन संतान सुख से वंचित महिलाओं को स्नान करने और तालाब में ही पहले से पहने वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करने से एक साल के भीतर गोद भर जाती है. वैसे तो यहां पर दो कुंड बने है. इसमें एक चौकोर तालाब है, जिसे ब्रह्रमा कुंड कहते है. संतान सुख वाला तालाब तिकोना है. कहा जाता है कि दोनों ही कुंड का निर्माण मठ के संस्थापक तपस्वी ज्ञानीनंद ब्रह्रमचारी के तपोबल का परिणाम है. उनकी आज भी कई सामाग्रियां है जो सुरक्षित रखी गयी है. संस्थापक तपस्वी शेर के छाल पर बैठकर तपस्या करते थे. आज भी वह छाल मौजूद है.
तपस्वी के चिमटे से फुट पड़ी गंगा की धाराएं
किवदंति के अनुसार नैमिषारण्य तपस्वी ज्ञानीनंद ब्रम्हचारी देव स्थित सूर्य मंदिर का दर्शन करने आये थे. वे देव के वन प्रांत में दोपहर में विश्राम कर रहे थे. विश्राम के दौरान उन्होंने अत्यधिक गर्मी लगने पर किसी जल स्त्रोत में गंगा स्नान करने की इच्छा जाहिर की. शिष्य को जल स्त्रोत का पता लगाने को कहा, पर ढूंढने के बाद भी कोई जल स्त्रोत नहीं मिला. परेशान शिष्य से जंगल में जानवरों को चरा रहे चरवाहों ने कहा कि बाबाजी इतने ही पहुंचे हुए हैं, तो गंगा जी को यहीं क्यों नहीं बुला लेते. शिष्य से ऐसा सुनते ही बाबा ने कहा कि अब गंगा यहीं आयेंगी.
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यह कहते हुए उन्होंने अपने चिमटे को जमीन पर गाड़ दिया. ऐसा करते ही दो धाराएं फूट पड़ीं. एक धारा से बाबाजी ने स्नान किया. जबकि दूसरी धारा को बाबाजी ने यह कहते हुए जनमानस को समर्पित किया कि चूंकि इसकी धारा एक तिकोने से गड्ढे में जमा हुई है. इसलिए यह विशेष है और यह संतानहीन महिलाओं के लिए फलदायी होगा. उन्हें इसमें स्नान करने से संतान की प्राप्ति होगी. बाबा जी के वचन के बारे में देव के राजा भीष्मदेव नारायण सिंह को जानकारी हुई तो उन्होंने वहां आकर तपस्वी से वहीं अपना स्थान बनाने का आग्रह किया और जमीनें भी दी. उसी जमीन पर पाताल गंगा मठ बना और मठ के पास दोनों तालाब स्थित है.
शक्ति मिश्रा ने उठाया जीर्णोद्धार का जिम्मा
शक्ति मिश्रा फाउंडेशन के चेयरमैन व युवा समाजसेवी शक्ति मिश्रा ने पाताल गंगा के मंदिर का जीर्णोद्धार व रंग-रोगन की जिम्मेवारी उठायी है. लाखों रुपये खर्च कर मंदिर का रंग-रोगन कराया. अभी भी कार्य जारी है.बड़ी बात यह है कि शक्ति मिश्रा अपनी जवाबदेही को समझते हुए हर पल कार्य की निगरानी भी कर रहे है. दो लाख रुपये से अधिक खर्च भी कर चुके है. कार्य के निरीक्षण के दौरान उन्होंने कहा कि वे बचपन से ही पाताल गंगा मंदिर से जुड़े हुए है.कभी हाथी के कान जैसा पूड़ी के साथ सब्जी प्रसाद में परोसा जाता था. आज सौभाग्यशाली है कि मंदिर के जीर्णोद्धार का हिस्सा बने है. पाताल गंगा के गौरव को वापस लौटाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे है. आम लोगों के प्रयास की भी आवश्यकता है. शक्ति मिश्रा ने बताया कि अगर पाताल गंगा के क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज का निर्माण होता है तो पाताल गंगा की प्रसिद्धि बढ़ेगी. श्रद्धालु पहुंचेंगे,जिससे सबकुछ बेहतर होगा. इलाके का विकास होगा. हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा.