मिश्राचक में 500 सूप से किया जा रहा छठ व्रत, बिहार ,झारखंड व बंगाल से आते हैं श्रद्धालु
सामाजिक एकता को मजबूत करने के साथ एक दूसरे को जोड़ने वाले महापर्व छठ की तैयारी आरंभ हो गयी है.
बौंसी . सामाजिक एकता को मजबूत करने के साथ एक दूसरे को जोड़ने वाले महापर्व छठ की तैयारी आरंभ हो गयी है. यह एक सामाजिक उत्सव है, जो लोगों को एक साथ जोड़ता है और परिवारिक बंधनों को मजबूत करता है. नगर पंचायत के साथ-साथ प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न जगहों में छठ पूजा की तैयारी काफी जोर जोर से की जा रही है. परदेश में काम करने वाले लोग भी अपने गांव पहुंचकर नदी, तालाब व अन्य जल स्रोतों के पास पहुंचकर छठ घाट बनाने के साथ-साथ अन्य तैयारी में लगे हुए हैं. प्रखंड क्षेत्र में कई ऐसे परिवार हैं जहां 100 से ज्यादा सूप और डाला में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. हालांकि मिश्राचक निवासी राजकिशोर मिश्रा के यहां 500 सूप और डेढ़ सौ डाला में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जा रहा है.
20 वर्षों से हो रही छठ पूजा
मिश्राचक निवासी राजकिशोर मिश्रा पिछले 20 वर्षों से छठ व्रत करते आ रहे हैं. बताया जाता है कि यहां तकरीबन 50 वर्ष पहले से ही उनके पूर्वज छठ व्रत करते आ रहे थे. राज किशोर मिश्रा के यहां बने सूर्य मंडप में छठ व्रत के मौके पर बिहार, झारखंड और बंगाल के श्रद्धालु पहुंचकर सूर्य को अर्घ्य देने का काम करते हैं. पेशे से पुजारी श्री मिश्रा ने बताया कि भारी पैमाने पर यहां पर छठ महापर्व का प्रसाद बनाया जाता है. जिसे पूरी तरह शुद्ध होकर गंगाजल से बनाने का काम किया जाता है. इस कार्य में मां भवानी देवी के साथ-साथ उनकी पत्नी बिंदु देवी, पुत्र सुमित और सुजीत के साथ-साथ दोनों पुत्र की पत्नी प्रतिभा और श्वेता सहित अन्य का सहयोग मिलता है. आंगन में ही सूर्य मंदिर में पूजा कर छठ व्रत किया जाता है. अत्यधिक सुप और डाला रहने की वजह से एक बार में पांच सूप में भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाता है.100 आदमी का बनता है भोजन
बताया गया कि तीन-तीन प्रांतों से श्रद्धालुओं के आने के साथ-साथ प्रखंड क्षेत्र से भी भारी संख्या में श्रद्धालु प्रसाद खाने पहुंचते हैं. खरना के दिन जहां 300 से 400 लोगों के लिए प्रसाद बनाया जाता है. वहीं पहले और दूसरे अर्घ्य के दिन करीब 100 लोगों का भोजन भी यहां बनता है. श्री मिश्रा ने बताया कि यह पर्व परिवार को एक दूसरे में जोड़कर सामूहिकता का संदेश देता है. स्वच्छता और अपनत्व का एहसास भी कराता है. एक दूसरे के मन मुटाव को यह खत्म करता है. यह पर्व परिवार को जोड़ने की एक कड़ी के रूप में भी काम करता है. प्रखंड के वैदाचक गांव में भी छठ महापर्व के मौके पर भारी संख्या में बिहार, झारखंड से श्रद्धालु पहुंचते हैं. गांव के शंभू नाथ मिश्रा के यहां करीब 300 से ज्यादा सूप छठ महापर्व के मौके पर श्रद्धालुओं के द्वारा लाया जाता है. अगरा नदी में भगवान भास्कर को डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.इसी गांव के दिलीप मिश्रा के घर में 250 से ज्यादा सूप छठ महापर्व के मौके पर पूजन के लिए आता है. इस मौके पर पूरा गांव भक्ति मय हो जाता है.
गांव के सुभाष चंद्र मिश्रा के घर में भी पिछले 20 वर्षों से छठ महापर्व किया जा रहा है. उनके घर में भी 200 से ज्यादा सूप श्रद्धालुओं के द्वारा पूजन के लिए लाया जाता है.गांव के कृष्ण मोहन मिश्रा ने बताया कि उनके घर में पिछले 50 वर्षों से छठ महापर्व किया जा रहा था. पहले उनकी मां अन्नपूर्णा देवी के द्वारा यह कार्य किया जाता था. उनके निधन के बाद पिछले 20 वर्षों से अब छठ का पर्व उनके द्वारा ही किया जा रहा है. मान्यता है कि इस गांव में जो भी श्रद्धालु छठ पर्व के लिए आते हैं. उनकी मनोकामना पूरी होती है. बताया जाता है कि चर्म रोग, संतान प्राप्ति के साथ-साथ कई तरह के रोगों से निदान मिल जाता है.
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