पंजवारा.पति परमेश्वर के दीर्घायु को लेकर वट सावित्री की पूजा विवाहित महिलाओं के द्वारा की जाती है. मान्यता के अनुसार आदिकाल से यह पर्व मनाया जा रहा है. सावित्री नामक एक सुहागन सत्यवान को यमराज के हाथ से वापस पृथ्वी पर बुला लिया था. सावित्री के पतिवर्ता को देख कर देवता भी हैरत में पड़ गये, तभी से इस पर्व को सुहागिन वट सावित्री व्रत के रूप में मनाती आ रही है. वट वृक्ष की परिक्रमा के पीछे मान्यता है कि पति सात जन्म तक मिलते रहे, साथ ही वृक्ष की परिक्रमा में सारे पापाें से भी मुक्ति मिलती है. यह वृक्ष के नीचे सत्यवान और सावित्री माता गायत्री की बहन की पूजा को भी की जाती है. व्रत को लेकर पंडित महेश मिश्रा ने बताया कि कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को यह पर्व मनाया जाता है. धर्म शास्त्रों में वर्णित है कि सावित्री ने जिस प्रकार अपने पति को फिर से जिंदा कर सारे सौभाग्य को प्राप्त की थी. इसी प्रकार सभी महिला सुहागिन महिलाएं सुहागन की प्राप्ति के लिए पूजन करती है. वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री सत्यवान को गोद में रख कर बैठी थी तभी यमराज ने सत्यवान के प्राण को हर लिया था, यमराज से पति के प्राण वापस करने के लिए वह यमपुरी के द्वार तक चली गयी थी. सावित्री की निष्ठा और पतिवर्ता से विवश होकर यमराज को सत्यवान के प्राण वापस कर पुत्रवती होने का वरदान दिया था. पर्व को लेकर बाजार में सोमवार को काफी चहल-पहल देखी गयी. फलों एवं मिठाइयों के दुकानों में काफी भीड़ भाड़ रही.
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