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जय कन्हैया लाल की से गूंजा तेघड़ा

आस्था. आकर्षक तरीके सजाये गये हैं शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के पूजा स्थल व पंडाल बेगूसराय(नगर) : जिले का तेघड़ा अनुमंडल हाथी,घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की से गुंजायमान हो रहा है. श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर तेघड़ा अनुमंडल में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. इस बार यह मेला 26 अगस्त से शुरू हो रहा […]

आस्था. आकर्षक तरीके सजाये गये हैं शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के पूजा स्थल व पंडाल

बेगूसराय(नगर) : जिले का तेघड़ा अनुमंडल हाथी,घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की से गुंजायमान हो रहा है. श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर तेघड़ा अनुमंडल में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. इस बार यह मेला 26 अगस्त से शुरू हो रहा है. इस मेले में राज्य के विभिन्न हिस्से से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है.
दर्जनों जगहों पर राधा-कृष्ण की बनी झांकियों को देख भावविभोर हो उठते हैं. सन 1927-28 के शरद ऋतु में प्लेग का भीषण प्रकोप इस क्षेत्र में हुआ था. इसी क्रम में बंगाल की एक कीर्त्तन मंडली तेघड़ा आयी. यह मंडली चैतन्य महाप्रभु की कृष्ण भक्ति परंपरा की अनुयायी थी. कीर्त्तनकारों ने श्रीकृष्ण की महिमा से लोगों को प्रभावित किया .
इसके बाद व्यवसायी स्व वंशी पोद्दार की उत्प्रेरणा से उत्साही युवकों ने 1929 में श्रीकृष्ण की मूर्त्ति स्थापित कर सामूहिक रूप से पूजन-बंदन शुरू किया.
राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान युवकों में आयी जागृति :सन 1930 का वर्ष था. भारत में राष्ट्रीय आंदोलन का दौर चल रहा था. स्थानीय व्यवसायी स्व विशेश्वर लाल ने इन उत्साही युवकों में श्रीकृष्णाष्टमी के अवसर पर एक और मंडप निर्माण की योजना रखी. और उसके निर्माण के लिये स्थान भी दिया. पूर्वी चौक पर मंडप का निर्माण हुआ.
समय में बदलाव होते ही मनमोहक होने लगा मेला :समय बदल गया मेले तथा सजावट में आधुनिक साधनों एवं रंगों का प्रयोग होने लगा. जिससे उत्तरोत्तर मेला रंगीन एवं मोहक बनता गया. युवकों और किशोर बालकों में अपनी कलाकृतियों के प्रदर्शन की आकांक्षाएं बढ़ी और नगर के अन्य क्षेत्रों में श्रीकृष्ण की मूर्त्तियों एवं मंडप के निर्माण का क्रम चला. 1966 ई में ओमप्रकाश केलेका एवं स्व जगत साह ने किशोर बालकों के सहयोग से तेघड़ा के पश्चिमी क्षेत्र (अब सत्संग भवन) में एक नये मंडप को सजाया. और कृष्ण के किशोर के रू प में लीलाओं का प्रदर्शन किया.
1977 ई में मजदूर एवं मध्यमवर्गीय बालकों द्वारा चैती दुर्गा स्थल पर स्व हरिनारायण मलाकार एवं झगरू दास के मार्गदर्शन में मंडप बनाया गया. 1990 ई में स्टेशन रोड महावीर चौक पर विशेश्वर सिंह शिक्षक,डा आरएन साह,डा कुर्वान अली के निर्देशन में युवक संघ के सदस्यों ने एक मंडप की रचना की. 1993 ई में सलेमपुर तीतू एवं 1996 ई में एक नये मंडप का निर्माण कर श्रीकृष्ण की झांकियां प्रदर्शित हो रही है.
2000 ई में समाजसेवी शशि पोद्यार के निर्देशन में जाह्नवी पथ,पुरानी बाजार में एक स्थायी आधुनिक मंडप का निर्माण कर मूर्त्तियां बैठायी जाने लगी है. 2005 में युवकों के द्वारा एक मूर्त्ति का और प्रदर्शन हुआ और मंडप को सजाया गया. यह राष्ट्रीय उच्च पथ 28 के समीप स्थित है. मुख्य मंदिर के पूरब की ओर वर्ष 2006 में सुरेश केडिया के मार्गदर्शन में एक कृष्ण मंडप का निर्माण हुआ.
तेघड़ा क्षेत्र में कुल 12 मंडपों को सजाया जाता है :पूरे तेघड़ा क्षेत्र में 12 मंडपों को सजाया जाता है. मेले का काफी विस्तार हुआ और अब पांच वर्ग किलोमीटर में यह मेला फैला होता है. संपूर्ण तेघड़ा का क्षेत्र विद्युत प्रकाश की सजावट से जगमगा उठता है. कम्प्यूटर एवं विडियोग्राफी की व्यवस्था रहती है. वहीं सर्कस, प्रदर्शनी, चिडि़याघर सहित विभिन्न प्रकार के दुकानों की सजावट से मेले में चार चांद लगती है. मेले में कृषि प्रदर्शनी भी लगाया जाता है.
तेघड़ा के प्रत्येक घरों में अतिथियों का होता है जमावड़ा :तेघड़ा के ऐतिहासिक श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला को लेकर नगर एवं गांवों में प्रत्येक परिवार में अतिथियों एवं कुटुम्बियों की भीड़ जमा हो जाती है. ग्रामीणों का कहना है कि यह अवसर उनके सगे-संबंधियों से मिलने का अवसर होता है. उत्सवी माहौल के बीच इस बार भी तेघड़ा में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति शुरू हो गयी है और तेघड़ा के लोग इस ऐतिहासिक मेले में आने वाले लोगों के स्वागत के लिए जुट गये हैं.

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