सिमरिया धाम में साहित्य महाकुंभ का दूसरा दिन, कलयुग में महामंत्र है राम का नाम : मोरारी बापू
बेगूसराय/बीहट : अंतरराष्ट्रीय रामकथा वाचक व मानस मर्मज्ञ संत मोरारी बापू ने सिमरिया धाम के पावन तट पर रामकथा के दूसरे दिन राम नाम की महत्ता का बखान किया. उन्होंने कहा कि इस कलयुग में राम का नाम ही महामंत्र है. इसके लिए कोई नियम और विधान नहीं है, बल्कि सिर्फ भाव होना चाहिए. सोते-जागते, […]
बेगूसराय/बीहट : अंतरराष्ट्रीय रामकथा वाचक व मानस मर्मज्ञ संत मोरारी बापू ने सिमरिया धाम के पावन तट पर रामकथा के दूसरे दिन राम नाम की महत्ता का बखान किया. उन्होंने कहा कि इस कलयुग में राम का नाम ही महामंत्र है.
इसके लिए कोई नियम और विधान नहीं है, बल्कि सिर्फ भाव होना चाहिए. सोते-जागते, उठते-बैठते, किसी अवस्था में राम नाम कल्याणकारी है. मोरारी बापू ने कहा कि रामचरित मानस में तुलसीदास ने भी राम नाम की महिमा बतायी है. इसके जप से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि निर्मल मन वाला ही राम को प्राप्त कर सकता है, कपटी बुद्धि वाला नहीं. राम ओंकार स्वरूप हैं और प्रणव रूप हैं, राम महामंत्र है, उसके जप से मुक्ति मिल जायेगी. उन्होंने कहा कि राम-राम जपने से राम भले न मिलें, लेकिन जपने वाला राम समान हो जाता है.
मंगल भवन अमंगलहारी से शुरू हुआ रामकथा का दूसरा दिन : मोरारी बापू ने कहा, जो दिया हुआ पल चूक जाता है, वह परलोक नहीं जाता है.
यहीं नरक में पड़ा रह जाता है. उन्होंने गुरु की महिमा का बखान करते हुए कहा कि सच्चा गुरु वह है, जो उत्सव न छुड़ाये बल्कि मन के उद्वेग को छुड़ाये. जीवन के आवागमन से मुक्त कराये. उद्वेग की परिभाषा देते हुए उन्होंने कहा कि यह पांच प्रकार का होता है-रागोद्वेग, द्वेषाद्वेग, कामोद्वेग, क्रोधाद्वेग और लोभाद्वेग. उन्होंने कहा कि राग का केंद्र ही द्वेष है. राग मारना है तो द्वेष का त्याग करना ही होगा. रामनाम का जाप ही इसका एकमात्र उपाय है.
उन्होंने ‘आदि’ का शाब्दिक अर्थ समझाते हुए कहा कि सर्वप्रथम शुरू करने वाला, जिसकी वाणी छंदोबद्ध हो, उसे आदि कवि का दर्जा मिलता है. उन्होंने कहा कि मानव रूप में वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है. ब्रजभाषा के सूरदास भी आदि कवि कहे जाते हैं. वैसे ही जयदेव आदिभक्त हैं. ठीक वैसे ही मानस आदि कवि राष्ट्रकवि दिनकर हैं और आदि चालीसा हनुमान चालीसा है.
दिनकर अपने आप में कुंभ थे
रामकथा के दूसरे दिन साहित्यिक चर्चा करते हुए बापू पूरे प्रवाह में दिखे. उन्होंने कहा कि दिनकर अपने आप में कुंभ थे. उनकी रचनाओं में कई प्रवाह एक साथ दिखते हैं. उर्वशी और संस्कृति के चार अध्याय कोई पढ़े तो समझे. दिनकर की रचनाएं प्रेरणा देती हैं. वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा से पूरी दुनिया हमारी है. हम आपके हैं और आप हमारे. उन्होंने कहा कि दिनकर के सूत्रात्मक वक्तव्य को युवा पीढ़ी को पढ़ना चाहिए, क्योंकि दिनकर आज भी प्रासंगिक हैं.
सांसद कर्ण िसंह ने लिया आशीर्वाद
रामकथा के दूसरे दिन आयोजन समिति के अध्यक्ष सांसद कर्ण सिंह कथास्थल पर पहुंचे और बापू का आशीर्वाद लिया. इस मौके पर राजद के पूर्व सांसद रघुवंश प्रसाद सिंह सहित अन्य गण्यमान्य अतिथि उपस्थित थे. आयोजन समिति के अध्यक्ष राजा कर्ण सिंह के लिए कथा मंच पर ही आसन दिया गया था.