आजादी का अमृत महोत्सव : स्वतंत्रता संग्राम में जगत नारायण लाल ने लगभग आठ वर्ष कारावास में बिताये थे. पहली बार उन्हें नवंबर, 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स के पटना आगमन के विरोध का नेतृत्व करने के आरोप में छह महीने की जेल की सजा दी गयी. उन्हें बक्सर बक्सर जेल भेज दिया गया, जहां कैदियों के साथ बुरे बरताव के खिलाफ आवाज उठाने के कारण जेल प्रशासन ने उन्हें एक संकरी कोठरी में दो महीने की एकांत सजा दी. राष्ट्रीय आंदोलन में डा राजेंद्र प्रसाद, पंडित मदन मोहन मालवीय एवं लाला लाजपत राय की अगुवाइ में उन्होंने हिस्सा लिया. जगत नारायण लाल का जन्म 21 जुलाई, 1896 को तत्कालीन शाहाबाद के ग्राम अखगांव में हुआ था. उन्होंने इलाहाबाद विवि से एलएलबी तथा अर्थशास्त्र में एमए किया था. इसके बाद वे 1917 से पटना उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने लगे.
एक वर्ष की सजा दे कर हजारीबाग जेल भेज दिया गया
असहयोग आंदोलन के शुरू होने पर जगत नारायण लाल ने वकालत छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े. जब सरकारी शिक्षा के बहिष्कार के लिए पटना में बिहार नेशनल कॉलेज की स्थापना हुई तो उन्हे अर्थशास्त्र का प्रोफेसर नियुक्त किया गया.
1922 में जेल से मुक्त होने के उपरांत वे फिर से राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय हो गये.1926 के प्रांतीय परिषदों के चुनाव में जगत बाबू, लाला लाजपत राय की कांग्रेस स्वतंत्र दल से चुनाव जीत कर बिहार विधान परिषद के सदस्य बन. इस दौरान उन्होंने मंदिरों एवं मठों के सुधार के लिए असेंबली में टेंपल एंडोमेंट बिल प्रस्तुत किया, जिसका उद्देश्य मंदिर एवम मठों के प्रबंधन में सुधार करना था. जगत नारायण लाल पटना में महावीर नामक साप्ताहिक अखबार का संपादन किया करते थे.1928 में उन्होंने एक लेख में देश में सांप्रदायिक तनाव के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया. इसके लिए उन पर देशद्रोह के अभियोग में एक वर्ष की सजा दे कर हजारीबाग जेल भेज दिया गया. यह मुकद्दमा पूरे देश में काफी चर्चित रहा. 1930 में नमक सत्याग्रह के प्रारंभ होने पर उन्होंने बिहटा में नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन किया. जिसके उपरांत उन्हें गिरफ्तार कर एक वर्ष की सजा दी गयी और हजारीबाग जेल में रखा गया.
जब जगत बाबू भूमिगत होकर आंदोलन का संचालन करने लगे
1940 में गांधी जी के व्यक्तिगत सत्याग्रह के आह्वान पर उन्होंने भी व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया. इसके कारण उन्हें एक वर्ष की कारावास हुई. जब सी राजगोपालाचारी ने मई 1942 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की इलाहाबाद बैठक में मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग को स्वीकार करने का प्रस्ताव दिया तो उसके विरोध में जगत नारायण लाल ने अपना प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जो जगत नारायण लाल प्रस्ताव के नाम से प्रसिद्ध है. राजगोपालाचारी का प्रस्ताव 15 के मुकाबले 117 वोट से पराजित हो गया तथा इसके उपरांत राजगोपालाचारी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया.9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के आह्वाहन के उपरांत जब बिहार के शीर्ष नेतृत्व को बंदी बना लिया गया तो जगत बाबू भूमिगत होकर आंदोलन का संचालन करने लगे. उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों का क्षेत्र बख्तियारपुर एवं नालंदा जिला था. उनपर जिंदा या मुर्दा का इनाम घोषित कर दिया गया और सीआइडी उनकी खोज में लग गयी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गांव कल्याण बीघा के एक बुजुर्ग निवासी सरयू सिंह ने 2012 में अपने संस्मरण से कहा कि ‘जगत बाबू दो रात से खाए नही थे, कल्याण बीघा में उन्होंने रात में शरण दी गई. गांव में उन्हे खाना खिलाया गया तथा रात्रि विश्राम के उपरांत वे प्रातः वहां से निकल गए. जब वे बिरगु मिल्खी गांव के पास पुनपुन नदी पार कर रहे थे, तो उन्हे बीच नदी में सीआइडी द्वारा घेर कर बंदी बना लिया गया. उन्हे तीन वर्ष की सजा देकर हजारीबाग जेल भेज दिया गया.
दानापुर से चुने गए तथा उन्हें डिप्टी स्पीकर का प्रभार मिला
स्वतंत्रता उपरांत वे बिहार के प्रथम विधान सभा में दानापुर से चुने गए तथा उन्हें डिप्टी स्पीकर का प्रभार मिला.इसके उपरांत उन्होंने बिहार मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में अनेक जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया. स्वतंत्रता उपरांत उन्होंने खगौल में एक कॉलेज की स्थापना की जो जगत नारायण लाल कॉलेज के रूप में पटना के उत्कृष्ट कॉलेजों में से एक है. इनका निधन 03 दिसंबर, 1966 को पटना में हो गया.