जीवितपुत्रिता व्रत को लेकर जिलेभर के महिलाओं में उत्साह का माहौल, तैयारी में जुटी व्रती, बाजार हुआ गुलजार.

हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है.

By Prabhat Khabar News Desk | September 22, 2024 9:29 PM
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निर्जला उपवास कर मां अपने बच्चों की लंबी उम्र की करेंगी कामना. बांका. जीवितपुत्रिका व्रत को लेकर जिलेभर के महिला श्रद्धालुओं में उत्साह का माहौल है. व्रत रखने वाली महिला श्रद्धालुओं द्वारा विभिन्न तरह की तैयारी की जा रही है. यह त्यौहार अंग क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है. जिसमें अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं इस व्रत को रखती है. इस दिन माताएं भगवान जीमूतवाहन की विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है. यह व्रत बड़ा ही कठिन है. क्योंकि इसमें माताएं निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान से संतान के बेहतर भविष्य की कामना करती हैं. मालूम हो कि जीवितपुत्रिका व्रत में भी छठ पूजा की तरह नहाय-खाय और खरना की परंपरा है. इस संबंध में बौंसी गुरुधाम के पंडित गोपाल शरण ने बताया कि इस साल जितिया व्रत कुछ इलाके में 24 तो कुछ क्षेत्र में 25 सितंबर यानी बुधवार के दिन रखा जायेगा. जबकि इस बार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितंबर को दोपहर 12:38 बजे पर प्रारंभ होगी और 25 सितंबर को दोपहर 12:10 बजे समाप्त होगी. इस लिए उदया तिथि के आधार पर इस साल जितिया व्रत 24 व 25 सितंबर के दिन रखा जायेगा. जीवितपुत्रिका व्रत पूजन का समय शाम के चौघड़िया शुभ मुहूर्त यानी शाम 04 बजकर 43 मिनट से शाम 06 बजकर 13 मिनट तक रहेगा. -जीवितपुत्रिका व्रत का अनुष्ठान व महत्व. जीवितपुत्रिका व्रत का त्यौहार अपने बच्चों के प्रति चरम और कभी खत्म न होने वाले प्रेम और स्नेह के बारे में है. इस अवसर पर मां अपने बच्चों के कल्याण के लिए बहुत सख्त उपवास रखती हैं. जीवितपुत्रिका व्रत के दौरान पानी की एक बूंद का भी सेवन नहीं किया जाना चाहिए. यदि यह उपवास पानी से किया जाता है तो उसे खुर जितिया कहा जाता है. अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष के दौरान सातवें दिन से नौवें दिन यह तीन दिन तक मनाया जाता है. प्रथम दिन जो त्यौहार का पहला दिन होता है, उसे नाहाई-खाई कहा जाता है. इस दिन माताएं स्नान करने के बाद पोषण के स्रोत के रूप में भोजन का उपभोग करती हैं. दूसरे दिन मां एक सख्त जीवितपुत्रिका उपवास का पालन करती हैं. इस त्यौहार के तीसरे दिन पारण के साथ (मुख्य पोषण का उपभोग) व्रत सम्पूर्ण किया जाता है. -जीवितपुत्रिका व्रत की कहानी. पौराणिक कथाओं के अनुसार जिमुतवाहन नामक एक दयालु और बुद्धिमान राजा था. राजा विभिन्न सांसारिक सुखों से खुश नहीं था और इसलिए उसने अपने भाइयों को राज्य और उससे संबंधित जिम्मेदारियां दी और उसके बाद जंगल में रहने चला गया. कुछ समय बाद जंगल में चलते समय राजा को एक रोते हुए बूढ़ी औरत मिली थी. जब उसने उससे पूछा राजा को पता चला कि महिला नागवंशी (सांपों के परिवार) से संबंधित है और जिसका केवल एक बेटा था. लेकिन उन्होंने जो शपथ ली थी उसके अनुसार पक्षीराज गरुड़ को हर दिन एक सांप पेश करने का अनुष्ठान था और आज उसके बेटे की बारी थी. महिला की दुर्दशा को देखते हुए जिमुतवाहन ने उससे वादा किया कि वह उसके बेटे और उसके जीवन को गरुड़ से बचाएंगे. फिर वह खुद को एक लाल रंग के कपड़े में ढंककर चट्टानों पर लेट गया और खुद को गरुड़ के लिए खाने के रूप में पेश किया. जब गरुड़ आया तो उसने जिमुतवाहन को पकड़ लिया. अपने खाने के दौरान उसने देखा कि उसकी आंखों में कोई आंसू या मौत का डर नहीं है. गरुड़ ने यह आश्चर्यजनक पाया और उसकी वास्तविक पहचान पूछी. पूरी बात सुनते समय, पक्षीराज गरुड़ ने जिमतुवाहन को मुक्त कर दिया. क्योंकि वह उसकी बहादुरी से प्रसन्न थे और उसने सांपों से बलिदान और त्याग नहीं लेने का वादा किया. इस प्रकार राजा की उदारता और बहादुरी के कारण, सांपों के जीवन को बचाया गया. इसलिए यह दिन जीवितपुत्रिका व्रत के रूप में मनाया जाता है. जब मां अपने बच्चों की भलाई अच्छे भाग्य व दीर्घायु के लिए उपवास रखती है. – इस रीति-रिवाज के अनुसार किया जाता है व्रत. जीवितपुत्रिका उपवास बहुत उत्साह व खुशी के साथ मनाया जाता है. बच्चों की दीर्घायु और अच्छे भाग्य के लिए मां इस व्रत का पालन सबसे धार्मिक रूप में करती है. जो महिलाएं सख्त जीवितपुत्रिका व्रत का पालन करती हैं उन्हें सूर्योदय से पहले सुबह उठना चाहिए. पवित्र स्नान करना चाहिए और पवित्र भोजन ग्रहण करना चाहिए. उसके बाद वे पूरे दिन भोजन और पेयजल पीने से खुद दूर रखती हैं. अगली सुबह जब अष्टमी तिथि समाप्त होती है. तब महिलाएं अपना उपवास समाप्त कर सकती हैं. -जितिया व्रत के दिन शुभ मुहूर्त. ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:35 से सुबह 05:22 तक. अमृत काल- 12:11 पीएम से 01:49 पीएम तक. प्रातः संध्या- सुबह 04:59 बजे से सुबह 06:10 बजे तक. विजय मुहूर्त- दोपहर 02:12 बजे से दोपहर 03:00 बजे तक. गोधूलि मुहूर्त- शाम 06:13 से शाम 06:37 बजे तक. सायाइ संध्या- शाम 06:13 बजे से शाम 07:25 बजे तक.

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