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लक्ष्मी पूजा क्यों, कब और कैसे?

ज्योतिषाचार्य पंडित नंद कुमार निर्मल से हीरा लाल की बातचीत पर आधारित रिपोर्ट बांका. मानव जब इस पृथ्वी पर जन्म लेता है तो उसे धन, यश, उन्नति, सुख, शांति और समृद्धि की आवश्यकता होती है. ये सारी बातें तभी पूरी होगा जब आप लक्ष्मी की पूजा करेंगे. इस भाग दौड़ की जिंदगी में लक्ष्मी का […]

ज्योतिषाचार्य पंडित नंद कुमार निर्मल से हीरा लाल की बातचीत पर आधारित रिपोर्ट

बांका. मानव जब इस पृथ्वी पर जन्म लेता है तो उसे धन, यश, उन्नति, सुख, शांति और समृद्धि की आवश्यकता होती है. ये सारी बातें तभी पूरी होगा जब आप लक्ष्मी की पूजा करेंगे. इस भाग दौड़ की जिंदगी में लक्ष्मी का होना अति आवश्यक है. लक्ष्मी का तात्पर्य केवल मानव जीवन में धन ही कामना नहीं होता, बल्कि मनुष्य को अपने जीवन परिवार में संपूर्णता का होना प्रतीक है. इसलिए भौतिक समृद्धि, सुख, शांति के लिए लक्ष्मी की साधना व लक्ष्मी की उपासना जीवन में परम आवश्यक है. सनातन, हिंदू धर्मो में लक्ष्मी पूजा स्थिर लग्न में ही करनी चाहिए. ज्योतिषी के अनुसार जब तक दीपावली में धन योग, सौभाग्य योग का समय नहीं बनता तब तक लक्ष्मी का आगमन असंभव है. शास्त्रों में तीन प्रकार के लग्न होते हैं. चर (धातु), स्थिर (मूल), द्विस्वभाव (जीव), स्थिर लग्न में वृष, सिंह, वृश्चिक तथा कुंभ होते हैं. गणितीय व फलित ज्योतिष में जब स्वाति नक्षत्र, तुला राशि, शनि उच्च स्थिर लग्न में हो तभी लक्ष्मी का पूजन करना चाहिए. उस समय सौभाग्य योग, धन योग्य बनता है. उस समय सूर्य और चंद्र अमावस्या को एक दूसरे से मिलते हैं. ज्योतिषीय गणना में सूर्य स्वाति नक्षत्र पर कार्तिक मास के मध्य अर्थात सबा तेरह दिन के करीब और चंद्रमा 27 वें दिन में एक दिन इस नक्षत्र भाग से भ्रमण करता है. स्वाति का अर्थ होता है वर्षा की वह बूंद जो सीपी से गिरकर मोती का आकार ग्रहण कर लेती है. ऐसे साधारण अर्थ में स्वाति का अर्थ तलवार भी होता है. आकाश गंगा का 15वां तारा स्वाति नक्षत्र है, जिसका स्वामी राहु होता है. शुक्र की राशि तुला, वृष और राहु के नक्षत्र में पैदा लेने वाला व्यक्ति वीर, नेता व भाग्यशाली होता है. लक्ष्मी पूजा प्रदोष समय (सायं और रात्रि काल का समय) या स्वाति नक्षत्र, वृष या सिंह लग्न में लक्ष्मी प्राप्ति के सभी तरह के अनुष्ठान सिद्ध होते है. ब्रrा पुराण में ‘‘प्रदोषार्धराय व्यापिलक्ष्मी पूज्यते’’, ग्रंथों में कहा गया है. ‘‘अर्धरात्रे भवेत्येव लक्ष्मी राश्रयितुम गृहान, कार्तिकमास्यमावस्या तस्याम दीप प्रदीपम’’ कार्तिक अमावस्या अर्धरात्रि या प्रदोष समय में लक्ष्मी का पूजन श्रेष्ठ माना गया है.

इस वर्ष भारत वर्ष में मेष राशि, मिथुन राशि, कर्क राशि, तुला राशि, धनु राशि वाले को दीपावली के वृष लग्न में मानक समय (5:58 पीएम सायंकाल से 7:55 पीएम तक) लक्ष्मी पूजा करनी चाहिए.

वृष राशि, सिंह राशि, कन्या राशि, वृश्चिक राशि, मकर राशि, कुंभ राशि, मीन राशि को सिंह लग्न (12:27 पीएम रात्रि से 2:40 एएम तक) लक्ष्मी पूजा करनी चाहिए. इस मानक को लेकर पटना में 11 मिनट घटाये, बांका- भागलपुर में 13 मिनट जोड़े. लक्ष्मी पूजा के समय यदि मानव में श्री यंत्रम के सामने श्री सूक्तां के सम्पूत पाठ स्वाहा के साथ करें तो लक्ष्मी की अवस्य कृपा होगी. प्रत्येक हिंदू परिवार को अपने घर में अवस्य ही विष्णु लक्ष्मी अर्थात लक्ष्मी नारायण की तस्वीर अवस्य रखनी चाहिए. लक्ष्मी अपने विष्णु के पास ही स्थायी रहती है. घर में शांति वातावरण कायम रहता है.

आपकी राशि और लक्ष्मी पूजा मुहूर्त

मेष राशि वाले सायं वृष लग्न में, वृष राशि रात्रि सिंह लग्न में, मिथुन राशि सायं काल वृष लग्न में, कर्क राशि सायं वृष लग्न, सिंह राशि रात्रि सिंह लग्न में, कन्या राशि रात्रि सिंह लग्न में, तुला राशि वृष लग्न सायं काल, वृश्चिक राशि रात्रि सिंह लग्न, धनु राशि सायं वृष लग्न, मकर राशि रात्रि सिंह लग्न, कुंभ राशि सिंह लग्न, मीन राशि रात्रि सिंह लग्न में पूजा करें.

यदि दोपहर को पूजा करना हो तो कुंभ लग्न – 2:03 बजे से 3:33 बजे पीएम

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