Banka News : पूंजी के अभाव में ठंडा पड़ा सिल्क साड़ी का कारोबार, पलायन को विवश हैं कारीगर

बांका जिले के रजौन प्रखंड क्षेत्र के मकरमडीह, चकमुनिया व चकवीर गांव की पहचान हस्तकरघा उद्योग को लेकर है. एक समय यहां के 150 बुनकरों ने गांव की तस्वीर बदल दी थी. यहां की बनायी सिल्क साड़ी व अन्य कपड़ों की खासी डिमांड थी. लेकिन आज यह कारोबार कुछ ही परिवारों तक सिमट कर रह गया है.

By Sugam | August 2, 2024 5:21 PM

Banka News : अविनाश सिंह, रजौन. प्रखंड क्षेत्र के मकरमडीह, चकमुनिया व चकवीर गांव में हस्तकरघा बुनकरों की हालत काफी दयनीय होती जा रही है. पूरा परिवार मिलकर काम करने के बावजूद उन्हें बहुत कम मेहनताना मिलता है. इसके चलते बुनकरों के पलायन की गति बढ़ रही है. देश की आजादी के पूर्व से सिल्क कपड़े की बुनाई यहां का पुश्तैनी पेशा है. पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस हुनर में आनुवंशिक रूप से यहां के लोग निखरे हैं. यही कारण है कि मकरमडीह की तैयार सिल्क साड़ियों ने काफी दिनों तक भागलपुर के बाजार में धूम मचायीहै. परंतु हालात धीरे-धीरे बदतर होते चले गये. 1989 के दंगे में यहां का सिल्क कारोबार चौपट हो गया. सैकड़ों लोग अपना लूम बेचकर अन्य धंधा अपनाने को विवश हो गये थे. हजारों की संख्या में बुनकर नौजवान दूसरे प्रदेशों में पलायन कर गये. बुनकर मुजम्मिल अंसारी, नसीम अंसारी, तैयब अंसारी, जाकिर अंसारी, फिरोज अंसारी कहते हैं कि दंगे के बाद सरकार ने 105 बुनकरों को हस्तचालित हैंडलूम मुहैया कराया था. लेकिन पूंजी के अभाव में यहां के बुनकर महाजनों के रहमोकरम पर निर्भर हो गये. महाजनों द्वारा उपलब्ध कराये गये सिल्क के धागों से ही कपड़े तैयार करने लगे.

दिहाड़ी मजदूरों से कम है बुनकरों का मेहनताना

सिल्क कपड़े तैयार करने वाले बुनकरों की मजदूरी दिहाड़ी मजदूरों से भी कम है.दिहाड़ी मजदूरी करने वाला भी महीने का 12000 रुपये कमा लेता है. लेकिन यहां के बुनकर, जो अपने परिवार के साथ मिलकर काम करते हैं, महीने में सिर्फ 6000 – 7000 रुपये कमा पाते है. बुनकरों का कहना है कि एक सिल्क साड़ी तैयार करने में डेढ़ दिन का समय लगता है और मेहनताना 500 रुपया मिलता है. जबकि साड़ी का बाजार मूल्य 4000 रुपये से अधिक है. वहीं कोट या परदे का सिल्क कपड़ा तैयार करने के एवज में 40 रुपये प्रति मीटर मिलता है.

कॉमन फैसिलिटी सेंटर बनाने की घोषणा कागजों पर सिमटी

भारत सरकार ने बुनकरों की आय बढ़ाने के लिए बांका के मकरमडीह गांव में 1000 स्क्वायर फीट भूमि पर एनएचडीसी के क्लस्टर डेवलपमेंट योजना से कॉमन फैसिलिटी सेंटर बनाने की घोषणा की थी. इसमें बुनकरों के लिए अत्याधुनिक मशीन सहित कई तरह की सुविधाएं मिलतीं. घोषणा के बाद अंचल प्रशासन की ओर से अनापत्ति प्रमाणपत्र भारत सरकार को दे दिया गया था. डेढ़ साल बीत जाने के बावजूद योजना धरातल पर नहीं उतरी. इसके चलते बुनकरों में आक्रोश है.

सरकार सहयोग दे, तो बढ़ेगा कारोबार, सुधरेगी आर्थिक स्थिति

बुनकरों की हालत दयनीय है. पूंजी व अन्य संसाधन के अभाव में कारीगर महाजन के ऊपर निर्भर हो गये हैं. महाजन से काम मिलने पर ही इनके घर में चूल्हा जलता है. सरकार व जिला प्रशासन से मांग है कि बुनकरों को पूंजी व आधुनिक पावरलूम मुहैया कराया जाये. इससे बुनकरों की आय बढ़ेगी.
-अख्तर अंसारी, अध्यक्ष, मकरमडीह बुनकर संघ
भारत सरकार ने यहां के बुनकरों की समस्या को दूर करने के लिए कॉमन फैसिलिटी सेंटर बनाने की घोषणा की थी. लेकिन यह घोषणा कागजों पर सिमट कर रह गयी. इस योजना के लागू नहीं होने से बुनकरों की हालत दयनीय है. बुनकरों को फैसिलिटी मिले, तो ये बेहतर कर दिखायेंगे.
-मो मुजफ्फर अंसारी, जिला उपाध्यक्ष, जदयू अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ
सरकार या जिला प्रशासन से हमलोगों को आर्थिक मदद नहीं मिल रही है. अगर आर्थिक मदद मिले, तो काम मिलेगा. उत्पादन बढ़ेगा. दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होगी. हम आर्थिक रूप से मजबूत होंगे.
-अजहर अंसारी, बुनकर
अपनी पूंजी नहीं रहने से महाजन के रहमोकरम पर काम करते हैं. बाजार व पूंजी होने से हमलोग स्वयं तैयार कपड़े को बेचकर मुनाफा कमाते. हमें ऋण मिले. प्रोत्साहन मिले. हम काम करेंगे. हमारी स्थिति सुधरेगी.
-गुलशूम खातून, बुनकर

कहते हैं अधिकारी

मकरमडीह क्लस्टर नहीं है. इस कारण बुनकरों के उत्थान के लिए भारत सरकार या बिहार सरकार की ओर से कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है. अगर निर्देश मिलता है, तो उस पर अमल किया जायेगा.
-शंभु पटेल, महाप्रबंधक, जिला उद्योग केंद्र, बांका

कहते हैं बीडीओ

रजौन प्रखंड के मकरमडीह, चकमुनिया, चकवीर गांव के बुनकरों के उत्थान के लिए जिला प्रशासन या सरकार की ओर कोई निर्देश मिलता है, तो उसे लागू किया जायेगा.
-अंतिमा कुमारी, बीडीओ

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