लॉकडाउन में इंसान मायूस, तो खिलखिला रही है प्रकृति
वैश्विक आपदा कोरोना वायरस की जंग में जारी देशव्यापी लॉकडाउन में जहां एक ओर इंसान के चेहरे से मुस्कुराहट गायब है, वहीं दूसरी ओर प्रकृति की मनमोहक छटा मुस्कुराती नजर आ रही है.
दीपक चौधरी, कटोरिया : वैश्विक आपदा कोरोना वायरस की जंग में जारी देशव्यापी लॉकडाउन में जहां एक ओर इंसान के चेहरे से मुस्कुराहट गायब है, वहीं दूसरी ओर प्रकृति की मनमोहक छटा मुस्कुराती नजर आ रही है. लॉकडाउन व सोशल डिस्टेंसिंग के कारण इंसान जहां एक ओर अपने-अपने घरों में कैद हैं, अधिकांश वाहनों का परिचालन बंद होने से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन रूक गया है. वायु व ध्वनि प्रदूषण का ग्राफ काफी नीचे आ चुका है. वहीं दूसरी ओर क्षेत्र के अधिकांश झरने, जंगल, पहाड़ सहित मुख्य मार्ग के किनारे तक की खूबसूरती पर चार चांद लग गया है. चहुंओर प्रकृति की मनोरम, बेहतरीन व सुंदर तस्वीर देखने को मिल रही है.
वर्षों बाद घर बैठे चिडि़यों की चहचहाहट व कोयल की मीठी कूक सुनायी दे रही है. पक्की सड़क किनारे के पेड़-पौधे भी धूल-मुक्त होकर गहरी हरियाली से इतरा रही है. इंसानी चहलकदमी रूकने से प्रकृति की धरा पर हरी-हरी घासों की मखमली चादर बिछी हुई है. प्रतिदिन आसमान में बादल से मौसम सुहाना बन रहा है. कभी बूंदाबांदी, तो कभी रिमझिम बारिश हो रही है. यानि खुले आसमान, खुली हवा व खुली धरती का समूचा मंजर ही बदल-बदला सा दिख रहा है.
पिंजड़े रूपी घरों में भले ही इंसान बेचैन दिख रहा हो, लेकिन प्रकृति, नदी, झरने, जंगल, पहाड़, पशु-पक्षी, जीव-जंतु सभी प्रत्यक्ष रूप से प्रसन्नचित्त नजर आ रहे हैं. इस प्रदूषणमुक्त वातावरण का सबसे सकारात्मक व ठोस प्रमाण यह है कि साधारण सर्दी, खांसी व बुखार के मरीजों की संख्या में अप्रत्याशित कमी आ चुकी है. लॉकडाउन में खिलखिलाती प्रकृति की तस्वीर को यदि बरकरार रखना है, तो हम इंसानों को भी इसके संरक्षण को दृढ़ संकल्प लेने होंगे.