सीवान जिले के महाराजगंज प्रखंड के बंगरा गांव की महिला वीरांगना तारा देवी ने आजादी की खातिर अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, लेकिन इनकी शहादत गुमनाम रही. आजादी के बाद उनके योगदान और नाम को भुला दिया गया. शहीद फुलेंदू उर्फ फुलेना बाबू की पत्नी तारा रानी कोई बहुत पढ़ी-लिखी, डिग्री-धारी और बहुत उच्च तबके की महिला नहीं थीं, बल्कि इसी पितृसत्ता समाज के एक हाशिये से संबंध रखने वाली आम महिला थीं.
तारा देवी बिहार की एक ऐसी महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने शादी की पहली रात पति के साथ प्रण किया था कि देश आजाद होने पर ही बच्चे को जन्म देंगी. 13 साल की उम्र में फूलेना बाबू के साथ शादी के बंधन में बंधने के बाद तारा रानी ने अंग्रेजों के खिलाफ महिलाओं को संगठित कर उनके दांत खट्टे कर दिये. पिछले साल अक्टूबर में डाक विभाग ने इस गुमनाम महिला स्वतंत्रता सेनानी की खोज कर उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया.
8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का आगाज़ किया. इस आंदोलन का एक ही उद्देश्य था ‘करो या मरो’. उस समय भारतवासी अपने देश को आज़ाद कराने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तत्पर थे. महात्मा गांधी ने भी यह बात स्वीकारी थी कि इस आंदोलन के दौरान पुरुषों से कहीं ज्यादा महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया.
आठ अगस्त को तारा रानी के पति फूलेंदु बाबू महाराजगंज थाने पर तिरंगा लहराने चल पड़े. उनके साथ पूरा जनसैलाब था. तारा रानी इन सभी का नेतृत्व कर रही थीं. पुलिस ने भी भीड़ को रोकने की पूरी कोशिश की. जब पुलिस की धमकियों से भी जनसैलाब नहीं रुका, तब पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया. लेकिन उनके डंडे भी प्रदर्शनकारियों के हौसले नहीं तोड़ सके. तब अंग्रेजों गोलियां चलानी शुरू कर दी. फुलेंदु बाबू को 9 गोलियां लगीं, वे जख्मी होकर गिर पड़े.
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वह दिन तारा रानी के लिए सबसे दुखदायी दिन था. वे घायल पति के पास गईं और उनके घाव पर अपने साड़ी से एक टूकड़ा फाड़कर पट्टी बांधा. वहीं से फिर वापस मुड़ीं और महाराजगंज पुलिस स्टेशन की तरफ चल पड़ीं. क्योंकि अगर वह रुक जाती तो सारी स्त्रियों का मनोबल टूट जाता. उन्हें खुद के दुख से ज्यादा भारत पर हो रहा अत्याचार दिख रहा था. तिरंगा लहराने का संकल्प था. तारा रानी ने अपना संकल्प पूरा किया और थाने पर तिरंगा लहरा दिया. जब वे पति के पास वापस आईं, तब तक उनकी मौत हो चुकी थी.