औरंगाबाद सदर. रक्तदान को महादान कहा गया है. यह इस मायने में कि आपका खून न जाने किसकी थमती हुई सांसों को नयी ऊर्जा प्रदान कर दे. न जाने किस घर के चिराग को बुझने से बचा ले. हो सकता है किसी के बुढ़ापे की लाठी को आपका दिया हुआ खून टूटने से बचा ले. जाहिर है कि हमारे और आपके जीवन में किसी को नयी जिंदगी देने से बढ़कर और कोई बड़ा दान हो ही नहीं सकता है. औरंगाबाद में दर्जनों ऐसे घर हैं जो दान के खून से रोशन हो रहे हैं. आज विश्व थैलीसिमिया दिवस है. थैलेसीमिया एक घातक बीमारी है. थैलीसिमिया एक जेनेटिक डिसऑर्डर है, यानी ये बीमारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती है. इस बीमारी में शरीर में हेमोग्लोबिन बनना बंद हो जाता है. हेमोग्लोबिन रेड ब्लड सेल्स में प्रोटीन अणु के रूप में बॉडी में ऑक्सीजन सप्लाई करने का काम करता है. मगर थैलीसिमिया में आरबीसी तेजी से नष्ट होने लगती हैं. इससे मरीज एनिमिक होने लगता है. इससे पीड़ित मरीजों को जल्दी-जल्दी रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है. इस वजह से मरीज के परिजनों को परेशान का सामना करना पड़ता है. जिले में फिलहाल करीब 40 थैलेसीमिया से पीड़ित मरीज हैं. इन्हें सदर अस्पताल स्थित रेडक्रॉस के ब्लड बैंक से हर माह खून उपलब्ध कराया जाता है. थैलीसिमिया मरीजों में दो से 15 साल तक के बच्चे जिले में मौजूद थैलीसिमिया मरीजों में दो साल से लेकर 15 साल तक के मरीज शामिल है. वर्तमान में मौजूद 40 थैलीसिमिया मरीजों में रफीगंज के ऋत्विक राज, रुद्रप्रताप सिंह, डुमरी कि मुस्कान कुमारी कि उम्र दो साल, अंबा के समर कुमार, पवई कि कोमल कुमारी, टंडवा कि शन्या कुमारी कि उम्र तीन साल है. वहीं सबसे अधिक 15 वर्षीय शाहपुर अखाड़ा निवासी मिथुन राज व 14 वर्षीय दाऊदनगर के शमशेर नगर निवासी मोहित मृणाल हैं. इसके अलावा छह वर्षीय काव्या कुमारी, आठ वर्षीय आर्यन राज, सात वर्षीय आदित्य कुमार सहित 40 मरीजों को रक्त कि आपूर्ति की जा रही है. इन मरीजों को कई वर्षों से दान के रक्त से मिल रहा जीवनदान औरंगाबाद में कई ऐसे थैलीसिमिया मरीज हैं, जिन्हें कई वर्षों से रक्तदान से जीवनदान मिल रहा है. नवीनगर के आदित्य कुमार पिछले कई वर्षो से इस बीमारी से पीड़ित है और उन्हें वर्षो से रक्त प्रदान किया जा रहा है. रिसियप निवासी आर्यन राज, दाउदनगर के दीपांशु कुमार भी कई वर्षों से इस बीमारी की चपेट में है. शहर के मिनी बिगहा निवासी अनिशा कुमारी, कुटुंबा के डुमरी निवासी अर्नव कुमार को भी काफी पहले यह बीमारी हो गयी थी. शहर के श्रीकृष्ण नगर मुहल्ला निवासी शालू कुमारी, दोसमा निवासी कन्हैया कुमार सहित कई लोगों को रक्तदान से जीवनदान मिल रहा है. ब्लड बैंक में हर महीने 70 यूनिट की खपत सामान्य रूप से शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है. लेकिन, थैलीसिमिया के कारण इनकी उम्र सिमटकर मात्र 20 दिनों की हो जाती है. इसका सीधा प्रभाव शरीर में स्थित हेमोग्लोबीन पर पड़ता है. सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ आशुतोष कुमार ने बताया कि इस बीमारी में बोन मैरो ठीक तरह से काम नहीं करता. इसका इलाज महंगा होता है. इसलिए हर 20 से 30 दिन के अंतराल पर मरीज को रक्त चढ़ाना पड़ता है. उन्होंने बताया कि हर महीने औरंगाबाद के अलावा बिहार के कई जिले जैसे आरा, अरवल, रोहतास के साथ साथ झारखंड के भी जपला, पलामू जैसे जगहों के कुछ मरीजों को रक्त देना पड़ता है. कम उम्र के बच्चों को तो एक यूनिट में काम चल जाता है लेकिन अधिक बड़े बच्चों को दो यूनिट तक रक्त भी चढ़ाना पड़ता है. ऐसे में करीब 70 से 80 यूनिट की खपत हर महीने होती है. गौरतलब हो कि निकट महीनों में करीब दो बच्चों की इस बीमारी से मौत भी हुई है. ब्लड बैंक में रक्त की है कमी, रक्तदान कर बचाएं जीवन ब्लड बैंक के कर्मी रवि सिंह और आशुतोष पाठक की माने तो ब्लड बैंक में रक्त की काफी कमी है. ब्लड बैंक में ए पॉजिटिव, बी पॉजिटिव, एबी पॉजिटिव, ओ नेगेटिव जैसे रक्त नहीं है. इससे जरूरतमंदों को समस्या का सामना करना पड़ता है. गौरलतब है कि वर्ल्ड थैलेसीमिया दिवस पर सदर अस्पताल के ब्लड बैंक में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया है. इसमें लोग रक्तदान करेंगे. सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ आशुतोष ने कहा कि अधिक से अधिक लोग रक्तदान करें, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचायी जा सके. उन्होंने बताया कि यहां थैलेसीमिया मरीजों को मुफ्त में रक्त मुहैया कराया जाता है. इस पुनीत कार्य में आमजन की सहभागिता आवश्यक है, इसलिए लोगों को रक्तदान के लिए आगे आना चाहिए. ये हैं थैलेसीमिया के लक्षण थैलेसीमिया के लक्षणों में थकान के साथ कमजोरी, त्वचा का पीला रहना, चेहरे की हड्डी की विकृति, शरीर का धीमी गति से विकास होना, पेट में सूजन, गहरा रंग का पेशाब होना आदि शामिल है. विवाह से पहले महिला व पुरुष की रक्त की जांच अवश्य कराएं. पति पत्नी शिशु के बारे सोचने से पहले रक्त की जांच अवश्य कराएं. गर्भावती होने से पहले रक्त की जांच जरूरी है. खून की जांच करवाने से कई प्रकार की गर्भ तथा शिशु संबंधी रोग की जटिलताओं से बचा जा सकता है. जेनेटिक बीमारी है थैलीसिमिया थैलीसिमिया की पहचान करना जरूरी है. बच्चे के जन्म के छह माह बाद इसका पता चलता है. भारत में लगभग प्रत्येक वर्ष 10 हजार बच्चे थैलेसीमिया बीमारी के साथ जन्म लेते हैं. अगर पति और पत्नी दोनों थैलीसिमिया के कैरियर हैं, तो बच्चों के रोगी होने की संभावना बढ़ जाती है. औरंगाबाद के जुड़वां भाई लव-कुश इसके उदाहरण है. इन दोनों को थैलीसिमिया है. दोनों की आयु छह वर्ष है.
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