ओबरा. प्रखंड क्षेत्र के किसानों ने व्यापक पैमाने पर इस वर्ष मूंग की खेती की है. बेहतर उपज के लिए उत्तम वेराइटी का बीज खरीद कर फसल लगाया है. अंकुरण के बाद अपने खेतों में हरे-भरे पौधे देखकर किसान काफी उत्साहित थे. उन्हें फसल से अच्छी उपज होने की उम्मीद थी पर प्रकृति की बेरुखी ने खेतिहरों की चिंता बढ़ा दी है. अगर किसानों की बात माने तो मौसम के असर से मूंग की फसल पूरी तरह से सूख रही है. स्थानीय गणेश पांडेय, रवि सिंह, उदय सिंह, संतोष सिंह, अनिल सिंह व विपिन आदि कृषक बताते हैं कि मूंग की खेती अब काफी महंगी हो गयी है. इसके लिए किसानों को डीजल पंपिंग सेट का सहारा लेना पड़ता है, वहीं फसल के पटवन करने के लिए महंगे ईंधन का खपत करना पड़ता है. इसके बावजूद फसल बर्बाद हो जाती है. इससे किसानों को काफी नुकसान होता है. तापमान में वृद्धि होने से भू-जल स्तर काफी नीचे चला गया है. ऐसे में किसानों को अपने फसलों की सिंचाई कर हरा-भरा रखना मुश्किल हो गया है. मूंग उत्पादक बताते हैं कि कीट व्याधि व रोग तथा मौसम की मार से फसल के नुकसान होने पर सरकार द्वारा किसी तरह की क्षति पूर्ति नहीं की जाती है. जानकारी के अनुसार प्रखंड क्षेत्र के गिरा, सरसौली, देवकली, शंकरपुर, सोनहुली, हेमजा व रतवार सहित दर्जनों गांव में किसानों द्वारा मूंग की खेती की गयी है. फिलहाल के मौसम में एक तरफ प्राकृतिक की मार, वहीं दूसरी ओर वन प्राणी नीलगाय से फसल की बर्बादी से किसान हैरान है. उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि पौधा को सुरक्षित रखने के लिए क्या उपाय की जाये. अगर यही स्थित आगे भी बनी रही, तो किसानों को फसल के उत्पादन लागत में काफी ह्रास होगा. पौधे सूखने का क्या है कारण मौसम वैज्ञानिक डॉ अनूप कुमार चौबे ने बताया कि मूंग की फसल में एलोमोजाइक विषाणु जनित रोग लगा है. फसल लगे खेत में जाकर देखने से क्लियर होगा. इस रोग में संक्रमित पत्तियों पर अनियमित पीले धब्बों के रूप में दिखाई देता हैं जो आपस में मिलकर बड़े धब्बा एक हो जाता हैं. अंतत: पूरी पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं. गंभीर रूप से संक्रमित पौधों की फलियों और बीजों पर भी पीले धब्बे देखे जा सकते हैं. प्रारंभिक अवस्था में रोग दिखाईं दे तो ग्रसित पौधों को उखाड़ कर मिट्टी में दबा करके नष्ट कर देना चाहिए. क्या जानकारी देते हैं प्रधान वैज्ञानिक केवीके सहरसा के प्रधान वैज्ञानिक डॉ नित्यानंद ने कहा कि एलोमोजाईक के कारण मूंग का पूरा फसल पीला पड़ जाता है. एलोमाईजिक वायरल डिजीज है. इसमें सफेद मक्खी फैलाती है. सफेद मक्खी रेगिस्तान जनित पौधा के रस चूसने के बाद स्वस्थ पौधा पर बैठकर वायरस फैला देता है. इस बीमारी का सही समय से उपचार नहीं करने से फली का दाना भी पीला पड़ जाता है. सफेद मक्खी पपीता, करेला व मिर्चिईया घांस से उत्पन्न होता है. किसी भी खेत में पीला पौधा दिखे तो किसान उसे उखाड़ कर जला दे या पशु को खिला दें. इसके लिए इमिडाक्लोरोपीड नामक रसायनिक एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें. किसान प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में 200 मिली लीटर दवा का प्रयोग करें.
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