आजादी का अमृत महोत्सव: आजादी के दीवाने गुणी झा के विद्रोही तेवर से ब्रिटिश हुकूमत भी सहम गयी थी. उन पर विद्रोही होने के अलावा डाका डालने का भी आरोप लगाया गया था. डकैती का यह मामला तब इतना चर्चित था कि भागलपुर के कमिश्नर मिस्टर यूल ने इसका ट्रायल खुद ही किया था. खुद ही प्रस्तावक या शिकायती बने और खुद ही मामले को दर्ज भी किया था. इतना ही नहीं, विभिन्न जगहों पर पहुंच कर गुणी झा के विरोध में खुद ही साक्ष्य इकट्ठा किये थे.
गुणी झा पर क्या था आरोप
गुणी झा पर नमक से भरे नावों को लूटने का आरोप था. उन्होंने कहलगांव के अजमा ग्राम के पास रात के एक बजे नमक से लदे सात नावों पर हमला किया था. लूट का विरोध करने वाले अंग्रजों के पिट्ठ बने नाविकों को उनके दल ने पीटा और आठ लोगों को रस्सियों से बांध कर गंगा में बहा दिया. हमले के बाद पांच नावों को वह अपने साथ ले जा रहे थे. तभी पुलिस के हत्थे चढ़ गये. वह गिरफ्तार कर लिए गये. कमिश्नर यूल की सक्रियता ने उनको और उनके साथियों को लूट और डकैती का दोषी करार दे दिया. यूल को भारतीयों से तब बहुत खुन्नस हो आयी थी. वजह 1857 के विद्रोह से उत्पन्न चुनौतियां थीं. लिहाजा, वह किसी भी हाल में इस घटना के आरोपियों को बख्शना नहीं चाहते थे.
गुणी झा को मिली थी पांच साल की सजा
इस केस की सुनवाई के वक्त मल्लाहों का बयान था कि उन्हें अपनी गिरफ्त में लेने से पहले कहा था कंपनी का राज खत्म हो गया है, अब हमारा राज है. इसे धमकी मानते हुए यूल ने इसे ‘देशद्रोह’ की संज्ञा दे दी. अब मामला संगीन होकर गंभीर अपराध की श्रेणी में आ गया. यूल ने इस पर टिप्पणी दी कि गुणी झा अराजकता फैला कर लाभ उठाना चाहते हैं. झा के वकील ने सजा माफ करने का आवेदन दिया, लेकिन कमिश्नर ने किसी भी प्रकार की छूट देने से इंकार कर दिया. इस मामले में गुणी झा को पांच साल की सख्त सजा हुई. कैद से वापसी के तीसरे दिन उनकी मृत्यु हो गयी. आज इस गुमनाम शहीद को कोई नहीं जानता है.