कुटुंबा के कर्मडीह गांव के ब्रह्मदेव नारायण सिंह ने आजादी की लड़ाई में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा था. 1942 में कुटुंबा मिडिल स्कूल के समीप अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की तैयारी को लेकर मीटिंग करने के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर गया के सेंट्रल जेल में डाल दिया गया और वहीं उनकी मौत हो गयी. गांव के लोग और उनके परिजन बताते हैं कि जेल में उन्हें काफी यातनाएं दी गयीं. गया के सेंट्रल जेल में बर्फ की सिल्ली पर उनकी पिटाई की जाती थी. गांव के पूर्व जिला परिषद सदस्य संजय सज्जन सिंह ने बताया कि 1942 से पहले भी वे पांच बार जेल जा चुके थे. हर बार चार से छह महीने तक जेल में रहे. लगातार यातनाएं मिलने के बाद भी उन्होंने आजादी की लड़ाई जारी रखी.
1942 में ब्रह्मदेव बाबू को जब अंतिम बार गिरफ्तार किया गया, तब उनकी उम्र 40 वर्ष की थी. गिरफ्तारी के तीन दिन बाद ही अंग्रेज अफसर आइएफ साहब दल बल के साथ गांव पहुंचे और मिट्टी तेल डाल कर उनके घर को जला दिया. इसके बाद उनके परिजन बेघर हो गये थे. अंग्रेज अफसरों ने आसपास के लोगों पर भी उनके परिजनों को भोजन, पानी, वस्त्र व अन्य किसी तरह का सहयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया था.
ब्रह्मदेव बाबू गेट स्कूल(अनुग्रह इंटर कॉलेज) औरंगाबाद के छात्र थे. उन्होंने 1920 में मैट्रिक की परीक्षा पास की, तब पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम चरम पर था. ऐसे में उनके मन में देशभक्ति का जज्बा जगा और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. वे अपने पिता रामेश्वर सिंह की छोटी संतान थे. घर के अन्य सदस्यों द्वारा शादी करने के लिए कहा गया, तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया. उनका कहना था कि उनका जीवन देश के लिए समर्पित है.परिजनों ने काफी समझाने का प्रयास किया, फिर भी वह अपने फैसले पर अडिग रहे और शादी नहीं की.