खरांटी के कालीन उद्योग को मिली संजीवनी, केंद्र से मिली सहायता
कालीन का काम बढ़ने से बुनकरों को मिल रहा रोजगार
ओबरा. ओबरा के खरांटी कालीन उद्योग को संजीवनी मिली है. केंद्र सरकार द्वारा सहायता मिलने के बाद यहां का कालीन उद्योग फिर से अपनी खोयी पहचान हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. फिलहाल जलसा कालीन एंड दरी प्रोड्यूसर कंपनी द्वारा कालीन तैयार किया जा रहा है, जिसकी मांग बढ़ रही है. इन दिनों काफी प्रसिद्ध हो रहा है. पदाधिकारी से लेकर क्षेत्र के लोग भी कालीन लेने पहुंच रहे हैं. कभी खूबसूरत एवं मनमोहक कालीन उत्पादन के लिए खरांटी का यह उद्योग देश-दुनिया में मशहूर था. बीच में इसकी स्थिति अत्यंत जर्जर हुई. मगर अब खरांटी कालीन उद्योग को केंद्र सरकार की सहायता से संजीवनी मिल गयी है. युवा कारीगर और उद्यमी संस्था के निदेशक शत्रुघ्न कुमार सिंह की कोशिश रंग लायी और कालीन उद्योग के पुनर्जीवित होने से बुनकरों को भी रोजगार मिल रहा है. कोरोना काल में आपदा को अवसर में बदलते हुए दिल्ली से वापस अपने घर लौटकर शत्रुध्न ने खरांटी में कालीन उद्योग स्थापित किया जिसमें 100 से अधिक बुनकरों तथा कारीगरों को रोजगार मिल रहा है. गौरतलब है कि ओबरा का कालीन उद्योग 70-80 के दशक में देश ही नहीं दुनिया में भी मशहूर था और तब यहां का बना कालीन राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ाता था. यहां के कालीन की मांग अमेरिका, ब्रिटेन, भूटान, थाईलैंड, नेपाल आदि देशों में थी. यहां के एक कालीन बुनकर मोहम्मद अली को 1972 में राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजा गया था, लेकिन बाद के दशक में समुचित सरकारी प्रोत्साहन, कार्यशील पूंजी और बाजार के अभाव में ओबरा का कालीन उद्योग दम तोड़ता गया. काम के अभाव में यहां के कालीन बुनकर दिल्ली, हरियाणा, भदोही, वाराणसी एवं अन्य जगहों के लिए पलायन कर गये. जब बिहार के मुख्यमंत्री सेवा यात्रा के दौरान यहां पहुंचे तो आश्वासन दिया था कि भदोही से निर्यात किया जायेगा. लेकिन उनकी बातें हवा-हवाई साबित हुई. कोरोना काल के दौरान जिले के रहने वाले कालीन कारीगर व युवा उद्यमी तथा खरांटी जलसा कालीन एंड दरी प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के निदेशक शत्रुध्न कुमार सिंह ने अपने घर वापसी की और यहां कालीन उद्योग लगाने की ठानी. इसके लिए उन्होंने केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के तहत योजना से सहायता के लिए ऑनलाइन आवेदन किया और जल्द ही उनके प्रस्ताव को स्वीकृति मिल गयी. इसके बाद शत्रुध्न ने भदोही, वाराणसी आदि स्थानों में कार्य कर रहे यहां के कालीन बुनकरों को घर आने के लिए प्रेरित किया और इसमें उन्हें सफलता मिल गयी. लगन, मेहनत व बेहतर प्रयास से उनका कालीन उद्योग आज बेहतर चल रहा है. कालीन उद्योग के एक तरह से पुनर्जीवन के बाद काफी बुनकरों व कारीगरों को रोजगार मिल रहा है. साथ ही दाउदनगर, हसपुरा, मदनपुर आदि प्रखंडों में कालीन निर्माण की शाखाएं खोली जा रही है. यहां कालीन बना रहे मोहम्मद रफीक बताते हैं कि उन्हें काम मिल जाने से सहूलियत हुई है और उचित मजदूरी भी मिल रही है. दरी निर्माण में लगे रोसीला खातून यहां काम मिलने से खुश हैं और बताती हैं कि पहले से ज्यादा मजदूरी मिल रही है. संस्था के निदेशक ने बताया कि यहां से कालीन अब विदेश में भेजे जा रहे हैं. वर्तमान समय में लगभग 100 से अधिक नए बुनकरों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. बताया कि बुनकरों को रोजगार मिल रहा है. आसपास के गांव के बुनकर संस्था में रहकर ही 24 घंटे कार्यों को निष्पादन कर रहे हैं. संस्था को ऊंचाईयों पर ले जाने का प्रयास किया जा रहा है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है