अब जनता के दर पर हैं पंचायतों के राजा
मनोज उपाध्याय बांका : तुमसे आप और आपसे हुजूर हो गये ‘पंचायतों के राजा’ एक बार फिर से मतदाता मालिकों के दर पर दस्तक दे रहे हैं. दरअसल, पंचायत चुनाव सामने है और ऐसे मौकों के लिए उनकी फितरत भी यही रही है. हालांकि इससे इतर जैसा कि पहले से होता रहा है. पंचायती राज […]
मनोज उपाध्याय
बांका : तुमसे आप और आपसे हुजूर हो गये ‘पंचायतों के राजा’ एक बार फिर से मतदाता मालिकों के दर पर दस्तक दे रहे हैं. दरअसल, पंचायत चुनाव सामने है और ऐसे मौकों के लिए उनकी फितरत भी यही रही है.
हालांकि इससे इतर जैसा कि पहले से होता रहा है. पंचायती राज का बीता पांच साल भी गुजर गया. लेकिन गांव पंचायत के लोगों के विकास के हसीन सपने इस बार भी धरे रह गये. स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों के लिए भले ही ये अवधि शिलान्यास, उद्घाटन और वायदापोशी में गुजरी हो, उनके क्षेत्रों के ग्रामीण अपने उन सपनों को पूरा होते देखने की हसरत भर भी पाले रह गये जो उन्होंने पिछले चुनाव में अपने प्रतिनिधियों को चुनते वक्त संजो रखे थे.
स्थानीय राजनीति का अखाड़ा: पंचायती राज पिछले पांच वर्षों के दौरान कमोबेश स्थानीय राजनीति का शिकार होकर रह गया. स्थानीय विवाद, गुटबाजी और परस्पर विरोध की वजह से टांग खींचाई की वजह से पंचायतों में विकास का सपना लगभग चूर चूर होकर रह गया.
पंचायतों में भी चलती रही वर्चस्व की लड़ाई : ग्राम पंचायतों में से ज्यादातर में मुखिया और उपमुखिया के बीच लड़ाई चर्चाओं में रही. सरपंच और पंचों की लड़ाई भी आम रही. मुखिया और वार्ड सदस्यों के बीच लड़ाई के ज्यादातर मामलों में योजनाएं और उन योजनाओं को काम कराने के लिए पेटीदारों की नियुक्ति का मामला रहा.
जिला परिषद भी रहा खींचतान का शिकार : जिला परिसर में भी आपसी खींचतान और गुटीय राजनीति हावी रही.कई बार जिला परिषद की बैठकों में सदस्य गुटों के बीच कड़वाहट भी सामने आयी. आरोप और प्रत्यारोप की वजहों से सदन का काम काज प्रभावित हुआ. विकास की योजनाओं के क्रियान्वयन में ठेकेदारी को लेकर भी मतभेद और खींचतान कई बार चर्चा के विषय बने. दो सदस्यों ने इस्तीफा तक दे दिया. हालांकि इनमें से एक ने बाद में अपना इस्तीफा वापस ले लिया. लेकिन इसके बाद जिला परिषद की गतिविधियां लगभग कामचलाऊ ही रहीं.
गौण रही पंचायत समितियों की भूमिका : पंचायत समितियों की गतिविधियां आमतौर पर बैठकों, ठेकेदारी के मुद्दों और शिलान्यास व उद्घाटनों तक ही सीमित रहा. यह स्थिति किसी एक प्रखंड की नहीं पूरे जिले की रही.
इस बार ठगाने के मूड में नहीं है जनता : अब जबकि फिर से पंचायतों के चुनाव सामने हैं जनता से नेता बन गये पंचायत प्रतिनिधि एक बार पुन: हाथ जोड़े जनता के सामने खड़े हैं. क्योंकि पब्लिक सब जानती है इसलिए बिना कुछ बोले अपने हित और अहित को लेकर मंथन में जुट गयी है.