बिहार के मुंगेर जिले के पोस्टमार्टम हाउस का सच आपको हैरान कर देगा. यहां शव रखने तक की जगह नहीं है. बाहर से आपको पोस्टमार्टम हाउस की दीवारें और गेट वगैरह तो चकाचक दिखेगी लेकिन अंदर का सच बेहद भयावह है. यहां मुर्दों को ठीक से एक जगह तक नसीब नहीं. वहीं नया पोस्टमार्टम भवन आरंभ होने के इंतजार में है. 4 साल से तैयार इस भवन में आजतक पोस्टमार्टम हाउस शिफ्ट नहीं हो सका.
मिशन-60 के दौरान सदर अस्पताल के सभी भवनों की दीवारों के साथ पोस्टमार्टम हाउस की दीवारों और भवनों को रंग-रोगन कर चकाचक तो बना दिया गया. लेकिन शायद किसी अधिकारी ने अंदर जाकर वहां की स्थिति का जायजा लिया होता, तो पता होता कि मौत के बाद भी सदर अस्पताल में मुर्दों को ठीक से पोस्टमार्टम तक नसीब नहीं होता.
वहीं स्वास्थ्य विभाग की तैयारियों के बीच पोस्टमार्टम हाउस में सुविधाओं को बढ़ाने के लिये चर्चा तक नहीं होती. इसके कारण यहां पोस्टमार्टम के लिये आने वाले शवों को खुले में ही डोम राजा और चतुर्थवर्गीय कर्मी द्वारा चीरा जाता है. इसके बाद शव का निरीक्षण भी चिकित्सक खुले में करते हैं.
Also Read: बिहार की सिल्क सिटी: हथियार बनाने का पसरा काला कारोबार, भागलपुर में बाहर से आकर STF कर रही भंडाफोड़लावारिश लाशों को रखने के लिये कोई व्यवस्था न होने के कारण इन लावरिश शवों को यहां खुले में रखा जाता है. जहां आवारा कुत्ते कई बार लावारिश शवों को नुकसान पहुंचा देते हैं. जबकि 72 घंटे तक रखे इन शवों की दुर्गंध बगल में चल रहे एएनएम स्कूल की छात्राओं के लिये भी कई बार मुसीबत बन जाती है.
चार साल पहले लाखों की खर्च से बना नया पोस्टमार्टम हाउस आज भी खुद के आरंभ होने के इंतजार में उपेक्षा का शिकार बना है. जो कभी स्वास्थ्य विभाग के लिये कोविड सूचना केंद्र तो कभी डिस्ट्रिक अर्ली इंटरवेंशन सेंटर (डीईआईसी) बन जाता है.
सिविल सर्जन डॉ पीएम सहाय ने बताया कि सदर अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिये डीप फ्रीजर खरीदा जाना था लेकिन यहां केवल एक भवन है. इसमें डीप फ्रीजर रखना संभव नहीं है.