नौकरी छोड़ शिक्षा की जोत जला रहे राम-लक्ष्मण
बेगूसराय : इस आर्थिक युग में हर किसी को पहली चाहत नौकरी होती है. नौकरी के लिए मारामारी भी है. लेकिन आज भी कुछ ऐसे लोग हैं, जो नौकरी को छोड़ कर शिक्षित समाज के निर्माण में भूमिका निभा रह कर प्रेरणादायक संदेश दे रहे हैं. वह भी एक-दो साल नहीं, बल्कि 14 वर्षों से […]
बेगूसराय : इस आर्थिक युग में हर किसी को पहली चाहत नौकरी होती है. नौकरी के लिए मारामारी भी है. लेकिन आज भी कुछ ऐसे लोग हैं, जो नौकरी को छोड़ कर शिक्षित समाज के निर्माण में भूमिका निभा रह कर प्रेरणादायक संदेश दे रहे हैं. वह भी एक-दो साल नहीं, बल्कि 14 वर्षों से नि:शुल्क शिक्षा का दीप जला रहे हैं. जिला मुख्यालय से लगभग दो किलोमीटर दूर स्थित एक छोटा सा नगर निगम का वार्ड जहां दो युवक सरकारी नौकरी को छोड़ कर गरीब नि:सहाय छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं. यहां से शिक्षा प्रदान करने के बाद कई छात्र बिहार ही नहीं बल्कि भारत के कई ऊंचे पदों पर कार्यरत हैं
14 वर्षों से काम कर रहे हैं दोनों : पनहास निवासी स्व त्रिभुवन सिंह के 35 वर्षीय पुत्र समीर चौहान और विश्वनाथ सिंह के 36 वर्षीय पुत्र प्रदीप कुमार की अलग ही पहचान है. समीर चौहान और प्रदीप कुमार दोनों अंगरेजी से स्नातक किये हुए हैं और अपनी सरकारी नौकरी को छोड़ कर बच्चों को पढ़ा रहे हैं. समीर और प्रदीप की जोड़ी राम और लक्ष्मण के जैसी है. एक ही मुहल्ले में दोनों पैदा लिए और साथ-साथ प्रारंभिक शिक्षा लिए. अंगरेजी से स्नातक भी साथ ही किये. भगत सिंह के विचारों से प्रेरित होकर एक अलग परंपरा की शुरुआत की. ग्रामोत्थान विद्यापीठ के नाम की संस्था का लगभग 14 साल बीत जाने के बाद भी छात्र-छात्राओं की संख्या में
दिन- प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है.
शुरुआती दौर में गांव के ही लोग कहते हैं कि यह सब करने से कुछ नहीं होने वाला है, जाओ कोई काम धंधा करो. इसके बावजूद लोगों की परवाह किये बिना नि:स्वार्थ अपने कदम बढ़ाते गये और आज ग्रामोत्थान विद्यापीठ से नि:शुल्क शिक्षा पाकर छात्र इन्हें परम गुरु मानते हैं.