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विधि व्यवस्था का समाचार पहुंचाने के लिए धरती पर पधारीं भगवती की ननद छटपटो देवी, वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हुआ स्वागत

मंदिर परिसर में लुटायी गयी सात कौड़ियां

बोधनवमी को धरती पर आयी बोधन देवी भक्तों की असीम भक्ति देख स्वयं हो गयीं लीन, मां दुर्गा को समाचार नहीं मिलने से चतुर्थी को अपनी ननद को भेजा धरती पर. -24 घंटा के अंदर धरती का समाचार लेकर आज वापस होगी मां भगवती का ननद छटपटो देवी. -नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्माण्डा देवी की हुई पूजा, मंदिर परिसर में लुटायी गयी सात कौड़ियां. चंदन कुमार, बांका. जिलेभर के सभी दुर्गा मंदिरों व पूजा पंडाल में रविवार को शारदीय नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की श्रद्धा के साथ श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना की. इस दौरान शहर के जगतपुर, करहरिया के अलावे ग्रामीण क्षेत्र कुनौनी, मंझियारा आदि दुर्गा मंदिरों में चतुर्थी तिथि पर माता कूष्मांडा की पूजा अर्चना के साथ छटपटो देवी का आगमन हुआ. मालूम हो कि छपपटो देवी के संबंध में परंपरा से चली आ रही प्रचलित कथा यह है कि यह देवी मां भगवती दुर्गा की ननद कही जाती है. जो गत दिनों बोधनवमी को मां भगवती ने अपनी छोटी बहन को धरती पर की विधि-व्यवस्था जानने के लिए भेजा था. लेकिन धरती पर भक्तों की अटूट श्रद्धा व असीम भक्ति को देख स्वयं बोधन उसमें लीन हो गयी और यहां का समाचार अपनी बड़ी बहन को नहीं भेज सकी. पूरे दस दिन बीत जाने के बाद चतुर्थी तिथि को मां भगवती ने अपनी ननद छटपटो देवी को धरती पर भेजा. वास्तव में बोधन व छटपटो देवी मां दुर्गा के ही स्वरूप है. इसलिए धरती के भक्त शंख, घंटा, नगारे व वैदिक मंत्रोच्चार के साथ छटपटो देवी का स्वागत किया. इस दौरान जगतपुर, मोहल्ला से पंडित सहित भारी संख्या में श्रद्धालु चंदन नदी पहुंचे. जहां विधिवत पूजा अर्चना के बाद छटपटे देवी को मंदिर लाया गया. साथ ही करहरिया व कुनौनी, मंझियारा दुर्गा मंदिर से शोभायात्रा निकाली गयी और चांदन नदी में पूजा अर्चना के बाद छटपटो देवी को मंदिर लाया गया. जहां मंदिर परिसर में मेढ़पति परिवार के द्वारा सात कौड़ियां लुटायी गयी. जिसे प्राप्त करने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु मंदिर परिसर पहुंचे थे. इस दौरान मंदिर परिसर में जय-जय दुर्गा के जय घोष से गुंजायमान हो गया. -मां स्कंदमाता की पूजा आज. नवरात्र के पांचवें दिन भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान करने वाली मां दुर्गा के पंचम स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा करने का विधान है. ये देवी पार्वती का ही स्वरूप है. भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है. भगवान स्कंद ””कुमार कार्तिकेय”” नाम से भी जाना जाता हैं. ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे. पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है. इनका वाहन मयूर है. स्कंदमाता के विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे हुए हैं. शास्त्रानुसार सिंह पर सवार स्कन्द मातृस्वरूपणी देवी की चार भुजाएं हैं. जिसमें देवी अपनी ऊपर वाली दांयी भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए हुए हैं और नीचे वाली दांयी भुजा में कमल पुष्प लिए हुए हैं. ऊपर वाली बाईं भुजा से इन्होंने जगत तारण वरद मुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बाई भुजा में कमल पुष्प है. इनका वर्णन पूर्णतः शुभ्र है और ये कमल के आसान पर विराजमान रहती हैं. इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है. नवरात्र पूजन के पांचवे दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है. -मां स्कंदमाता का पूजा विधि. मां के शृंगार के लिए खूबसूरत रंगों का इस्तेमाल किया जाता है. स्कंदमाता और भगवान कार्तिकेय की पूजा भक्ति-भाव व विनम्रता के साथ करनी चाहिए. पूजा में कुमकुम, अक्षत, पुष्प, फल आदि से पूजा करें. चंदन लगाएं माता के सामने घी का दीपक जलाएं. आज के दिन भगवती दुर्गा को केला का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है.

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