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अन्याय व अत्याचार के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देती है भगवान श्रीकृष्ण की जीवनी : साध्वी प्राची

त्रेतायुग हो या द्वापर हमेशा से अधर्म पर धर्म की विजय हुई है. धर्म की रक्षा के लिए स्वयं भगवान को मनुष्य रुप में अवतरित होना पड़ा है.

बछवाड़ा. त्रेतायुग हो या द्वापर हमेशा से अधर्म पर धर्म की विजय हुई है. धर्म की रक्षा के लिए स्वयं भगवान को मनुष्य रुप में अवतरित होना पड़ा है. उन्होंने अपने अवतार में मनुष्य के कर्तव्य को बताते हुए प्रेम के वश में वशीभूत होकर सैकड़ों वर्ष तक गोपियों के साथ रासलीला करने का काम किया था. उक्त बातें मध्य प्रदेश के जबलपुर से पधारी कथा वाचिका साध्वी प्राची ने शुक्रवार को प्रखंड मुख्यालय पंचायत रानी एक स्थित रामजानकी ठाकुरवाड़ी झमटिया के प्रांगण में आयोजित नौ दिवसीय श्री विष्णु महायज्ञ के छठे दिन श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कही. उन्होंने कहा सतयुग,द्वापर व त्रेता युग में भगवान ने पृथ्वी पर मनुष्य रुप में अवतार लेकर मनुष्य को अपने कर्म, प्रेम व त्याग की भावना को सिखाने का काम किया था. वहीं, त्रेतायुग में अपने मामा कंश के कारागार में जन्म लिया था. जबकि वो तो भगवान विष्णु के अवतार थे और कुछ भी करने में सक्षम थे,लेकिन फिर भी अपने मर्यादा में रहकर ही सब कुछ किये. उन्होंने अपने बाल रुप से ही अधर्म के खिलाफ लड़ते रहे. लेकिन आज के समय लोग समर्थ हो जाता है तो दुसरो को कष्ट पहुंचाना शुरु कर देता है. जबकि सामर्थ्यवान व्यक्ति को समाज के विकास के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए. श्रीमद्भागवत कथा सुनने मात्र से ही पापों का नाश हो जाता है,मन जो ग़लत विचार है वो भी समाप्त हो जाती है. ऐसे कथा को सुनना चाहिए और हृदय में धारण कर समय आने पर कथा के अनुसार अपना कर्म करना चाहिए. त्रेता व द्वापर में भी राक्षस व देव हुआ करते थे और राक्षस के द्वारा साधु-संतों पर अत्याचार किया जाता था.और आज भी मनुष्य के साथ दावन मौजूद हैं. जो मनुष्य दुसरे के अधिकार को अपनी ताकत के बल पर हासिल कर लें, मनुष्य को विभिन्न प्रकार के कष्ट दें, भोजन में मांस मदिरा का प्रयोग कर पराये स्त्री को जबरन अपने अधिकार में कर लें वही मनुष्य दानव कहलाता है. जो मनुष्य समाज के हर वर्ग के लोगों को साथ व समान भाव रखकर प्रेम करें,दुसरो के दुख को अपना दुख समझे, समाज के कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहे वह मानव कहलाता है. मनुष्य को हमेशा सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए, गलत तरीके से अर्जित धन क्षणिक होता है, कुछ समय के लिए वो सुख तो प्रदान करता है लेकिन कुछ ही समय में नष्ट हो जाता है,पाप से कमाये हुए धन का नाश हो जाता है जबकि धर्म के आधार पर जो धन की प्राप्ति होती है उसका कभी नाश नहीं होता है. उन्होंने अपने प्रवचन के दौरान कहा कि भगवान कृष्ण ने जब रास रचाया था तब बच्चे,बुढ़े और जवान सबके सब प्रेम के वश में होकर उस रास में शामिल हुए थे.और धर्म की स्थापना के लिए अपने मामा कंश का बद्ध किया था. उन्होंने उस समय कहा था जब जब पृथ्वी पर धर्म की हानी होगी,ब्राह्मण व गौ व स्त्रियों पर अत्याचार होगा तो पापियों को नाश करने के लिए किसी ना किसी रूप में अवतार लेकर पापियों का नाश करते हुए धर्म की स्थापना करूंगा. इसलिए जब जब धर्म की हानी होगी धर्म की रक्षा के लिए भगवान को पृथ्वी पर अवतरित होना होगा. मनुष्य को अपने माता पिता व गुरू का हमेशा सम्मान करना चाहिए, जो माता पिता व गुरु का सम्मान नहीं करते हैं वो मनुष्य पशु के समान माना गया है. गुरू का स्थान भगवान से ही भी ऊपर माना गया है, मौके पर भागवत कथा के मुख्य आचार्य संजय कुंवर सरोवर,ममता देवी, पंडित अरविंद झा, पंकज राय, कन्हैया कुमार, हरेराम कुंवर, संजीत कुमार, नवीन राय, चमरू राय, सागर कुंवर, भोला महतो, प्रमेश्वर महतो, रामाशीष महतो, खाखो यादव समेत यज्ञ समिति के अध्यक्ष रविंद्र राय,सचिव आनंद कुंवर, कोषाध्यक्ष मंगल देव कुंवर एवं संतोष कुंवर, मनोज कुमार राहुल, टिंकू कुमार व झमटिया, नारेपुर गांव के अन्य ग्रामीण मौजूद थे.

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