Begusarai: क्या इतिहास बन जाएगी चंद्रभागा नदी? पानी की कमी से विलुप्त होने के कगार पर
Begusarai: मानसून खत्म होने के बाद बिहार में कुछ नदियों के सूखने की दस्तक चिंताजनक है. ऐसी ही स्थिति है बेगूसराय के पाँच पंचायतों से गुजरने वाली चंद्रभागा नदी की. वर्षों पुरानी यह नदी पानी की कमी की वजह से विलुप्त होने की कगार पर है.
Begusarai: बेगूसराय के बखरी अंचल क्षेत्र होकर गुजरने वाली प्राचीन काल की चंद्रभागा नदी जो कल-कल, छल-छल कर बहती थी, अब पानी की कमी के कारण विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गयी है. चंद्रभागा नदी अधवारा समूह से समस्तीपुर के हायाघाट के समीप से निकली है. यह रोसड़ा होते हुए बेगूसराय जिला में प्रवेश कर गढ़पुरा अंचल क्षेत्र की मालीपुर पंचायत के मोरतर गांव के पूर्वी भाग से होते हुए कोरैय, गढ़पुरा, कुम्हारसों, कोरियामा से गुजरते हुए सोनमा पंचायत के दक्षिणी छोर से निकल कर बखरी, मोहनपुर, बागवन, चकचनरपत होकर खगड़िया में बूढ़ी गंडक नदी में मिल जाती है. बरसात के समय में नदी के गहरे भागों में पानी जमा रहता है और बरसात समाप्त होते ही नदी सूखने लगती है.
बखरी नगर की जीवन रेखा मानी जाती है चंद्रभागा
बखरी और उससे आगे खगड़िया के इलाके में ही इस नदी का अस्तित्व कायम है. आज भी यह बखरी नगर की जीवन रेखा मानी जाती है. लेकिन, इसकी स्थिति यह है कि उसको आज स्वयं उद्धारक की तलाश है. बखरी मुख्य बाजार के करीब से गुजरने के कारण स्थानीय वाशिंदे इसी नदी के किनारे अंतिम संस्कार आदि का कार्य करते थे, लेकिन अब नदी के अस्तित्व पर ही संकट मंडराने लगा है.
नदी जोड़ने की योजना से मिल सकता है लाभ
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नदी जोड़ने की योजना के तहत काबर प्रोजेक्ट के जरिये चंद्रभागा की उड़ाही कर गंडक नदी से जोड़ने पर क्षेत्र के लोगों को लाभ मिल सकता था. लेकिन, इस योजना पर कोई पहल होती नहीं दिख रही है. पर्यावरणविदों की मानें, तो पर्यावरण असंतुलन और जैविक विविधता में ह्रास इस नदी के मृतप्राय होने के प्रमुख कारण हैं.
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पांच पंचायतों से गुजरती है नदी
चंद्रभागा नदी बखरी प्रखंड क्षेत्र में करीब 15 किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है. बखरी नगर सहित घाघरा, मोहनपुर, बागवन, राटन और चकचनरपत पंचायत से होकर गुजरती है. चंद्रभागा नदी का इतिहास काफी पुराना है. स्थानीय बुजुर्गों की मानें तो इस नदी का इतिहास नटुवा दयाल सिंह और बहुरा मामा के कालखंड का है.नदी तकरीबन पांच सौ वर्षों का इतिहास समेटे हुए है. वैदिक काल में लिखे ग्रंथों एवं पंचागों में नदी की विस्तृत चर्चा मिलती है. जरूरत है सूख रही इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की.