‘नंद के घर आनंद भयो,जय कन्हैया लाल की’भजन पर झूमते रहे श्रद्धालु
कटोरिया बाजार के लकरा मोहल्ला में संचालित श्रीमदभागवत कथा के छठे दिन कथा पंडाल में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया.
कटोरिया(बांका).कटोरिया बाजार के लकरा मोहल्ला में संचालित श्रीमदभागवत कथा के छठे दिन कथा पंडाल में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया. इस दौरान समूचे कथा पंडाल को फूल-माला व गुब्बारे से आकर्षक ढंग से सजाया गया था. इस क्रम में गंगोत्री से पहुंचे कथावाचक ओमप्रकाश शास्त्री ने आकर्षक झांकी के बीच जब प्रसिद्ध श्रीकष्ण भजन ‘नंद के घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की’ गाया, तो पंडाल में उपस्थित सभी महिला-पुरूष श्रद्धालु काफी देर तक झूमते रहे. प्रवचन के दौरान कथावाचक ने कहा कि श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की रात में रोहिणी नक्षत्र अष्टमी तिथि बुधवार रात्रि के 12 बजे मथुरा के कारागार में हुआ था. वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ. मथुरा के राजा कंस की बहन देवकी का विवाह वासुदेव से हुआ. एक बार कंस अपनी बहन को उसके ससुराल पहुंचाने जा रहें थे, तभी रास्ते में आकाश वाणी हुई- हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी का अष्टम गर्भ तेरा काल होगा. इसके गर्भ से उत्पन्न होने वाला आठवां बालक तेरा वध करेगा. कंस देवकी को मारने लगा, पति वासुदेव ने कंस को मारने से रोका. देवकी के अपने भाई को वासदेव को मारने से रोका और कहां कि ””””””””मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मां तुम्हारे सामने ला दूंगी, वासुदेव को मारने से कोई लाभ नहीं होगा. कंस ने देवकी की इस बात को मान लिया और मथुरा वापस चला गया और देवकी और वासुदेव को कारागृह में डाल किया. इधर संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या ने जन्म लिया जो माया थी. श्रीकृष्ण के जन्म के वक्त प्रकाश हुआ, शंख नाद हुआ और चतुभुर्ज भगवान प्रकट हुए. वासुदेव और देवकी भगवान के चरणों में गिर पड़े. तब भगवान ने पुन: नवजात शिशु का रुप धारण कर लिया और वासुदेव जी नंदजी के घर वृंदावन में सुला आए और उनकी घर जन्मी कन्या को ले आए. जब कंस को सूचना मिली की वासुदेव और देवकी की आठवी संतान पैदा हो चुकी है. तो कंस ने नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, कन्या आकाश में उड़ गई और कह कर गई ””””अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है, और वही तुझे तेरे पापों का दंड देगा. कथा के अंत में आरती ‘श्रीभागवत भगवान की है आरती, पापियों को पाप से है तारती’ का सामूहिक गायन हुआ. फिर श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद का भी वितरण किया गया. यहां आयोजन को सफल बनाने में हरेराम सिंह, पूजक राजू सिंह, उनकी धर्मपत्नी रेणुका देवी, रंजीत सिंह, बबलू सिंह, मनोज सिंह, श्रवण सिंह उर्फ लोहा सिंह आदि अहम भूमिका
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