गंगा दशहारा आज, कल निर्जला एकादशी का अनुष्ठान रखेंगे सनातन धर्मावलंबी
निर्जला एकादशी करने से आती है सुख और समृद्धि होता है कष्टों का निवारण
औरंगाबाद. संत महात्माओं व विद्वानों ने सनातन संस्कृति में विविध व्रत त्योहारों का मार्गदर्शन किया है, जिनके अनुष्ठान मात्र से ही मनुष्य के कष्टों का निवारण होता है. विधि विधान से अनुष्ठान रखने पर उनका आत्मबल बढ़ता है व अपने आप में ईश्वर के प्रति विश्वास जागृत होता है. इसी तरह से गंगा दशहरा हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है. यह त्योहार प्रत्येक वर्ष जेठ शुक्ल दशमी को मनाया जाता है. ज्योतिर्विद डॉ हेरम्ब कुमार मिश्र ने बताया कि इस वर्ष रविवार यानि 16 जून को गंगा दशहरा धूमधाम से मनाया जायेगा. गंगा दशहरा को ही गंगा मां का धरती पर अवतरण हुआ था. भगीरथ ने अपनी कठिन साधना से माता गंगा को धरती पर लाया था. इस दिन गंगा स्नान का बहुत ही खास महत्व बताया गया है. भविष्य व स्कंद पुराण में इसका विशेष वर्णन है. पुराणों में बताया गया है कि इस दिन गंगा स्नान से कायिक, वाचिक और मानसिक तीनों तरह के पापों से मुक्ति मिलती है. रामेश्वरम में भगवान ने आज ही के दिन शिवलिंग की थी स्थापना प्रभु श्रीराम ने सीता हरण के पश्चात लंका में पहुंचने के लिए सेतु बंधन के समय आज ही के दिन रामेश्वरम में भगवान शिव की स्थापना की थी. ज्योतिर्विद ने बताया कि गायत्री जयंती भी आज ही के दिन मनायी जाती है. वहीं गंगा दशहरा के ठीक दूसरे दिन 17 जून सोमवार को निर्जला एकादशी का व्रत किया जायेगा. यह ज्येष्ठ शुक्लपक्ष एकादशी को की जाती है. शास्त्रों में निर्जला एकादशी का व्रतों में अन्यतम स्थान बताया गया है. सभी वैदिक नियमों का पालन करते हुए जो व्यक्ति निर्जला एकादशी करते हैं उन्हें सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है और उन पर भगवान विष्णु की कृपा सदा बनी रहती है. निर्जला एकादशी को बिना अन्न जल के रहकर पूजा पाठ एवं दान पुण्य करने का बहुत ही महत्व है. इस दिन शर्करा युक्त जल से भरा घड़ा दान करने से विशेष फल प्राप्त होता है. एकादशी में श्रद्धालु उपवास रहकर भगवान विष्णु की उपासना करते हैं. निर्जला एकादशी करने से मिलती है शारीरिक व मानसिक शांति ज्योतिर्विद ने बताया का निर्जला एकादशी का अनुष्ठान मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है. उन्होंने धर्म शास्त्रों का हवाला देते हुए बताया कि वेदव्यास जी ने भीमसेन जी से कहा कि वर्ष भर की सभी एकादशी पुण्यदायक है पर किसी कारणवश सभी एकादशी न भी कर पाये, तो एक निर्जला एकादशी करने मात्र से ही सभी एकादशी के समान फल प्राप्त हो जाते हैं. इसी व्रत के करने से भीमसेन जी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी. इसी कारण इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी भी कहा जाता है. इस व्रत में पवित्रता बहुत आवश्यक है. उपासना के दिन प्रातःकाल आचमन के उपरांत एकादशी के सूर्योदय से अगले दिन के सूर्योदय तक अन्न, जल कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए. इसके साथ ही अपनी वाणी पर संगम रखना चाहिए. शारीरिक पवित्रता के साथ-साथ मानसिक पवित्रता का भी ध्यान रखना जरूरी है. विदित हो कि भारत में सनातन धर्म मूल है. उक्त धर्म में सप्ताह में कुछ न कुछ पर्व त्योहार आते रहते है. वैदिक व लौकिक परंपरा से जुड़े अनुयायी अनुष्ठान भी रखते है. इसके बावजूद भी कई ऐसे लोग हैं जिन्हें पर्व त्योहार के बारे में जानकारी नहीं होती है.
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