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1942 के आंदोलन में अरवल में हुए थे गिरफ्तार

97 वर्ष की उम्र में गुप्तेश्वर सिंह ने सुनायी स्वतंत्रता संग्राम की दास्तां

By Prabhat Khabar News Desk | August 13, 2024 10:34 PM

गोह. देश को आजाद कराने में न जाने कितने महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. उनमें से कुछ गुमनामी के दौर में रहे, लेकिन देश आज भी उनके त्याग व समर्पण को याद करता है, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए न सिर्फ अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, बल्कि अंग्रेजों की लाठियां खायी. अंग्रेजों की क्रूरता के शिकार हुए. अधिकांश स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गवासी हो गये, मगर कुछ अभी भी जीवित हैं. जो आज भी स्वतंत्रता संग्राम की यादों को साझा करते हैं. आज देश जब आजादी का 78वां वर्षगांठ मना रहा है, तो हम सभी अपने महान विभूतियों के कृतित्व को याद कर रहे है. औरंगाबाद जिले के हसपुरा प्रखंड के रतनपुर निवासी गुप्तेश्वर सिंह ने देश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. 97 वर्ष की अवस्था में भी जब उनसे आजादी की लड़ाई का संस्मरण जाना गया, तो उन्होंने प्रभात खबर के साथ उन दास्तां को साझा किया. भले ही, उनकी यादाश्त कमजोर हो गयी हो और सुनाई कम देता हो, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने संस्मरण धुंधली यादों के सहारे ताजा किया. आज भी उन्हें याद है कि पहली बार में वे 1942 के आंदोलन में अरवल में गिरफ्तार हुए थे. अरवल के सकरी में उनका ननिहाल था. पटना गोली कांड के विरोध में देशभर में उग्र प्रदर्शन हो रहा था. इसी क्रम में अरवल में भी उग्र प्रदर्शन हो रहा था. तब वे छठी कक्षा के छात्र थे. अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़कर वे देश को आजाद कराने के संकल्प के साथ आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. अगस्त 1942 में हुए प्रदर्शन में अरवल में युवाओं की टोली में वे भी शामिल थे. उन्हें अंग्रेज पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. करीब छह महीना जेल में रहे. पहले उन्हें जहानाबाद जेल में भेजा गया. उसके बाद उन्हें पटना जेल में भेज दिया गया. जेल से छूटने के बाद उन्होंने आजादी की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों में शामिल रहे और अंग्रेजों के छक्के छुड़ाते रहे. वे तीन बार जेल गये. हालांकि, वे कब-कब जेल गये ये यादें अब धुंधली हो चुकी है. लेकिन, आजादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों की क्रूरता के शिकार हुए. फिर भी उन्होंने हार नहीं माना. देश को आजाद कराने का संकल्प लिया. स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों में शामिल रहे. 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ जो भारत मां का जयकारा लगाते हुए युवाओं की टोली ने भ्रमण किया. उस टोली में यह भी शामिल थे. श्री सिंह के आधार कार्ड के अनुसार, उनका जन्म एक जनवरी 1928 को हुआ था. उनके पिता का नाम यदुनाथ सिंह और माता का नाम मुंगेश्वरी देवी था. वे दो भाई थे. बचपन से ही उनके अंदर देशप्रेम की ललक थी और देश को आजाद कराने के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा था. वे अपने ननिहाल आया-जाया करते थे. इसी क्रम में उन्होंने अरवल में देश की आजादी की लड़ाई में भाग लिया. उसके बाद औरंगाबाद जिले में भी आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहे और उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने बताया कि तब समाज में मेल-जोल का वातावरण रहता था. लोग एक दूसरे के सुख-दुख में काम आते थे. उन्हें इस बात का मलाल है कि आज समाज में लोग बंटते जा रहे हैं. सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार हावी होता जा रहा है. तीन पुत्रों के पिता श्री सिंह कभी अपने गांव रतनपुर में रहते हैं तो कभी हसपुरा में रहते हैं. उनके पुत्र डॉ रंजीत कुमार प्रैक्टिशनर हैं. अशोक कुमार बोकारो में जॉब करते हैं. संजय कुमार व्यवसाई है. उनकी एकमात्र पुत्री पूनम कुमारी है.

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