मुजफ्फरपुर. बागमती परियोजना के मुआवजा विवाद का निपटारा अब भू-अर्जन प्राधिकार करेगा. डेढ़ दशक पुराने मामले के त्वरित निष्पादन को लेकर भू-अर्जन विभाग के सहायक निदेशक राकेश कुमार ने जिला प्रशासन को निर्देश दिया है. दरअसल डीएम और कमिश्नर ने मामले काे सुलझाने के लिए विभाग से मार्गदर्शन मांगा था. विभाग के फैसले से लम्बे समय से प्रशासन व रैयतों में चल रहे विवाद का निपटारा अब कानून के सहारे किये जाने का रास्ता साफ हो गया है. उन्होंने निर्देश दिया है कि बागमती परियोजना के मुआवजा विवाद के सभी मामलों को भूमि अर्जन पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकार को भेज दिया जाए.
यह परियोजना वर्ष 2007-08 से लंबित है. इसमें जल संसाधन विभाग व भू अर्जन निदेशालय ने जमीन अधिग्रहण का प्रस्ताव तैयार किया था. विशेष भूअर्जन कार्यालय के अधिकारियों ने मुआवजा भुगतान में गड़बड़ी की और उनपर कार्रवाई की प्रक्रिया चल रही है. उन्होंने कहा कि परियोजना के तहत मुआवजा भुगतान के लिए जिला प्रशासन ने मंतव्य की मांग की है.
यह मंतव्य जल संसाधन विभाग की अनुशंसा के बाद ही किया जा सकता है. हालांकि उन्होंने कहा है कि भू अर्जन अधिनियम के तहत एक जनवरी 2014 से प्रभावी धारा के अनुपालन के संबंध में पूर्व में निर्देश दिया गया है. इसमें यह भी प्रावधान है कि यदि किसी तरह का विवाद उत्पन्न होता है तो मामले का निष्पादन प्राधिकार के तहत किया जाएगा.
बागमती परियोजना के तहत कटौझा से दरभंगा के केवटसा तक करीब 41 किलोमीटर में यह बांध है. बीच में कहीं कहीं विरोध के कारण यह रूका है, लेकिन बाकी जगहों पर इसका निर्माण हो गया है. दोनों तटबंध के बीच बसे लोगों के मकान मयसहन का भुगतान किया जाना है. इसके तहत 40 गांव के करीब पांच सौ रैयत आते हैं. इनमें से केवल बेनीपुर गांव के ही रैयतों के मकान मयसहन का मुआवजा व पुनर्वास का जमीन मिल पाया है. बाकी रैयतों को मुआवजा भुगतान अभी तक लंबित है.