Loading election data...

Azadi Ka Amrit Mahotsav : 8 वर्ष की उम्र में क्रांतिकारी बन गये थे बैकुंठ शुक्ल

अंग्रेजों में इस कदर खौफ था कि अंग्रेजों ने मात्र 27 वर्ष की आयु में ही सेंट्रल जेल में फांसी दे दी. आजादी के इस दीवाने ने शहीदे आजम भगत .सह, राजगुरु और सुखदेव के विरुद्ध गवाही देने वाले गद्दार फणीन्द्र नाथ घोष की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

By Contributor | July 30, 2022 8:30 PM
an image

आजादी अमृत महोत्सव : शहीद-ए-आजम बैकुंठ शुक्ल का जन्म 15 मई, 1907 को पुराने मुजफ्फरपुर (वर्तमान वैशाली) के लालगंज थाना के जलालपुर गांव में हुआ था. शुरुआती शिक्षा गांव में ही पूरी करने के बाद वे अपनी आजीविका चलाने के लिए पड़ोस के मथुरापुर गांव के प्राथमिक स्कूल में पढ़ाने लगे. लेकिन, क्रांतिकारी स्वभाव होने के कारण अध्यापन में उनका मन नहीं लगा. इसके बाद महज 18 वर्ष की उम्र में अपने ही गांव के महान क्रांतिकारी हिंदुस्तानी सोशलिस्ट रिपब्लिकन का बिहार में नेतृत्व कर रहे शेरे बिहार योगेंद्र शुक्ला के संपर्क में आये और क्रांतिकारी बन गये और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. वर्ष 1930 में गांधी जी के नेतृत्व में शुरू हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया.

मुखबिर फणींद्रनाथ घोष की हत्या करने की ली जिम्मेवारी

1931 में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर षड्यंत्र कांड में फांसी की सजा के एलान से पूरे भारत में गुस्से की लहर फैल गयी थी. रिवोल्यूशनरी पार्टी का एक सदस्य फणींद्रनाथ घोष अंग्रेजी हुकूमत के दबाव और लालच में आकर सरकारी गवाह बन गया और उसकी गवाही पर तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनायी गयी थी. बैकुंठ शुक्ल और चंद्रमा सिंह को फणींद्रनाथ घोष की हत्या की जिम्मेवारी सौंपी गयी.

फणींद्रनाथ को मौत के घाट उतार लिया देश के साथ विश्वासघात करने का बदला

देश के साथ विश्वासघात करने वाले फणींद्रनाथ घोष की तलाश में बैकुंठ शुक्ल व चंद्रमा सिंह दोनों निकल पड़े. 9 नवंबर, 1932 को जब फणींद्र घोष हलवाई की दुकान के बाहर बैठा था, उसी समय अचानक बैकुंठ शुक्ल ने घोष पर खुखरी से हमला कर दिया. मौके पर ही उसकी मौत हो गयी.

Exit mobile version