लैंड कंप्यूटराइजेशन की गडबड़ी से उलझ गया बंटवारा
भूमि सर्वेक्षण में लंबे अर्से से जोत कोड़ कर रहे रैयत अपने जमीन बचाने को लेकर चितिंत
औरंगाबाद/कुटुंबा. जिले के विभिन्न प्रखंडों में भूमि सर्वेक्षण कार्य शुरू हो गया है. फिलहाल पंचायतों में आम सभा का दौर जारी है. पंचायत स्तर पर आम सभा में सर्वेयर द्वारा सर्वे की पूरी प्रक्रिया की जानकारी दी जा रही है. इसके बावजूद किसान ठीक से समझ नहीं पा रहे है. ऐसे में लंबे अर्से से जोत-कोड़ कर रहे किसान भूमि सर्वेक्षण के दौरान अपने जमीन को बचाने को लेकर काफी चिंतित हैं. कोई जिला रिकार्ड रूम का चक्कर लगा रहा है, तो कोई सीओ कार्यालय में आरजू मिन्नत करता दिख रहा है. कहीं पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है. इसका मुख्य वजह है कि परिमार्जन से भी खाता, खेसरा व रकबा की गड़बड़ी की सुधार नहीं हो रही है. एलआरसी के कर्मचारियों के पास कोई जवाब देही नहीं रह गयी है. इधर, तकरीबन 110-115 वर्षों के बाद मिल्कियत के कागजात मांग किये जाने से रैयतों की नींद उड़ गयी है. ब्रिटिश शासन काल में 1912-14 के बाद न जाने कितनी बार जमीनों का हस्तांतरण हुआ है. तब से लेकर अबतक दर्जनों भागो में जमीन खंडित हुई है. इधर, जमाबंदी ऑनलाइन करने के क्रम में मनमानी की गयी है. उस समय किसी किसानों से मंतव्य नहीं लिया गया. किसानों को पैतृक भूमि अपने हाथ से खिसकने की चिंता सता रही है. किसानों का कहना है कि सरकार के राजस्व व भूमि सुधार विभाग सर्वेक्षण के नाम पर गड़े मुर्दे उखाड़कर सभी को जोखिम में डाल रही है. ब्रिटिश हुकुमत को जमीन के सर्वे करने में तकरीबन 100 वर्ष बीत गये थे. आजादी के पहले 1812 में भू सर्वेक्षण का काम शुरू किया गया था. वैसे आधिकारिक तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं है. इधर, जगदीशपुर पंचायत के पूर्व सरपंच व अमीन अलखदेव प्रसाद सिन्हा बताते हैं कि 1885 में टोडरमल ने जमीन का थोकवास सर्वे शुरू कराया था. वहीं ब्रिटिश शासनकाल का कलेस्ट्रल सर्वे 1913-14 में पूरा हुआ. अंग्रेज सरकार का ही अभिलेख अब तक कायम है. इसके बाद 1951 में दफा चालीस नकदी और जमींदारी उन्मूलन के पश्चात 1962 के करीब सरकारी स्तर पर जमीन का बुझारत किया था. उन्होनें बताया कि 1970-1971 में रिवीजनल सर्वे जिसे उस समय के तत्कालीन सरकार द्वारा नोट फाइनल करार किया गया. वर्ष 1980-1982 में शुरू हुई चकबंदी की प्रक्रिया भी पूरी नही हुई. बिहार के जनता दल के शासनकाल में उस समय के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने चकबंदी को स्थगित कर दिया था. उन्होंने बताया कि सर्वे की पेचींदगी प्रकिया तथा लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने की स्थिति को देखकर किसी सरकार ने अब तक भूमि सर्वेक्षण की हिम्मत नहीं जुटाई. वैसे भू-स्वामी जिनके दादे-परदादे के नाम पर जमाबंदी है. उन्हें जमीन का बंटवारा कर अपने नाम से लगान निर्धारण कराने में काफी परेशानी हुई है. जमाबंदी का पृष्ठ रजिस्ट्रर टू से गायब है. पूर्व सरपंच ने बताया कि जमींदारी प्रथा के दौरान का मालिक गैरमजुरवा, खरात, गोड़ईती जागीर, खिजमती जागीर व बकास्त की भूमि पर सरकार की नजर टिकी है. भूमि सर्वेक्षण के दौरान किसानों से रिटर्न की मांग की जा रही है. इतने दिनो बीतने के बाद अधिकांश किसानों के पास मालिक गैरमंजुरवा का रिटर्न नहीं रह गया है. जिला अभिलेखागार में सुरक्षित रखा हुआ खतियान से खाता, प्लॉट, रकबा और तौजी का कई पेज गल कर स्वतः नष्ट हो गया है. जमींदारी जाने के बाद जमींदारो ने 1952से 1955 के बीच रिटर्न जमाबंदी फाइल की थी. उस रिटर्न के बारे में भू-राजस्व विभाग से जुड़े कोई भी अधिकारी बताने से परहेज कर रहे है. उन्होंने बताया कि जमींदार उन्मूलन के पश्चात वर्ष 1956 में तत्कालीन सरकार द्वारा जमीन का रेंट फिक्सेशन किया गया था. इसके लिए जमाबंदी तैयार करायी गयी थी. उस समय से रैयतों के जमीन के मालगुजारी में नकद रुपये लिये जाने लगे थे. शुरुआती दौर में तैयार की गई जमाबंदी रजिस्ट्रर- टू का अधिकांश पेज नष्ट हो गया है. जमाबंदी पुनर्जीवित कराने में किसानों को फजीहत झेलनी पड़ रही है. फिलहाल की स्थिति में छुटे जमाबंदी ऑनलाइन कराने व परिमार्जन कराने से लेकर, दाखिल खारिज कराने, आपसी बंटवारा आदि जमीन से जुड़ी कार्य निबटारा कराने में किसानों को गंभीर रूप से परेशानी होती रही है. हैरत की बात तो यह कि पूर्व के दिनों में एक टेबल से पेपर आगे बढ़ने में महीनों समय बीत जाते थे. अंतिम दौर में अधिकारी तक पहुंचने से पहले ही कार्यालय से सारा पेपर गायब कर दिया जाता था. ऐसे में किसानों के जमीन से जुड़ी समस्या लाइजाज मर्ज बनी हुई है. स्थानीय किसान रामचंद्र सिंह और शिवनाथ पांडेय आदि बताते हैं कि भूमि सर्वेक्षण के दौरान किसानों को कई तरह के अड़चनों से गुजरना पड़ेगा. सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी श्रीराम उरांव ने बताया कि किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं है. उनके जमीन का आधार होना चाहिए. खतियान, केवाला, पर्चा आदि प्रूफ होना चाहिए. किसी जमीन से हटाने का कोई मामला नहीं है. तमाम तरह की चीजों की जानकारी लोगों को होनी चाहिए.
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