विलुप्त होने के कगार पर है चंद्रभागा नदी

उद्धार होने से किसानों के लिए समुचित सिंचाई व मछली पालन को मिलेगा बढ़ावा शासन व प्रशासन की उपेक्षा का है शिकार बेगूसराय/बखरी : जिले के बखरी नगर की जीवन रेखा माने जानेवाली ऐतिहासिक चंद्रभागा नदी आज विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गयी है. क्षेत्रीय लोगों को उद्धार करनेवाली यह नदी आज स्वयं उद्धारक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 28, 2015 1:11 AM
उद्धार होने से किसानों के लिए समुचित सिंचाई व मछली पालन को मिलेगा बढ़ावा
शासन व प्रशासन की उपेक्षा का है शिकार
बेगूसराय/बखरी : जिले के बखरी नगर की जीवन रेखा माने जानेवाली ऐतिहासिक चंद्रभागा नदी आज विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गयी है. क्षेत्रीय लोगों को उद्धार करनेवाली यह नदी आज स्वयं उद्धारक की बाट जोह रही है. किसानों के लिए लाभप्रद साबित होनेवाली यह नदी शासन व प्रशासन की उपेक्षा का शिकार बनी हुई है.
इस दिशा में किसी प्रकार की सकारात्मक पहल नहीं होना प्रशासनिक उदासीनता को दरसाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस नदी को मृतप्राय होने से बचाने के लिए इस दिशा में कई बार शासन व प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया गया, लेकिन आज तक इस दिशा में पहल करना किसी ने मुनासिब नहीं समझा. इससे स्थानीय लोगों में आक्रोश है.
बोलचाल में चनहा के नाम से जानी जाती है चंद्रभागा नदी :जिले के प्रसिद्ध चंद्रभागा नदी को आम बोलचाल की भाषा में चनहा के नाम से जाना जाता है. इसका इतिहास काफी पुराना है.
वैदिक काल में लिखे ग्रंथों एवं पंचांगों में नदी की विस्तृत जानकारी मिलती है. पंचांगों के दाह-संस्कार विवरणी में उक्त नदी को पापहारिणी की संज्ञा दी गयी है. हालांकि, इसके उद्गम स्थल को लेकर स्थानीय स्तर पर कई प्रकार की भ्रांतियां हैं. एसएस कॉलेज, सोनीहार के व्याख्याता प्रो सुधीर कुमार चौरसिया के अनुसार, यह अनुगामी नदी प्रणाली का अवशिष्ट है.
हिमालय उद्गम के साथ ही इसके स्वरू प में परिवर्तन आ गया. अपवाह मार्ग बदल गये. वर्तमान में इसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, किंतु खगड़िया जिले के अलौली प्रखंड अंतर्गत संतोष नामक स्थल पर इसका स्लुइस गेट खड़ा किया गया है, जहां इसका विलय कोसी की शाखा करेह अथवा बागमती से होता है. बेगूसराय, खगड़िया व समस्तीपुर जिलों के भू-भाग में फैली इस नदी को चनहा, जमुआरी आदि नामों से जाना जाता है. बताया जाता है कि ऐतिहासिक बहुरा मामा की ठूठ्ठी पाकड़ भी इसी नदी के किनारे अवस्थित है.
नाले के रूप में बदल गयी है नदी :
वर्तमान में इसके बहाव मार्ग नदी अपहरण के कारण मिट गये हैं. इसके चलते इसका स्वरू प बड़े नाले की तरह रह गया है. बताया जाता है कि कई स्थानों पर जमींदारों के द्वारा इसके बहाव क्षेत्र को बंदोवस्त कर दिया गया है. अनेक जगहों पर तो इसके प्रवाह मार्ग में लोगों ने घर भी बनाना शुरू कर दिया है. वर्त्तमान समय में 100 किलोमीटर से ज्यादा अपवाह मार्ग हैं, जिसमें लोग मछलीपालन, सिंचाई तथा शवदाह का काम करते हैं.
उड़ाही कर गंडक नदी से जोड़ने पर मिलेगा लाभ : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नदी जोड़ो योजना के तहत काबर प्रोजेक्ट के जरिए चंद्रभागा की उड़ाही कर गंडक नदी से जोड़ने पर क्षेत्र के लोगों को लाभ मिल सकता था, लेकिन इस योजना पर कोई पहल नहीं दिख रही है.
लोगों का मानना है कि नदी जोड़ों योजना में यदि इसे शामिल किया जाता है तो यह राजस्थान की लुनी नदी साबित हो सकती है. किसानों के लिए समुचित सिंचाई तथा मछलीपालन को बढ़ावा मिलेगा. चंद्रभागा नदी का उद्धार सरकार ही नहीं आम-अवाम के लिए भी लाभप्रद है.
हमारे पास इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं आया है. प्रस्ताव मिलने पर उचित माध्यम से पहल के लिए सरकार के पास भेजा जायेगा.
संजीव कुमार झा, प्रखंड विकास पदाधिकारी, बखरी, बेगूसराय

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