बेगूसराय : सिमरिया धाम में आयोजित रामकथा में संत मोरारी बापू ने कहा कि किसी व्यक्ति की मूल प्रकृति कभी नहीं बदल सकती. लाख कोशिश के बावजूद समय-समय पर वह प्रकट हो जाती है, लेकिन एक मात्र सत्संग में ही वह शक्ति है जो किसी की मूल प्रकृति को भी बदल सकता है. संत का स्पर्श, सान्निध्य और संभाषण अधमुएं नर-नारी को भी नवजीवन दे सकता है. साधु की न कोई जाति होती है और न कोई वर्ण. साधु सिर्फ साधु होता है. साधु-संत तो वह मंत्र देते हैं कि आपका उद्धार हो. रामकथा के श्रवण से आपका कल्याण और उद्धार होगा.
मेरा व्यास पीठ इतना समृद्ध है कि इसके सामने इंद्रलोक भी कंगाल : रामकथा के दौरान बापू ने अपने दादा जी को अपना सदगुरु बताते हुए कहा जिस महापुरुष-संत में पांच प्रकार का स्वभाव हो, वह समर्थवान है. समर्थवान की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि जिसमें राम का स्वभाव हो, कृष्ण का प्रभाव हो, भगवान महादेव का सद्भाव हो, कामना का अभाव हो और राम नाम के प्रति लुभाव हो, वह हर प्रकार से समर्थवान है और ऐसे संतों के साहचर्य में रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि मेरा व्यास पीठ इतना समृद्ध है कि इसके सामने इंद्रलोक भी कंगाल है.
भ्रांति खत्म कर बहन व बेटी करें हनुमान चालीसा का पाठ
बापू ने कहा कि महिलाओं में ऐसी भ्रांति है कि उन्हें हनुमान चालीसा का पाठ नहीं करना चाहिए. यह भ्रांति दूर होनी चाहिए. हनुमान आपके हैं और आप उनके हैं. सभी बहन-बेटी हनुमान चालीसा का पाठ करें, उसके बाद किसी और पूजा की जरूरत उन्हें नहीं है. राम मंत्र का जाप जब भी समय मिले किया जाना चाहिए. बापू ने कहा जब वाल्मीकि मरा-मरा कर भवसागर पार उतर सकते हैं तो हम राम-राम जप कर क्यों नहीं पार उतर सकते हैं.