कभी मंदार पर्वत का हिस्सा था कैलाश

बौंसी : मंदार का मतलब ही स्वर्ग होता है. ऐसी मान्यता है कि मंदार पृथ्वी पर का स्वर्ग है और सृष्टि के आदि काल से ही मौन, दृढ़वत खड़ा है. उसी मंदार पर कैलाश सहित सप्तपुड़िया थी. उस समय मंदार वर्फीली उंची चट्टानों से आच्छादित था. इसी को मध्य मेरु कहा गया, जो बाद में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 10, 2017 5:49 AM

बौंसी : मंदार का मतलब ही स्वर्ग होता है. ऐसी मान्यता है कि मंदार पृथ्वी पर का स्वर्ग है और सृष्टि के आदि काल से ही मौन, दृढ़वत खड़ा है. उसी मंदार पर कैलाश सहित सप्तपुड़िया थी. उस समय मंदार वर्फीली उंची चट्टानों से आच्छादित था. इसी को मध्य मेरु कहा गया, जो बाद में सुमेरु बना. वह हिमालय के मध्य अवस्थित था और यह हिमालय राजमहल के पूर्वी पहाड़ से लेकर पश्चिम संवेद शिखर तक का मूल भाग रहा है, जो अरबों वर्ष पुराना है.

अंगजनपद के सुप्रसिद्ध शोध लेखक परशुराम ठाकुर ब्रम्हवादी ने अपने पुस्तकों में इसका जिक्र किया है. इनके अनुसार वेदों की निर्माण स्थली मंदार ही है. मंदार के शोध लेखक मनोज कुमार मिश्र ने बताया कि पुराण साबित करता है कि मंदार से 12 बार समुंद्र मंथन हुआ है. योग वशिष्ठ में स्पष्ट उल्लेख है कि प्रत्येक कल्प में समुंद्र मंथन हुआ है और इसी मंदराचल पर्वत से 12 बार समुंद्र मंथन किया जा चुका है. यह सर्वविदित है कि एक कल्प में 4 अरब 32 करोड़ मानव वर्ष होते हैं. इस तरह 12 कल्प में 48 अरब वर्ष से अधिक मंदार की उम्र ठहरती है. माना जाता है कि सभी पर्वतों से प्राचीणतम पर्वत मंदार ही है.

ऐसी मान्यता है कि शिव और पार्वती के विवाह से पूर्व हिमालचल की सभा में बुलायी गयी सभी पर्वतों के मध्य मंदार को ही सभापति बनाया गया था. क्योंकि उस वक्त शिव की स्थली मंदार थी. महाभारत सहित अनेक पुराणों में कहा गया है कि मंदार के एक भाग का नाम कैलाश है जो आज का कैलाश घाटी जिलेबियामोड़ पहाड़ तथा हनुमना डैम के बीच है. वहीं पांडवों की के यात्रा वक्त लोमस ऋषि ने मंदराचल पर्वत का जिक्र किया था. जिसमें बताया गया था कि यहां पर मणिभद्र नामक यक्ष और यक्षराज कुबेर रहते हैं. इस पर्वत पर 88 हजार गंधर्व और किन्नर तथा उनके चौगुने यक्ष अनेकों प्रकार के शस्त्र धारण किये यक्ष राज मणिभद्र की सेवा में उपस्थित रहते हैं. जिससे स्पष्ट होता है कि सृष्टि के आदि काल का कैलाश हिमालय मेरु, सुमेरु एवं मंदार बौंसी ही है. मंदार में ही व्यास गुफा में वेदों को लिपीवद्ध किये गये थे. वेदों की उत्पत्ति ही इसी मंदराचल पर्वत पर हुई थी. आदि काल से लेकर महाभारत काल तक के व्यास द्वारा समय – समय पर मंदार की गुफा में ही वेदों को लिखा गया था. इसके कई साक्ष्य मंदार में व्यास गुफा, सुकदेव गुफा, गणेश गुफा आदि अभी भी मौजूद हैं. साथ ही वेदों के जितने ऋषि देवी देवता हैं उन सभी का वासस्थान मंदार की उपत्थ्यकाओं में देखने को मिलता है. इतना ही नहीं गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का प्रादुर्भाव भी यहीं से आदि काल में हुआ है. जिसके कई साक्ष्य शोध लेखकों के पास आज भी मौजूद हैं.

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