बांका. बिहुला विषहरी पूजा को लेकर जिलेभर में उत्साह का माहौल है. शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में बिहुला विषहरी के गीत से माहौल भक्तिमय बना हुआ है. मालूम हो कि अंग क्षेत्र के प्रसिद्ध बिहुला विषहरी पूजा की शुरुआत शनिवार को कलश भरने व प्रतिमा स्थापित के साथ हो गयी. जिले के सभी मंदिरों में धूम-धाम से पूजा-अर्चना आरंभ हो गयी है. पंचांग के अनुसार शुक्रवार की देर रात सिंह नक्षत्र के प्रवेश होने के साथ ही लगभग स्थानों पर दूसरे दिन प्रतिमा स्थापित कर पूजा आरंभ हो गयी है. यह पूजा अंग क्षेत्र में विशेष रूप से मनायी जाती है. माना जाता है कि इस पूजा में मांगी गयी मन्नत पूरी होती है. विषहरी पूजा लोक आस्था का पर्व है. बौंसी गुरुधाम के पंडित गोपाल शरण ने बताया कि कथा पुराण के अनुसार बिहुला ही एक ऐसी सती है जिसने अपने मृत पति ही नहीं, बल्कि भैंसुर को भी स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर लाकर सुहागिन होने का गौरव प्राप्त किया था. उन्हें लोग आस्था के साथ पूजते हैं. इस साल पूजा की शुरुआत शनिवार 17 अगस्त की शाम 7 बजे से बाला लखेंद्र की बरात के साथ हो गयी. बारात धूमधाम से सभी स्थानों से निकाली गयी. रात्रि में बाला लखेंद्र बिहुला की शादी की रस्म पूरी हुई. रविवार की सुबह डालिया चढ़ायी जायेगी. अपने पति के प्राण स्वर्ग से वापस ले आयीं सती बिहुला भागलपुर चंपानगर के बड़े व्यापारी चांदो सौदागर शिव भक्त थे. ऐसा माना जाता है कि विषहरी शिव की पुत्री कही जाती हैं. लेकिन चांदो सौदागर शिवभक्त होते हुए भी विषहरी की पूजा नहीं करना चाहते थे. विषहरी ने दबाव डाला गया कि चांदो सौदागर से मेरी पूजा करायी जाये. लेकिन चांदो सौदागर नहीं माने. मां विषहरी अपनी पूजा करवाने के लिए चांदो सौदागर के पूरे परिवार को मारती चली गयीं. चांदो सौदागर के छोटे बेटे बाला लखेंदर की शादी के दिन ही मां विषहरी ने डंस लिया. सती बिहुला अपने पति के प्राण के लिए स्वर्ग लोक पहुंच गयी और स्वर्ग लोक से अपने पति के प्राण वापस ले आयी. अंत में चंपानगर स्थित मां विषहरी मंदिर में चांदो सौदागर ने बांये हाथ से विषहरी की पूजा की. इस परंपरा को अंग क्षेत्र के लोग धूमधाम से मनाते हैं.
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