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Azadi Ka Amrit Mahotsav: बिहार की ‍गुमनाम वीरांगनाएं, जिनसे थर-थर कांपते थे अंग्रेज

Azadi Ka Amrit Mahotsav: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पुरुषों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, तो महिलाएं भी पीछे नहीं रही थी. इस आर्टिकल में हम आपको बिहार की उन वीरांगनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी वीरता की कहानी पढ़कर आप भी गर्व महसूस करेंगे.

भारत की आजादी के लिए संघर्षों के कई किस्से आप लोगों ने सुने होंगे. क्योंकि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोही घटनाओ का लंबा इतिहास है. इनमें से कई घटनाएं लोगों को मुंहजबानी याद हैं. मगर कई बड़ी घटनाएं ऐसी भी हैं जो समय के साथ भुला दी गईं. देश की आजादी की लड़ाई में पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. कई महिलाएं हैं जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. रानी लक्ष्मीबाई, सावित्रीबाई फुले, कस्तूरबा गांधी, लक्ष्मी सहगल, सरोजिनी नायडू और बेगम हजरत महल ऐसे नाम हैं जिनका इतिहास गौरवशाली है. अब हम आपको बिहार की उन वीरांगनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी वीरता की कहानी पढ़कर आप भी गर्व महसूस करेंगे.

इतिहास के पन्नों में गुमनाम हो गईं ये वीरांगनाएं

भारत में समानता का विमर्श सृष्टि के आरम्भ से ही है क्योंकि एकमात्र भारत ही है जहां पर अर्द्धनारीश्वर की अवधारणा है. एकमात्र भारत ही है जहां पर स्त्री एवं पुरुष को समान समझा जाता है. हां, यह समानता उस समाजवादी समानता से एकदम अलग है जो बाजार के आधार पर समानता का सिद्धांत गढ़ता है. यही कारण है कि स्त्रीवाद की प्रथम लहर, द्वितीय लहर और तृतीय लहर के बीच उपजे पश्चिमी विमर्श के मध्य भारत में स्त्रियों की उपलब्धियां क्या थीं, वह सब दबकर रह जाता है. उनके चेहरे दिखाई ही नहीं देते, जिन्होनें अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाया था.

राम प्यारी देवी ने नमक सत्याग्रह में लिया था भाग

राम प्यारी देवी का विवाह जगत नारायण लाल से 12 मार्च 1930 को हुआ था और 30 मार्च को उन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लिया था. इस दौरान उन्हें एक साल की जेल हुई थी. वह इतनी लोकप्रिय थी कि उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्य बनने के लिए किसान नेता सहजानंद सरस्वती को हरा दिया था. वे इस पद पर 1939 तक सदस्य रही थी. उन्हें उनके राजनीतिक भाषणों के लिए कई बार गिरफ्तार किया गया था.

गांधी जी से प्रभावितु हुईं थी विंध्यवासिनी देवी

1919 में गांधी जी से मिलने के बाद विंध्यवासिनी देवी ने खुद को सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया था. वह कांग्रेस की स्थायी सदस्य भी बनीं थी. उनकी देशभक्ति ने कई लोगों को प्रभावित किया और उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के उन्होंने अपनी बेटियों को विदेशी सामान और शराब की बिक्री का विरोध करने के लिए भेजा. 1930 में नमक आंदोलन के दौरान विंध्यवासिनी देवी को अन्य महिलाओं के साथ गिरफ्तार किया गया था. उन्हें 1932 में मुजफ्फरपुर जेल भेज दिया गया था और सरकार ने कन्या स्वयं सेविका दल को अवैध घोषित कर दिया था.

जय प्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती देवी

प्रभावती देवी का विवाह 16 मई 1920 को जय प्रकाश नारायण से हुआ था. जिसके बाद जय प्रकाश ने प्रभावती देवी को चरखा से बुनाई सीखने की सलाह दी. दंपति ने संयुक्त रूप से फैसला किया थी कि जब तक भारत अंग्रेजों से मुक्त नहीं हो जाता, तब तक वे कोई संतान नहीं करेंगे. 1932 में विदेशी सामानों के बहिष्कार के आह्वान के दौरान उन्हें लखनऊ में गिरफ्तार किया गया था. उन्हें गांधी जी और राजेंद्र प्रसाद द्वारा बालिका स्वयंसेवकों को संगठित करने का काम सौंपा गया था. प्रभावती ने गांधीवादी मॉडल पर चरखे या चरखा आंदोलन में महिलाओं को शामिल करने के लिए पटना में महिला चरखा समिति की स्थापना की जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ, तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया और भागलपुर जेल भेज दिया गया. 15 अप्रैल 1973 को उनकी उन्नत कैंसर के कारण मृत्यु हो गई.

तारा रानी श्रीवास्तव की कहानी है अनूठी

तारा रानी श्रीवास्तव का जन्म बिहार के सारण में एक साधारण परिवार में हुआ था और उनकी शादी फूलेंदु बाबू से हुई थी. वह अपने गांव और उसके आसपास महिलाओं को संगठित करती थी और अपने पति के साथ औपनिवेशिक शासन के खिलाफ विरोध मार्च निकालती थी. वे 1942 में गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए, विरोध को नियंत्रित किया, और सीवान पुलिस स्टेशन की छत पर भारतीय ध्वज फहराने की योजना बनाई. वे भीड़ इकट्ठा करने में कामयाब रहे और ‘इंकलाब’ के नारे लगाते हुए सीवान पुलिस स्टेशन की ओर मार्च शुरू किया. जब वे उनकी ओर मार्च कर रहे थे, तो पुलिस ने लाठीचार्ज करना शुरू कर दिया. जब विरोध पर काबू नहीं पाया जा सका तो पुलिस ने फायरिंग कर दी. जिसमें की फुलेंदु बाबू को गोली लगी और वे जमीन पर गिर गए लेकिन फिर भी निडर, तारा ने अपनी साड़ी की मदद से उसे बांध दिया और भारतीय झंडा पकड़े हुए ‘इंकलाब’ के नारे लगाते हुए भीड़ को स्टेशन की ओर ले जाती रही. तारा देवी के वापस आने पर उनके पति की मृत्यु हो गई थी. लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करना जारी रखा.

भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुई थी तारकेश्वरी सिन्हा

तारकेश्वरी का जन्म 26 दिसंबर, 1926 को बिहार में हुआ था. पटना के बांकीपुर कॉलेज की छात्रा तारकेश्वरी 16 साल की छोटी उम्र में 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गई थी. 1945 में लाल किले पर भारतीय राष्ट्रीय सेना के सैनिकों के परीक्षणों ने उन्हें बहुत आकर्षित किया और उनका राजनीति की ओर झुकाव शुरु हुआ. जिसके बाद वे जल्द ही बिहार छात्र कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गई. तारकेश्वरी उन लोगों में से एक थी जिन्होंने नालंदा में महात्मा गांधी की अगवानी की थी. तारकेश्वरी सिन्हा का 14 अगस्त, 2007 को नई दिल्ली में निधन हो गया था.

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