Bamboo Farming: बांस की खेती किसानों के लिए वरदान, कम लागत और मेहनत से किसान हो रहे मालामाल
बांस की खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है. विशेषज्ञों के अनुसार बांस के पौधों के लिए किसी खास तरह की उपजाऊ जमीन की आवश्यकता नहीं होती है. कई राज्य सरकारें किसानों को बांस की खेती करने पर सब्सिडी उपलब्ध करा रही हैं.
बांस की खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है. विशेषज्ञों के अनुसार बांस के पौधों के लिए किसी खास तरह की उपजाऊ जमीन की आवश्यकता नहीं होती है.भारत के कई राज्यों में बांस की मांग में लगातार बढ़ोतरी रही है. ऐसे में सरकार भी अब देश में बांस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है.कई राज्य सरकारें किसानों को बांस की खेती करने पर सब्सिडी उपलब्ध करा रही हैं.सरकार इस योजना के अंतर्गत किसानों को बांस की खेती करने पर 50 हजार रुपये की सब्सिडी देती है.
बांस की खेती की बंजर जमीन पर भी किया जा है
बांस की खेती की सबसे बड़ी खासीयत यह है कि इसे बंजर जमीन पर भी किया जा सकता है. साथ ही इसे पानी की भी कम आवश्यकता होती है. एक बार लगाने के बाद बांस के पौधे से 50 साल तक उत्पादन लिया जा सकता है.राष्ट्रीय बांस मिशन के अनुसार में देश में इस समय 136 बांस की प्रजातियों की खेती की जा रही है. इनमें से सबसे ज्यादा लोकप्रिय प्रजातियां बम्बूसा ऑरनदिनेसी, बम्बूसा पॉलीमोरफा, किमोनोबेम्बूसा फलकेटा, डेंड्रोकैलेमस स्ट्रीक्स, डेंड्रोकैलेमस हैमिलटन और मेलोकाना बेक्किफेरा हैं. बांस के पौधे की रोपाई के लिए जुलाई महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है. एक हेक्टेयर जमीन पर बांस के 1500 पौधे लगाए जा सकते हैं. पौधे से पौधे की दूरी ढाई मीटर और लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर रखी जाती है. इसके लिए उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए.
बांस की खेती तीन से चार साल में तैयार होती है
बांस का पौधा 3 से 4 साल में कटाई लायक हो जाता है.राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत बांस की खेती के लिए केंद्र और राज्य सरकार किसानों को आर्थिक राहत प्रदान करेंगी. बांस की खेती के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि की बात करें तो इसमें 50 प्रतिशत खर्च किसानों द्वारा और 50 प्रतिशत लागत सरकार द्वारा वहन की जाएगी.बांस की खेती तीन से चार साल में तैयार होती है. किसान चौथे साल में कटाई शुरू कर सकते हैं.एक बार लगाने के बाद 40-50 साल मुनाफा देने वाला पौधा है. लगभग इतने साल तक ये पौधा जिंदा रहता है. हर कटाई के बाद बांस का पौधा फिर से विकास करने लगता है. साथ ही इसकी खेती से एक हेक्टेयर में कुल 3 से 4 लाख रुपये तक का मुनाफा कमाया जा सकता है.
सरकार का उद्देश्य बांस के उत्पाद को बढ़ावा देना
सरकार का उद्देश्य है कि बांस की लकड़ियों के उत्पाद को बढ़ावा देकर प्लास्टिक के सामान से लोगों की निर्भरता कम की जा सके. वन उत्पादकता संस्थान के अनुसार बिहार में केवल पांच प्रजाति के ही बांस की ही खेती होती है. जबकि पूर्वोत्तर के त्रिपुरा,असम,मणिपुर,इंफाल व मिजोरम में बांस की कुल सवा सौ प्रजाति उगाई जाती है. हाजीपुर के जदुआ में बम्बू ट्रीटमेंट प्लांट भी खोला गया है.प्लांट में वैक्यूम क्रियेट टेक्नोलॉजी से बांस के टुकड़े में दीमक,घुन व दूसरे हानिकारक जीवों से बचाव के लिए केमिकल डाला जाता है. ट्रीटमेंट के बाद बांस करीब पचास वर्षों तक खराब नहीं होता है.