औरंगाबाद : रक्त की कमी से जिंदगी और मौत के बीच जूझते लोगों के लिए रेडक्रॉस का ब्लड बैंक वरदान है. पिछले 41 साल से रेडक्रॉस के ब्लड बैंक के खून से लाखों जिंदगियां बची है.कई घर-आंगन रोशन हुए हैं. रक्त के अभाव में पहले बड़ी तादाद में थैलीसीमिया से ग्रसित रोगियों,गर्भवती महिलाओं, बच्चों व दुर्घटना में शिकार लोगों की मौत होती थी, लेकिन 41 साल से इस ब्लड बैंक ने टूटती सांसों की डोर को अपने हाथों में थाम लिया है और सुरक्षा कवच बनकर उनके जिंदगी की रक्षा कर रहा है.साथ ही खून के अभाव में बाहर रेफर होने वाले मरीजों की संख्या पर भी ब्रेक लगा है. फिलहाल औरंगाबाद में 22 थैलेसीमिया के रोगी हैं जिन्हें हर तीन महीने के अंतराल में खून की जरूरत होती है. स्थानीय ब्लड बैंक में मरीजों को सहज ही रक्त उपलब्ध हो जाता है.
लोगों को नया जीवन देने में कई सामाजिक एवं स्वैच्छिक संगठन रक्तदान कर ब्लड बैंक का सहयोग करते हैं. दान के खून को सजों कर रेडक्रॉस का ब्लड बैंक जिंदगियों की हिफाजत करता है.1979 में हुआ था ब्लड बैंक का उद्घाटनरेडक्रॉस के सचिव दीपक कुमार ने बताया कि रेडक्रॉस के रामचंद्र सिंह ब्लड बैंक का शिलान्यास वर्ष 1976 में हुआ था. तत्कालीन बिहार के राज्यपाल आरडी भंडारे ने औरंगाबाद में रेड क्रॉस के ब्लड बैंक की नींव रखी थी. 3 साल में यह कार्य पूरा हुआ और वर्ष 1979 में 22 अप्रैल को तत्कालीन राज्यपाल केवीएन सिंह ने ब्लड बैंक का उद्घाटन किया.आज इस ब्लड बैंक 41 साल हो गए हैं.
पिछले 41 साल से औरंगाबाद में रेडक्रॉस का ब्लड बैंक लगातार जिंदगियां बचा रहा है.अनुवांशिक रोग है थैलेसीमिया, विवाह से पूर्व खून जांच करवाने की है जरूरतआज दुनियाभर में वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाया जा रहा है. यह दिन उनलोगों को समर्पित किया गया है जो रक्त की इस अनुवांशिक रोग से पीड़ित है. यह बीमारी विशेषकर बच्चों में होती है और पर्याप्त इलाज नहीं मिलने पर उनकी मौत भी हो जाती है. माता पिता दोनों में से किसी एक में जीन की गड़बड़ी होने के कारण यह रोग होता है. ये जीन्स हीमोग्लोबिन बनने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं. इस बीमारी में लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन नामक एक प्रोटीन नहीं बनता है. ये लाल रक्त कोशिकाएं शरीर की सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन ले जाने का काम करती हैं. खून में पर्याप्त स्वस्थ्य लाल रक्त कोशिकाएं नहीं होने के कारण शरीर के अन्य सभी हिस्सों में पर्याप्त ऑक्सीजन भी नहीं पहुंच पाता है.
इससे पीड़ित बहुत जल्द थक जाता है. उसे सांस की कमी महसूस होती है. थैलीसीमिया के कारण गंभीर एनीमिया से व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाती है.इन लक्षणों से की जाती है थैलेसीमिया की पहचानशिशु में चार से छह माह की उम्र में थैलीसीमिया के लक्षण नजर आने लगते हैं.• शरीर पीला पड़ना• जल्द थकावट होना• मानसिक विकास में रूकावट• शारीरिक विकास नहीं होना• लीवर व तिल्ली का बढ़ा होना• सांस की तकलीफ• ह्रदय काम नहीं करने का खतरादंपति अपने खून की जांच जरूर करवायेंअमूमन लोगों को पता नहीं होता है कि उन्हें माइनर थैलेसीमिया है. चूंकि थैलेसीमिया अनुवांशिक रोग है इसलिए विवाहित दंपतियों को इस बात का ख्याल रखना होगा.
यदि फैमिली के लिए प्लानिंग कर रहे हैं तो एक बार रक्त की जांच करा लेना बेहद जरूरी है. यदि पति या पत्नी दोनों में से किसी को भी थैलीसीमिया है तो डॉक्टर से बात कर परिवार बढ़ाने की योजना की जानी चाहिए. इससे बच्चों में यह बीमारी होने की संभावना को समझने में आसानी होगी. थैलेसीमिया से इस प्रकार भी बचाव किया जा सकता है.• खून की जांच कर रोग की मौजूदगी की पुष्टि करा कर.• विवाह पूर्व लड़का व लड़की के रक्त का परीक्षण करा कर.• नजदीकी रिश्ते में शादी विवाह से परहेज रख कर.क्या कहते हैं चेयरमैनब्लड बैंक में सारी व्यवस्था मौजूद है.
यहां पर्याप्त मात्रा में सभी ग्रुप का ब्लड भी उपलब्ध है. जिले में कभी भी लोगों को खून की जरूरत होती है तो यहां से उन्हें बेहद आसानी से खून मिल जाता है और उनकी जिंदगी सुरक्षित हो जाती है. औरंगाबाद के लिए यह ब्लड बैंक वरदान है.सतीश कुमार सिंह, चेयरमैन, रेडक्रॉस औरंगाबादक्या कहते हैं सचिवब्लड बैंक ने औरंगाबाद में लाखों जिंदगियां बचाई है. यह औरंगाबाद का लाइफ लाइन साबित हो रहा है. कई सामाजिक संगठनों के अलावा शैक्षणिक संस्थान, बैंक व समाजसेवी रक्तदान कर ब्लड बैंक को पर्याप्त ब्लड मुहैया कराते हैं. जिसके कारण यहां ब्लड का भरपूर भंडारण है सहूलियत के हिसाब से लोगों को ब्लड मुहैया करा जाता हैदीपक कुमार, सचिव, रेडक्रॉस औरंगाबाद