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उद्धारक की बाट जोह रहा गढ़हरा यार्ड

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22 सौ एकड़ उपजाऊ जमीन सहित बाग-बगीचों का किया गया था अधिग्रहण बेगूसराय(कार्यालय) : र्ष 1957 में पटना जिले के हाथिदह और बेगूसराय जिले के सिमरिया घाट के बीच राजेंद्र पुल निर्माण कार्य के साथ ही एशिया प्रसिद्ध रेलवे यार्ड, गढ़हरा की भी नींव रखी गयी. तब शेष बिहार को उत्तर बिहार से जोड़ने का […]

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22 सौ एकड़ उपजाऊ जमीन सहित बाग-बगीचों का किया गया था अधिग्रहण
बेगूसराय(कार्यालय) : र्ष 1957 में पटना जिले के हाथिदह और बेगूसराय जिले के सिमरिया घाट के बीच राजेंद्र पुल निर्माण कार्य के साथ ही एशिया प्रसिद्ध रेलवे यार्ड, गढ़हरा की भी नींव रखी गयी. तब शेष बिहार को उत्तर बिहार से जोड़ने का एक मात्र जरिया रेलवे द्वारा संचालित मोकामा घाट-सिमरिया घाट जलमार्ग ही था.
मोकामा घाट रेलवे स्टेशन और सिमरिया घाट रेलवे स्टेशन से आगे रेलमार्ग द्वारा यात्रियों, जानवरों सहित अन्य सामान की आवाजाही होती थी. वर्ष 1959 में राजेंद्र पुल के उद्घाटन के दिन ही गढ़हरा यानांतरण यार्ड का भी कार्यारंभ हो गया. इस यार्ड हेतु रेलवे ने बीहट, कील-गढ़हारा आदि गांवों के किसानों की करीब 22 सौ एकड़ उपजाऊ जमीन सहित बाग-बगीचों का अधिग्रहण किया गया.
गढ़हारा यार्ड ही संपूर्ण उत्तर बिहार, नेपाल, उत्तर प्रदेश तथा पूर्वोतर के राज्यों को रेल नेटवर्क से जोड़ने का केंद्र बना, तब राजेंद्र पुल से होकर गढ़हारा यार्ड आनेवाली तमाम मालगाड़ियां बड़ी लाइन की होती थीं. वहीं, उत्तर बिहार एवं पूर्वोत्तर राज्यों से आनेवाली मालगाड़ियां छोटी लाइन की होती थीं.
गढ़हारा रेलवे यार्ड में छोटी लाइन की मालगाड़ियों से आये सामान को बड़ी लाइन की मालगाड़ियों में और बड़ी लाइन से आये सामान एवं पेट्रोलियम पदार्थो को छोटी लाइन की मालगाड़ियों में यानांतरण किया जाता था. इस कार्य से हजारों ठेका मजदूरों की जीविका चलती थी. पूर्वोत्तर रेलवे के संगम स्थल पर बने इस गढ़हारा रेलवे यार्ड में प्रतिदिन सैकड़ों रैक, मालगाड़ियों के यानांतरण कार्य को सुचारु ढंग से संचालित करने हेतु पूर्व रेलवे के अधीन एक वाष्प लोको शेड था.
गढ़हरा यार्ड में मालगाड़ियों में आयी खराबी को ठीक करने हेतु यहां मंडल स्तर का कैरेज एंड वैगन वर्कशाप भारी सामान के यानांतरण हेतु रेल पथ पर चलनेवाला भारी क्रेन, संचार सुविधा के लिए रेलवे सुरक्षा बल की चार कंपनियों के लिए कार्यालय, बैरेक, अधिकारी विश्रम गृह, रेलवे के चालकों एवं गार्डो के लिए विश्रमगृह, दर्जन भर जलमीनार, हजार एकड़ से भी ज्यादा जमीन के नीचे पाइपों का जाल बिछा था. गढ़हारा यार्ड में प्रथम श्रेणी के रेल अधिकारी हेतु क्षेत्रीय कार्यालय एवं सहायक यातायात अधीक्षक का सुसज्जित कार्यालय एशिया केंट्रोल ऑफिस था. सिमरिया और बीहट को जोड़ने हेतु ऊपरगामि पैदल पुल भी बने थे.
सन 1962 में भारत-तीन युद्ध के समय पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाओं की सुरक्षा में तैनात जवानों को सामान एवं युद्ध सामग्री की तत्परता से आपूर्ति करके गढ़हरा यार्ड एशिया महादेश में चर्चित हुआ था. तीन जनवरी, 1975 को पूर्व रेल मंत्री स्व ललित नारायण मिश्र द्वारा समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर बड़ी लाइन निर्माण का उद्घाटन करने के बाद उनकी हत्या कर दी गयी थी.
गढ़हरा ट्रांसीपमेंट पर इसका आंशिक असर हुआ. यानांतरण कार्य में लगे नार्थ बिहार हैंडलिंग कॉन्ट्रैक्टर के 1260 ठेका मजदूरों को भी रेलवे ने अस्थायी कर्मचारी का दर्जा देकर ट्रांसीपमेंट में ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर दी.
11 अक्तूबर, 1984 को पूर्व प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गांधी द्वारा कटिहार से बरौनी तक बड़ी लाइन का उद्घाटन किये जाने के बाद गढ़हरा के यानांतरण कार्य पर ज्यादा असर पड़ा. पूर्वोत्तर रेलवे के तत्कालीन महाप्रबंधक डी हरिराम ने गढ़हरा यार्ड का निरीक्षण कर बताया था कि जब संपूर्ण उत्तर-बिहार में ब्रॉडगेज का लाइन बिछ जायेगा, तो गढ़हारा पलटैया स्वत: समाप्त हो जायेगा.
उन्होंने गढ़हारा यार्ड के विशाल भूखंड पर मौजूद तमाम आधारभूत संसाधनों के मद्देनजर कोच फैक्टरी लगाने का प्रस्ताव रेलवे बोर्ड को भेजा था. रेलवे मंत्रलय का इसे त्रसदी ही कहा जाये कि पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद स्व गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगे पर मरहम लगाने हेतु गढ़हारा के लिए प्रस्तावित कोच फैक्टरी पंजाब के कपूरथला में लगाया गया.

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