बिभांशु
बांका : बांका में सांसदों का जनता दिल से इज्जत करती रही है और उन्हें अपने परिवार का सदस्य भी मानती रही है. इसके कई उदाहरण हैं. जनता से इसी तरह का रिश्ता बांका से दो बार सांसद चुनी गयीं शकुंतला देवी का भी रहा है.
दूसरी लोकसभा चुनाव में बांका से शकुंतला देवी निर्वाचित होकर संसद पहुंची थी, यानी 1957 के चुनाव में कांग्रेस की ओर से शकुंतला देवी को मैदान में उतारा गया था. शकुंतला देवी इसके बाद 1962 में भी विजयी रही. पुराने दिनों को याद करते हुए लोग कहते हैं कि जब शकुंतला देवी वोट मांगने मतदाता की देहरी पर पहुंचती थी, तो घरवाले उन्हें साड़ी व खोंइछा देकर विदा करते थे. इसके पीछे का कारण दिल का रिश्ता रहा है. दरअसल, शकुंतला देवी का मायके संग्रामपुर-बेलहर निकट डुमरिया गांव में है. इस लिहाज से जनता व खुद वह बांका को अपना मायका बताती थी. लोगों का उनसे भावनात्मक लगाव था.
शकुंतला देवी 1967 के चुनाव में जनसंघ के प्रत्याशी बेनीशंकर शर्मा से चुनाव हार गयी थी. बाद में वह बेलहर से विधायक भी निर्वाचित हुईं. जानकारों का कहना है कि इनका ससुराल पक्ष भी सामर्थवान हुआ करता था. सियासत में लंबी पकड़ थी.
दादा थे कांग्रेस के नेता
दादा भिखारी महतो नमक सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय थे. शकुंतला देवी के दादा भिखारी महतो कांग्रेस के जाने-माने नेता थे. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी के आह्वान पर अपना जीवन देश को समर्पिंत कर दिया था. वे नमक सत्याग्रह आंदोलन में भी सक्रिय रहे थे. उनके पुत्र नागेंद्र महतो भी कांग्रेसी थे. उस समय स्कूलों की संख्या काफी कम हुआ करती थी. लोग शिक्षा के क्षेत्र की ओर ध्यान नहीं देते थे.
…उस समय भी इन्हीं लोगों के प्रयास से गोरगामा में विद्यालय का निर्माण हुआ. राजनीतिक घराने की वजह से शकुंतला देवी को कांग्रेस की ओर से मैदान में उतारा गया था.