गैस सिलिंडर से चल रही स्कूल वैन, खतरे में बच्चे
नौनिहालों के भविष्य से खिलवाड़, निजी स्कूलों में पढ़ा रहे अप्रशिक्षित शिक्षक
देव. देव प्रखंड क्षेत्र में संचालित निजी स्कूलों में विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है. अधिकतर स्कूल संचालक नियमों को ताक पर रखकर स्कूलों का संचालन कर रहे हैं. स्थिति यह है कि अधिकांश स्कूलों में शिक्षकों के पास बीएड या डीएलएड की डिग्री भी नहीं है. ऐसे स्कूल संचालकों के खिलाफ शिक्षा विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. सच कहा जाये, तो ऐसे विद्यालयों में हर तरह के शिक्षक रखे जाते है. मैट्रिक पास भी बच्चों को पढ़ाने में लगा है. समझा जा सकता है कि बच्चों के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा. बड़ी बात यह है कि निजी स्कूलों में चलने वाले वाहन बिना किसी मापदंड के चल रहे हैं. कुछ वाहनों में सीएनजी तो अधिकतर वाहनों में घरेलू गैस सिलेंडरों का उपयोग हो रहा है. आश्चर्य की बात तो यह है कि इस पर विभाग की नजर नहीं है. नगर में चारों तरफ फैले निजी स्कूलों में जमकर मनमानी की जा रही है. जिसके पास स्कूल भवन नहीं है वह भी किराये के भवन में मिडिल की मान्यता के बाद भी हाई स्कूल से लेकर हायर सेकंडरी तक की कक्षाएं संचालित करने में लगा हुआ है. साथ ही स्कूल का स्टेंडर्ड बनाने के लिए बिना फिटनेस के वाहनों को चलाया जा रहा है. स्कूल वाहनों के प्रति जिम्मेदारों का रवैया ढीला है. बिना व्यावसायिक पंजीकरण नंबर की गाड़ी में ही बच्चों को ढोया जा रहा है. चालकों के पास ड्राइविंग लाइसेंस तक नहीं हैं. ऐसे में घर से स्कूल तक का बच्चों का सफर खतरे में हैं. सड़कों पर अनफिट स्कूल वाहन धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं. इनकी कोई गाइड लाइन निर्धारित नहीं है. अधिकांश वाहन सिंगल व्हील चल रहे हैं. ऊबड़-खाबड़ वाले रास्तों पर कभी भी पलट सकती है. स्कूल वाहनों में न तो अग्निशमन यंत्र होते हैं और न प्रथम उपचार बाक्स होते हैं. इस तरह के हादसे पहले भी हो चुके हैं. शहर के कई स्कूलों के वाहनों में बच्चे तो होते हैं, लेकिन वाहन किस स्कूल का है इसका जिक्र वाहन पर नहीं होता है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया हुआ है कि वाहन पर स्कूल का नाम व फोन नंबर जरूर होना चाहिए. कई प्राइवेट स्कूलों के वाहनों में क्षमता से अधिक बच्चों को भरकर ले जाया जाता है. अभिभावक भी यह सब कुछ देखकर मौन हैं, क्योंकि स्कूल वाहन चालक को मना किया तो उनके बच्चे स्कूल कैसे जायेंगे. यह सोचकर वह भी चुप्पी साध लेते हैं, लेकिन कभी हादसा हो गया तो उसका जिम्मेदार कौन होगा. यदि स्कूल वाहन पर नाम नंबर लिखा हो तो कोई हादसा होने पर कम से कम स्कूल में फोन कर सूचित तो किया जा सके. किताबों के दाम में 10 प्रतिशत की हुई वृद्धि किताबों के बोझ तले बच्चों को बचपन दब सा गया है. स्कूल संचालक खुद के चयनित निजी प्रकाशकों के रेफरेंस से पुस्तक चला रहे हैं. यहीं नहीं पिछले वर्ष की तुलना में किताबों की कीमत में 10 प्रतिशत की वृद्धि भी हुई है. सीबीएसई से मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों में एनसीईआरटी किताब न चला कर निजी प्रकाशकों की पुस्तकें अधिक दामों में बेची जा रही है. सबसे हैरत की बात है कि कक्षा छह से आठ में चलने वाली एनसीइआरटी की पुस्तक बाजार से गायब है. अभिभावकों को निजी प्रकाशक महंगी किताबें तो खरीदनी पड़ ही रही है और तो और एनसीइआरटी की पुस्तक भी महंगे कीमत में लेने के मजबूर हैं. कक्षा छह से आठ तक में एनसीइआरटी की हिंदी, गणित, विज्ञान, सोशल साइंस, अंग्रेजी की पुस्तकें पढ़ाई जाती हैं. निजी स्कूल यू डायस से पंजीकृत नहीं, दाखिले में दिक्कत प्रखंड में निजी स्कूल अभी भी यू-डायस (यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफार्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन) से पंजीकृत नहीं हैं. ऐसे में इन स्कूलों में पढ़ने वाले हजारों बच्चों का भविष्य संकट में पड़ गया है. अब जब नया सत्र शुरू हुआ है तो इन स्कूलों में पढ़नेवाले कई बच्चों के अभिभावक अन्य स्कूल में दाखिला करवा रहे हैं. टीसी पर स्कूल का यू- डायस नंबर नहीं होने से इन्हें दाखिला नहीं मिल पा रहा. अभिभावक इसकी शिकायत लेकर संबंधित प्रखंड शिक्षा कार्यालय पहुंच रहे हैं. ज्ञात हो कि राज्य के सभी सरकारी और निजी स्कूलों को यू-डायस से पंजीकृत होना अनिवार्य है,लेकिन अब भी निजी स्कूल यू-डायस से पंजीकृत होने में रुचि नहीं लेते हैं. बिना मान्यता के चल रहे दर्जनों स्कूलों बिना मान्यता वाले विद्यालयों पर कठोर कार्रवाई का सरकार का आदेश है. प्राइवेट स्कूलों को भी शिक्षा विभाग के पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य कर दिया गया है.यह आदेश देव प्रखंड में हवा-हवाई साबित हो रहा है. बिना मान्यता के चल रहे विद्यालयों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पा रही है. प्रखंड क्षेत्र में अभी भी दर्जनों स्कूल बगैर मानक पूरा किए बेरोकटोक संचालित हो रहे हैं. क्या कहते है बीडीओ फोटो नंबर-10- बीडीओ अंकेशा यादव कोई भी विद्यालय बिना मान्यता के संचालित होना अवैध है. पर्याप्त संसाधन, आधारभूत संरचना, योग्य व प्रशिक्षित शिक्षक, स्वच्छ वातावरण, खेल मैदान व सरकार से मान्यता जरूरी है. नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कठोर कार्रवाई की जायेगी. अंकेशा यादव, बीडीओ, देव
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