कामगारों के पीएफ पर कंपनियों की बुरी नजर

बेगूसराय/बीहट : बरौनी थर्मल के न्यू एक्सटेंशन प्रोजेक्ट में निर्माण कार्य करा रही कंपनी भेल एवं उसके अधीनस्थ कंपनियों के द्वारा नौकरी पर रखने व काम निकल जाने के बाद मनमाने ढंग से मजदूरों को बाहर कर देने का खेल विगत 4 वर्षों से बदस्तूर जारी है. हद तो यह है कि भेल व अधीनस्थ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 10, 2015 7:24 AM
बेगूसराय/बीहट : बरौनी थर्मल के न्यू एक्सटेंशन प्रोजेक्ट में निर्माण कार्य करा रही कंपनी भेल एवं उसके अधीनस्थ कंपनियों के द्वारा नौकरी पर रखने व काम निकल जाने के बाद मनमाने ढंग से मजदूरों को बाहर कर देने का खेल विगत 4 वर्षों से बदस्तूर जारी है.
हद तो यह है कि भेल व अधीनस्थ कंपनियां सिम्प्लेक्स, जेएमसी, मैक्नली भारत, जेडीसीएल, हरजी, गोल्डन, बजाज सहित अन्य छोटी-बड़ी कंपनियां मजदूरों को नौकरी से निकाले जाने से पहले नोटिस तक देना जरूरी नहीं समझते. निकाले जाने से पहले पूर्ण भुगतान तो दूर की बात है. कंपनियां तर्क देती है कि जरूरत नहीं थी, इसलिए मजदूरों को निकाल दिया गया. एक कंपनी के बड़े अधिकारी ने कहा कि हर विभाग में ऐसा ही होता है.
काम खत्म होने के बाद मजदूरों को निकाल दिया जाता है. यह कोई बड़ी या नयी बात नहीं है. मजदूरों ने बताया कि न्यूनतम मजदूरी के अनुसार उनकी सैलरी से कंपनियों के द्वारा पीएफ के नाम पर किसी का कम तो किसी का ज्यादा पैसा काटा गया. मगर पीएफ का डिटेल पूछने पर कंपनियां हमेशा कोई न कोई बहाना बनाकर टाल-मटोल कर रही हैं.
अनियमित भुगतान व सैलरी स्लिप सहित अन्य मांगों की आवाज उठानेवाले मजदूरों को जबरन काम से हटाने का खेल जारी है.
यूनियन ने लगाया बड़े घोटाले का आरोप : ट्रेड यूनियन संघर्ष समिति के संयोजक नारायण सिंह, बीएमस प्रतिनिधि शंभु कुमार, राजद नेता रामानंद प्रसाद यादव, युवा नेता मुकेश राय, एटक नेता राम प्रकाश राय, अनिरुद्ध सिंह, इंटक नेता चुनचुन राय सहित अन्य मजदूर नेताओं ने कहा कि भेल की स्वीकृति से कंपनियां मजदूरों के मेहनत की कमाई लूट रहे हैं.
प्रबंधक तथा ठेकेदार गठजोड़ कर विगत चार वर्षों से मजदूरों के पीएफ के लाखों-करोड़ों का घोटाला कर रहे हैं. उन्होंने स्वतंत्र एजेंसी से मामले की जांच की मांग की. भेल के अधीनस्थ सुखी सिक्यूरिटी प्राइवेट के सुरक्षाकर्मियों प्रभाकर सिंह, देवेंद्र सिंह,विजय सिंह, अरुण कुमार सिंह, मनीष कुमार सिंह आदि ने भी कंपनी पर धांधली का आरोप लगाया है. कर्मियों ने कहा कि पहले कंपनी प्रति माह 7200 रुपये देती थी, लेकिन अब दो माह से 6 045 रुपये मिल रहा है.
कई बार हो चुका है समझौता : मजदूरों के हक की आवाज उठाने वाला बरौनी थर्मल पावर का कर्मचारी यूनियन एटक के मजदूर नेता प्रह्लाद सिंह एवं संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक नारायण सिंह से भेल व उसकी सहयोगी कंपनियों ने कई बार लिखित समझौता किया है. लेकिन, कामगारों के हित में इसका क्रियान्वयन नहीं किया जा रहा. नेताओं को समझौते के बाद प्लांट के भीतर सुरक्षा का हवाला देकर घुसने नहीं दिया जाता. ऐसे में प्रेस-मीडिया से उनकी दूरी भी प्रबंधन कंपनियाें की गैर जवाबदेही बयान करता है.
क्या कहते हैं मजदूर
जेएमसी कंपनी में लगभग 18 महीना काम करने के बाद भूषण निषाद को कंपनी ने अंडर एज और ढाई वर्ष के बाद मणिक निषाद को अंडर एज बताकर पीएफ देने से इंकार कर दिया. सिम्प्लेक्स कंपनी के मजदूर राजकिशोर सिंह को हक की आवाज उठाने पर 2014 में ही नौकरी से हटा दिया गया. नौकरी से हटाये जाने के साल भर बाद मार्च 2015 तक उसके पीएफ खाता को अपडेट करना अंदरखाने बड़ी धांधली की ओर इशारा करता है.
सांसद कर चुके हैं भूख हड़ताल
संयुक्त ट्रेड यूनियन संघर्ष समिति द्वारा आहूत मजदूरों के भूख हड़ताल को वाजिब करार देते हुए बेगूसराय के सांसद डॉ भोला सिंह भी 23 मार्च 2015 को भूख हड़ताल पर बैठकर प्रशासन व प्रबंधन में खलबली मचा दी थी. आनन-फानन में कामगारों के हित में समझौते हुए, पर लागू आज तक नहीं हुआ. श्रम विभाग के जिला श्रम अधीक्षक मनीष कुमार की उपस्थिति में कई बार त्रिपक्षीय समझौते भी हुए, मगर वो भी श्रम कानून को लागू कराने में असफल साबित हुए हैं.
क्या कहते हैं अधिकारी
श्रम कानूनों की अनदेखी व कामगारों से ज्यादती जैसी कोई बात नहीं है. मजदूरों के खाते में गड़बड़ी को जल्द दुरुस्त करेंगे. सभी खाते यूनिवर्सल व अपडेट करने करने का निर्देश कंपनियों को दिया गया है.
जावेद अख्तर, एचआर, भेल

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