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ठंडी में भी गर्मी का अहसास मतलब मकर संक्रांति पर्व

ठंडी में भी गर्मी का अहसास मतलब मकर संक्रांति पर्व बांका : ….. ठंडी में भी गरमी का अहसास ! जी हां, मकर संक्रांति कुछ इसी आशय की अवधारणा को स्थापित करता है. अंग क्षेत्र में यह लोक पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन तिल और गुड़ का खास महत्व है. मान्यता […]

ठंडी में भी गर्मी का अहसास मतलब मकर संक्रांति पर्व बांका : ….. ठंडी में भी गरमी का अहसास ! जी हां, मकर संक्रांति कुछ इसी आशय की अवधारणा को स्थापित करता है. अंग क्षेत्र में यह लोक पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन तिल और गुड़ का खास महत्व है. मान्यता है कि इसी तिथि से दिन तिल – तिल कर बढ़ता है और सूरज की तपिश भी. तिल और गुड़ गर्मी के वासंती स्वरूप के स्वागत का प्रतीक माना जाता है. वैदिक स्थापनाओं के मुताबिक इसी दिन सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है. लिहाजा मौसम की उष्णता के साथ – साथ दिन का भी आकार बढ़ने लगता है. यह तिथि मौसम का संक्रमण काल होता है. सर्द मौसम उष्णता ग्रहण करने लगता है. सर्दी का समापन और गर्मी का आगाज हो जाता है. यह सर्दी और गर्मी का संगम पर्व है जो वसंत ऋतु में तब्दील हो जाता है. हालांकि वसंत ऋतु वसंत पंचमी से लगायत होली तक परवान पर होता है. इस दौरान फिजां रंगीन और वातावरण सुरभित हो जाता है. आम तौर पर मकर संक्रांति के बाद मौसम में क्रमश: आने वाली गरमाहट के कारण लोग एक – एक कर गर्म कपड़े उतारने लगते है. बिस्तर पर रजाई और कंबलों का भी वजन कम होने लगता है. लोग मौसम के इस भाईचारे की वजह से सहज और बेहतर महसूस करने लगते है. इस मौसम में आहलादित लोगों के बीच एक लोकोक्ति भी काफी प्रचलित है…. तिल – तिल करि गेलय जाड़… और इस तरह जाड़े की वास्तव में विदाई होने लगती है. ————मकर मेला शुरू, लेकिन स्नान पर्व आजबांका. मकर स्नान का योग और मेला आयोजन की परंपरा दो अलग – अलग तिथियों में होने की वजह से बहुत कुछ असहज तो बहुत कुछ सकारात्मक भी रहा. इधर कुछ वर्षों से संक्रांति योग की तिथि परिवर्तन की वजह से मेला और स्नान पर्व दो अलग – अलग तिथियों को आयोजित हो रहा है. लिहाजा श्रद्धालुओं की उपस्थिति कहीं कम तो कहीं अधिक हो रही है. पारंपरिक रूप से बौंसी मेले की शुरुआत 14 जनवरी को होती रही है. यह परंपरा अब भी कायम है. इस दिन झरना मेला भी लगता है, लेकिन मकर संक्रांति का योग 15 जनवरी को होने की वजह से इस दिन स्नान पर्व में शामिल होने वालों की तादाद कम हुई है. इस वर्ष भी पापहरणी में स्नानार्थियों की भीड़ अपेक्षाकृत कम रही. हालांकि सफाधर्मावलंबियों ने यह कमी पूरा करने की कोशिश की. इसकी वजह यह रही कि उन्हें स्नान पर्व के लिए किसी संक्रांति योग की जरूरत नहीं होती. इधर झरना पहाड़ी के गर्म कुंड में स्नान करने वालों की भीड़ भी इस बार कुछ कम रही. लोगों ने बताया कि 15 जनवरी को मकर संक्रांति योग होने की वजह से इस दिन स्नान पर्व में ज्यादा तादाद में श्रद्धालु जुटेंगे. हालांकि मेला उद्घाटन के साथ ही शुरू हो गया. स्नान पर्व एक दिन आगे बढ़ जाने की वजह से मेले में भीड़ अपेक्षाकृत अधिक रही. ———स्नान पर्व का योग सूर्य 14 जनवरी को अर्धरात्रि के बाद 1.26 बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा.इस कारण मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनायी जायेगी. संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को सूर्योदय से सायंकाल 5.26 बजे तक रहेगा.मकर संक्रांति 15.01.2016पूण्यकाल मुहूर्त 7.18 से 12.47 बजेसमय 5 घंटे 29 मिनटसंक्रांति की गति 1.35महापुण्य काल मुहूर्त 7.18 से 9.08 प्रात: समय 1 घंटा 49 मिनटदिल्ली सूर्योदय 07:16:32 पर है.

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