उम्मीदों पर फिरा पानी

विपिन कुमार मिश्र, बेगूसराय: जिले के किसानों के लिए वर्ष 2013 काफी झटका देनेवाला वर्ष साबित हुआ है. प्रतिकूल मौसम ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. किसानों ने कर्ज लेकर खेतों में फसल लगायी थी. लेकिन, मौसम ने किसानों को दगा देते हुए उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 19, 2013 12:51 AM

विपिन कुमार मिश्र, बेगूसराय: जिले के किसानों के लिए वर्ष 2013 काफी झटका देनेवाला वर्ष साबित हुआ है. प्रतिकूल मौसम ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. किसानों ने कर्ज लेकर खेतों में फसल लगायी थी. लेकिन, मौसम ने किसानों को दगा देते हुए उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया है. राज्य सरकार ने 33 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है, जिससे किसानों में कुछ उम्मीदें जगी हैं. सूखाग्रस्त इलाकों के लिए राज्य सरकार द्वारा किस तरह की सहायता उपलब्ध करायी जाती है, इस पर किसान टकटकी लगाये हुए हैं.

पूरा नहीं हुआ लक्ष्य

इस बार जिले में धान की खेती के लिए 12 हजार हेक्टेयर का लक्ष्य दिया गया था. इसके अनुरूप मात्र नौ हजार, 706 हेक्टेयर में ही आच्छादन हो पाया है. जहां धान की खेती हुई भी है, वहां की फसल दम तोड़ रही है. इससे किसानों के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गयी है. मौसम की बेरुखी के कारण इस बार बारिश की स्थिति संतोषजनक नहीं रही. जुलाई माह में 271 मिमी वर्षा के अनुपात में 139 मिमी बारिश हुई. इसी तरह अगस्त माह में 324 मिमी बारिश के अनुपात में मात्र 114 मिमी बारिश हुई है. सितंबर में अभी तक मात्र 53 मिमी ही बारिश हो पायी है.

सिंचाई की परेशानी

जिले में नाला और नलकूपों की स्थिति अत्यंत खराब है. किसान महंगी दर पर या तो पानी खरीद कर फसल को जिंदा रखते हैं या फिर मौसम पर ही पूरी तरह से सिंचाई के लिए आश्रित रहते हैं. जिले में 281 नलकूप हैं, जिनमें मात्र 71 ही चालू अवस्था में हैं. जिले में नलकूप से 96 हजार हेक्टेयर भूमि सिंचित करने का लक्ष्य है. लेकिन, जो नलकूपों की स्थिति है, उसमें 10 हजार हेक्टेयर भूमि भी सिंचित नहीं हो पाती है. नहर व नालों की स्थिति सही नहीं रहने से किसानों को सिंचाई के लिए दर-दर भटकना पड़ता है.

नहीं मिल पाता है अनुदान

राज्य सरकार द्वारा पटवन के लिए डीजल अनुदान उपलब्ध कराया जाता है. लेकिन, यह अनुदान धरातल पर खेती करनेवाले किसानों को नहीं मिल पाता है. कई को तो कार्यालयों और जनप्रतिनिधियों का चक्कर लगाना पड़ता है. कभी मौसम की मार से किसान त्रस्त होते हैं, तो कभी आर्थिक रू प से इतना टूट जाते हैं कि किसान खेती से मुंह मोड़ लेते हैं. इस बार भी किसानों ने कर्ज लेकर खेतों में फसल लगायी. लेकिन, मौसम की मार ने किसानों की बैचेनी बढ़ा दी है.

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