पटना. पूर्व सांसद आनंद मोहन के स्थायी तौर पर जेल से बाहर आने की बड़ी बाधा दूर हो गयी है. इसके साथ ही उनकी रिहाई का रास्ता भी साफ हो गया है. गृह विभाग (कारा) ने बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम-481 (i) (क) में संशोधन करके उस वाक्यांश को हटा दिया है, जिसमें काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था. कानून के जानकारों के मुताबिक इस संशोधन के बाद अब गृह सचिव की अध्यक्षता वाली बिहार राज्य दंडादेश परिहार पर्षद उनको स्थायी रूप से रिहा करने का निर्णय ले सकेगी. सूत्रों के मुताबिक कानून में संशोधन के बाद सोमवार को स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक बुलायी गयी है. इसमें आनंद मोहन के जेल में काटे गये समय और बाकी सजा की समीक्षा की जायेगी. बैठक में लिये गये निर्णय को उच्चस्तरीय समिति को भेजा जायेगा, जिसके बाद रिहाई का फैसला होगा.
बिहार राज्य दंडादेश परिहार पर्षद को रेमिशन (अच्छे व्यवहार पर सजा में दी गयी छूट) के आधार पर 20 वर्ष, जबकि 14 साल की कारागार पूरी कर चुके बंदियों को समीक्षा के बाद छोड़ने का अधिकार है. लेकिन, काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या, दहेज के लिए हत्या, 14 वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे की हत्या, अनेक हत्या, अभियोजन के बाद कारागार में रहते की गयी हत्या आदि के लिए नियम कड़े हैं. ऐसे अधिकतर मामले परिहार पर्षद से रिजेक्ट हो जाते हैं. ऐसे में काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या का वाक्यांश विलोपित किये जाने से उनकी 14 साल के कारागार अवधि पूरी होने को देखते हुए रिहाई पर निर्णय लिया जा सकता है. छह सदस्यीय दंडादेश परिहार पर्षद में आइजी जेल सदस्य सचिव, जबकि विधि सचिव सह विधि परामर्शी, उच्च न्यायालय द्वारा नामित जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डीजी द्वारा नामित आइजी पुलिस और निदेशक परिविक्षा सेवाएं सदस्य के रूप में नामित होते हैं. जानकारों के मुताबिक गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या मामले में आनंद मोहन अपनी 14 साल की कारावास अवधि पूरी कर चुके हैं.
इससे पहले राज्य कैबिनेट ने भी काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या में आजीवन कारावास की सजा पाकर राज्य के विभिन्न जेलों में बंद कैदियों के संबंध में परिहार नीति पुनर्निर्धारित करने और उसके अनुरूप बिहार कारा हस्तक के संबंधित प्रावधान को विलोपित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. साथ ही कैबिनेट ने पहली बार अपराध करने पर 10 साल तक की सजा प्राप्त बंदियों के कारावास अवधि के दौरान लगातार अच्छा व्यवहार करने वाले तथा सजा की आधी अवधि व्यतीत कर चुके बंदियों को एकबारगी उपाय के रूप में परिहार का लाभ देते हुए राज्य सरकार द्वारा कारामुक्त करने की मंजूरी भी दी थी.
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पांच दिसंबर, 1994 को गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया की भीड़ ने पहले पिटाई की, फिर गोली मार कर हत्या कर दी थी. आनंद मोहन पर इस भीड़ को उकसाने का आरोप लगा था. 2007 में इस मामले में पटना हाइकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया था और फांसी की सजा सुनायी थी. हालांकि, 2008 में हाइकोर्ट की तरफ से ही इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया. 2012 में आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में सजा कम करने की अपील की थी, जो खारिज हो गयी थी.