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अस्तित्व पर संकट : भू-माफियाओं ने बेच दिया रामरेखा का हृदय

शासनतंत्र की निष्क्रियता व सरंक्षण के अभाव में विलुप्त हो रही रामरेखा नदी

औरंगाबाद/ कुटुंबा. प्रकृति सरंचनाओं के साथ-साथ छेड़छाड़ करना अब मनुष्य को महंगा पड़ रहा है. जिस नदी, तालाब व जलाशय में पूरे वर्ष पानी दिखता था. आज बिल्कुल सूखा पड़ा है. यहां तक कि बरसात में भी नदियां पानी के लिए तरसती रहती है. अतक्रमण के कारण कई नदियों का अस्तित्व संकट में है. कभी कल-कल धारा के साथ बहने वाली राम रेखा नदी आज विलुप्त होने के कगार पर है. स्थिति यह है कि अब नदी का बालू समाप्त हो गया है, जिससे उसका अस्तित्व भी मिटता दिख रहा है. हर जगह सिर्फ मिट्टी ही दिखाई पड़ते हैं. पुराने जमाने में सालों भर बहने वाले उक्त नदी में धूल उड़ रही है. आठ महीने तक नदी सूखी रहती है. बरसात में भी यदा-कदा पानी का बहाव दिखता है. नदी के वजूद पर संकट गहराने से किनारे गांव के बसे लोगों को पीने के पानी के लिए तरसना पड़ रहा है. नदी के ऊपरी भाग में अवैध उत्खनन व बीच-बीच के अतिक्रमण से रामरेखा नदी कराह रही है. कभी उक्त नदी नवीनगर और कुटुंबा प्रखंड के दर्जनों गांव के लिए सिंचाई का प्रमुख साधन था. किसानों के फसल के लिए जीवनदायिनी थी. लोग स्नान से लेकर अन्य कार्य नदी के पानी से करते थे. कार्तिक माह में जगह-जगह छठ घाट तैयार कर भगवान सूर्य को अर्ध अर्पित किया जाता था. इधर, शासन तंत्र की निष्कियता व सरंक्षण के अभाव में रामरेखा नदी के अस्तित्व पर संकट का बादल गहराने लगा है. सधुईया खोह है उद्गम स्थल पावन पवित्र रामरेखा नदी झारखंड के उत्तरी सीमा सधुईया खोह स्थित ठंडा पहाड़ से निकली है और बैरिया जाकर पुनपुन नदी में विलीन हो जाती है. नदी के उद्गम स्थल पर गर्मी के तपती धूप में पानी मिलता है. इसके बावजूद उक्त नदी साधारण नाले के रूप में दिखती है. इसके आगे बढ़ने पर रमगरहा के पूर्वी क्षेत्र गोरेया घाट व चोरहा से निकले छोटे-छोटे नाले के आपस में मिलने कशियाड़ गांव के समीप से नदी के रूप धारण कर लेती है. इसके बाद चितवाबांध से शिकारपुर होते हुए बाघाकोल के बाद नवीनगर प्रखंड के बलथर, कलापहाड़, तेंदुआ, रामनगर आदि दर्जनों गांव में बांध बनाकर सिंचाई होती है. इसके बाद कुटुंबा प्रखंड के उरदाना सिंचाई करते हुए खैरा, शिवपुर तक पहुंचती है. पुनःशिवपुर से रामरेखा नदी पश्चिम होकर नवीनगर प्रखंड के बढकी पाढी व चांदखाप तथा पूरब तरफ से सुही व तुरता गांव के बधार सिचिंत करती है. इतना ही नहीं शिवपुर के समीप से नदी कई क्षेत्रो होकर गुजरती है. एक तरफ भटकुर के बगल से और दूसरे तरफ सोहर बिगहा पक्का बांध से होकर बोदी बांध तक पहुंचती है. उक्त बांध से जयहिंद तेंदुआ व खैरा तक सिंचाई करते हुए रामरेखा नदी बैरिया जाकर पुनपुन नदी में समाहित हो जाती है. भू-माफियाओं ने बेच दी नदी की जमीन रामरेखा नदी से इतनी काफी भूमि सिंचाई होने के बावजूद लोग इसके मुक्त प्रवाह पर खलल डालने से परहेज नहीं कर रहे है. कालापहाड़, तेंदुआ मिडिल स्कूल के तीन ओर से घुम-घुम कर कल-कल धारा के साथ बहने वाले नदी को कतिपय धनलोलुप व्यक्तियों द्वारा बेच दिया गया है. कुटुंबा प्रखंड क्षेत्र के ओरडीह गांव के समीप तात्कालीन उस समय के सरकार द्वारा वर्ष 1955 में पक्का बांध निर्माण कराया गया है. उक्त बांध से विभिन्न क्षेत्रों में हजारो एकड़ भूमि सिंचाई होती थी. विडंबना यह है तेंदुआ गांव के समीप दबंगों ने नदी को बेच दिया है. बेचे गये नदी की भूमि पर मकान बनाया जा रहा है. इधर, शिकारपुर से ओरडीह गांव के बधार तक नदी अतिक्रमण के चपेट में पड़ कर कराह रही है. यहां तक कई लोग नदी के जमीन कब्जा कर खेती कर रहे हैं.

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