धनकुंड नाथ महादेव की पूजा-अर्चना किये बिना खेती शुरू नहीं करते किसान

बांका जिले का धोरैया प्रखंड की मकैता बबुरा पंचायत अंतर्गत धनकुंडनाथ शिव मंदिर, जो भागलपुर-बांका जिला की सीमा पर अवस्थित सन्हौला-जगदीशपुर मुख्य मार्ग के उत्तर दिशा में स्थित है. वर्तमान में धनकुंडनाथ भागलपुर, बांका जिले व गोड्डा जिले के श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र बिंदु बना हुआ है.

By Prabhat Khabar News Desk | July 24, 2024 8:56 PM

अविनाश सिंह, रजौन

सृष्टि के आरंभ से लेकर आज तक अपने भक्तों में भगवान शिव सबसे प्रिय रहे हैं. इसलिए वर्ष भर उनकी आराधना श्रद्धा से की जाती रही है. लेकिन जब बात श्रावण मास की करें तो यह मास ही भगवान शिव और पार्वती को समर्पित है. तभी तो जहां भी शिवालय हैं वहां का वातावरण शिवमय हो जाता है. ऐसे में प्राचीन शिवालयों की महत्ता कुछ और बढ़ जाती है. ऐसे ही मंदिरों में से एक है बांका जिले का धोरैया प्रखंड की मकैता बबुरा पंचायत अंतर्गत धनकुंडनाथ शिव मंदिर, जो भागलपुर-बांका जिला की सीमा पर अवस्थित सन्हौला-जगदीशपुर मुख्य मार्ग के उत्तर दिशा में स्थित है. वर्तमान में धनकुंडनाथ भागलपुर, बांका जिले व गोड्डा जिले के श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र बिंदु बना हुआ है.

धनकुंड मंदिर का इतिहास

दंत कथाओं के अनुसार धनकुंड शिव मंदिर का इतिहास धनु और मनु नामक दो भाईयों से जुड़ा हुआ है. बताया जाता है कि एक बार दोनों भाई इमली के वनों में भटक गये थे. इसी दौरान छोटे भाई मनु को बहुत जोर से भूख लगी थी. ऐसे में बड़े भाई धनु ने भातृत्व प्रेम की खातिर जंगल में कंद मूल और फल खोजना शुरू किया. इसी दौरान एक पेड़ की जड़ से लिपटा हुआ कंद मूल दिखा. धनु ने उसे पाने के लिए प्रहार किया तो उससे रस के बदले खून की धार फूट पड़ी. इसे देख दोनों भाई वहां से भाग निकले, लेकिन ईश्वर की महिमा ही कही जा सकती है कि वो दोनों जहां भी जाते भटक कर वहीं आकर खड़ा हो जाता. अंतत: हारकर दोनों भाई सो गये तो उन्होंने स्वप्न में देखा कि यहां पर भगवान शिव विराजमान हैं और पूजा करने की बात कह रहे हैं. आंख खुलते ही धनु ने कुंड के करीब खुदाई की तो उस दौरान कंद के भीतर से एक शिवलिंग प्राप्त हुआ. इसके बाद इस स्थान का नाम धनकुंड पड़ा. यहां के पुजारी का कहते हैं कि यहां भूमफोड़ महादेव हैं. यहां का शिवलिंग भूमि को स्पर्श नहीं करता है. धार्मिक दृष्टिकोण से यह जिले का प्रसिद्ध मंदिर है.

कभी यह क्षेत्र इमली के वनों के लिए था विख्यात

मंदिर के पुजारी बाबा मटरू सिंह ने बताया कि उनके पूर्वजों के अनुसार यह पवित्र स्थल पहले इमली के जंगलों से घिरा हुआ था. धीरे-धीरे भगवान भोलेनाथ की कृपा से यह स्थल काफी रमणीय बन गया. आज यहां बिहार ही नहीं झारखंड के शिव भक्त भोलेनाथ का पूजा अर्चना करने आते हैं. मटरू बाबा ने आगे बताया कि इस मंदिर में जो भी भक्त सच्चे मन से पूजा-अर्चना करते हैं. उनकी हर मनोकामना फौजदारी बाबा धनकुण्ड नाथ अवश्य पूरा करते हैं. मान्यता है कि इस इलाके के लोग कृषि कार्य या अन्य कोई मांगलिक कार्य बाबा के पूजा-अर्चना के बाद ही शुरू करते हैं.

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